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अब Multiplex और सिनेमाघर तय करेंगे कौन सी फिल्म देखनी है कौन नहीं!
[नीति सुधा] 28 नवंबर 2014 को बॉलीवुड की 3 फिल्मों ने सिनेमाघरों में दस्तक दिया। इमरान हाशमी कि 'उंगली', मनारा की 'जिद' और राजनीतिक व्यंग्य पर आधारित फिल्म 'जेड प्लस'। तीनों ही फिल्मों के दर्शक वर्ग अलग अलग हैं, जो इन फिल्मों का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।
लेकिन बात शुरू होती है, फिल्म रिलीज के बाद। जब तीनों फिल्मों के अलग अलग दर्शक वर्ग मल्टीप्लेक्स और सिनेमाघरों में जाकर टिकट की खोज शुरू करते हैं। एक ओर जहां उंगली और जिद को लगभग सभी मल्टीप्लेक्स और सिनेमाघर ने जगह दी है। वहीं जेड प्लस को काफी चुनिंदे जगहों पर ही स्क्रीन स्पेस मिल पाया है। यहां तक की जो दर्शक यह फिल्म देखने की चाह रखते हैं, उन्हें भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। लेकिन क्यों?
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'उंगली' और 'जिद' ने नहीं किया कोई कमाल
बात करें तीनों फिल्मों के रिव्यूज की, तो यह साफ है कि 'उंगली' और 'जिद' बॉक्स ऑफिस पर पहले दिन कोई कमाल नहीं कर पाई। दोनों फिल्मों की पटकथा काफी कमजोर साबित हुई है, जो दर्शकों को बोर करती है। लिहाजा, दोनों ही फिल्में दो स्टार्स से ज्यादा पाने के लिए जद्दोजहद करती दिखी। वहीं, डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी के निर्देशन में बनी फिल्म 'जेड प्लस' को क्रिटिक से सराहना मिली तो रेटिंग में भी फिल्म बाकी दो फिल्मों से ऊपर रही। सियासी अफरा तफरी और आम आदमी की झलक दिखाती इस फिल्म को दर्शकों से भी बेहतर रिस्पॉस मिला।
दर्शक कौन सी फिल्म देंखे, कौन सी नहीं
लेकिन एक जगह जहां यह बाकी दोनों फिल्मों से पिछड़ गई, वह है स्क्रीन स्पेस। यह देखकर लगता है कि अब फिल्म की पटकथा और निर्देशक नहीं, बल्कि डिस्ट्रीब्यूटर्स के हाथों में है कि दर्शक कौन सी फिल्म देंखे और कौन सी नहीं। यदि आप सिनेमाप्रेमी हैं और वेल डन अब्बा, फंस गए रे ओबामा, तेरे बिन लादेन जैसी फिल्में आपकी लिस्ट में है तो जेड प्लस आपकी लिस्ट में अगली फिल्म हो सकती है।
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अभिनय नहीं, स्टारकास्ट जरूरी!
लेकिन अफसोस..शायद ही यह फिल्म आपको आपके नजदीकी सिनेमाघरों में मिल पाए। वजह शायद यह भी हो सकती है कि इस फिल्म का स्टारकास्ट बाकी दो फिल्मों की तरह नामी नही है। उंगली से जहां इमरान हाशमी का नाम जुड़ा है, वहीं जिद में मनारा के हॉट लुक्स। वहीं, जेड प्लस में भले ही मोना सिंह और आदिल हुसैन की दमदार अभिनय हो, लेकिन इमरान और मनारा के सामने ये नाम फीके पड़ जाते हैं।
बहरहाल, दर्शकों की पसंद को सीमित करना शायद सिनेमाप्रेमियों के साथ नाइंसाफी है। साथ ही नाइंसाफी है उस फिल्म के साथ, जो उम्दा कहानी और कलाकारों के होते हुए भी अपने चाहने वालों से दूर रहने को मजबूर है।
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