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फिल्म हैदर का नाम हैदर नहीं 'गजाला' होना चाहिए था
विशाल भारद्वाज द्वारा निर्देशित फिल्म हैदर ने इस हफ्ते 50 करोड़ कल्ब में एंट्री मार ली है। फिल्म में शाहिद मुख्य भूमिका में हैं और उनके अभिनय की काफी तारीफ भी हो रही है। शाहिद के अनुसार, विशाल बिना उनके हैदर कभी नहीं बनाते। सही भी है, कमीने में अपनी जोड़ी सफल बनाने के बाद शाहिद कपूर विशाल की पहली और आखिरी पसंद हो सकते हैं।
लेकिन हैदर और इसके किरदारों की बात की जाए तो तब्बू सबसे प्रभावशाली नजर आती हैं। लिहाजा, फिल्म देखने के बाद यह कहना सही होगा कि विशाल भारद्वाज फिल्म का नाम हैदर की बजाए 'गज़ाला' रख देते तो शायद फिल्म की टाइटल के साथ न्याय हो जाता। हैदर में तब्बू का किरदार हर किसी पर भारी पड़ा है, चाहे शाहिद हों, इरफान खान हो या केके मेनन।
बहरहाल, स्लाइडर में पढ़िए 'हैदर' में कौन सा किरदार रहा कितना मजबूत और किसने किया दर्शकों को निराश:

हैदर
फिल्म विलियम शेक्सपियर के प्ले 'हैमलेट' पर आधारित है। हैदर का किरदार निभा रहे शाहिद कपूर अपने रोल में जमे हैं, वह भी काफी मजबूती के साथ। लेकिन कहीं न कहीं एक इंटेसिटी की कमी आपको महसूस होती है। उनमें वह क्षमता नहीं दिखी कि वो इस फिल्म को अपने कंधों पर उठा लें।

गज़ाला (हैदर की मां)
गज़ाला यानि की तब्बू फिल्म की सबसे ताकतवर पहलू है। लंबे समय के बाद तब्बू फिर से प्रभावशाली तरीके से नजर आईं। तब्बू का चेहरा और एक एक भाव कहानी को मजबूत करता है। हैदर की मां के रूप में हो या खुर्रम के साथ की तालमेल, तब्बू ने सबका दिल जीत लिया।

रूहदार
रूहदार के रोल में इरफान खान को डॉयरेक्टर ने कम लेकिन काफी प्रभावी डायलॉग्स दिए हैं। जानदार डायलॉग और इरफान की दमदार आवाज दर्शकों को बांधती है। इरफान पहले भी अपने एक्टिंग का लोहा मनवा चुके हैं, लिहाजा, यहां भी वे अपने चाहने वाले और दर्शकों को निराश नहीं करते हैं।

खुर्रम(हैदर के चाचा)
खुर्रम बने के के मेनन काफी जानदार रहे हैं। गज़ाला की ओर खुर्रम की फरेब भरी निगाहें और खुर्रम की वासना और लालसा को मेनन ने संजीदगी से जिया है। अपने हाव भाव के जरिए मेनन दर्शकों को प्रभावित करने में सफल रहे।

डॉ. हिलाल मीर
'हैदर' की खोज हैं नरेंद्र झा। हैदर के पिता के रूप में उन्होंने शानदार और जानदार परफारमेंस दी है। डॉक्टर के रूप में उन्होंने अपनी रोल को बखूबी जिया है।

अर्शिया
श्रद्धा कपूर काफी मासूम और खूबसूरत दिखी हैं। पिता और प्यार के बीच फंसी अर्शिया को जीने की कोशिश श्रद्धा के अभिनय में साफ झलक रही थी। लिहाजा, कहीं वे इसमें सफल रही तो कहीं उनके चेहरा भावों के अनुरूप बदलता नहीं दिखा। वे मजबूत की जगह मासूम ही दिखती रह गईं।

परवेज लोन(अर्शिया के पिता)
अर्शिया के पिता और परवेज लोन बने ललित परमू अपने किरदार में सही हैं। हालांकि फिल्म उन्हें ज्यादा बदलाव का मौका नहीं देती लेकिन उन्होंने खुद को कहानी में फिट करने की पूरी कोशिश की है।

लियाकत(अर्शिया के भाई)
लियाकत के रोल में आमीर बशीर ने अच्छा अभिनय किया है। अर्शिया के भाई के रूप में हो या हैदर के खिलाफ एक बेटे का रोल, बशीर ने अपने किरदार को जीया है।

आशीष विद्यार्थी, कुलभूषण खरबंदा, अश्वथ भट्ट
फिल्म की सर्पोटिंग कास्ट ठीकठाक रही है। तब्बू और शाहिद के बीच जैसे इन किरदारों को निर्देशक ने थोड़ा ढ़ीला छोड़ दिया। वहीं, सलमान खान के नाम पर फिल्म में थोड़े लतीफे भी डालने की कोशिश की है।