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रूद्र वेब सीरीज़ रिव्यू: अजय देवगन अपने वेब डेब्यू में छोड़ते हैं गहरी छाप, स्क्रीन पर छा जाती हैं राशि खन्ना
सीरीज़
-
रूद्र
द
एज
ऑफ
डार्कनेस
स्टारकास्ट
-
अजय
देवगन,
राशि
खन्ना,
अतुल
कुलकर्णी,
तरूण
गहलोत,
ईशा
देओल
व
अन्य
डायरेक्टर
-
राजेश
मपूसकर
लेखक
-
इशानी
त्रिवेदी,
अब्बास
दलाल,
हुसैन
दलाल
प्लेटफॉर्म
-
डिज़्नी
हॉटस्टार
एपिसोड/अवधि
-
6
एपिसोड
/
50
मिनट
प्रति
एपिसोड
अयान,
अपने
हाथों
से
उसकी
लाश
उठाई
थी
मैंने,
अब
तक
कांप
रहे
हैं
मेरे
हाथ।
अब
बता,
इन
हाथों
से
मैं
तुझे
कैसे
बचाई।
एकदम
गंभीर
आवाज़
में
इसी
डायलॉग
के
साथ
DCP
रूद्र
वीर
सिंह
दर्शकों
से
रू
ब
रू
होता
है।
सीरीज़
पहले
ही
सीन
के
साथ
आपको
बांध
लेती
है।
गहरे
अंधेरे
में
अगर
कुछ
बोलती
हैं
तो
अजय
देवगन
की
दमदार
आंखें।
इसके बाद ये सीरीज़ 7 महीनों का ब्रेक लेती है जहां कहानी में लौटता है सीरीज़ का हीरो रूद्र वीर सिंह जो सात महीनों से सस्पेंड चल रहा है। लेकिन काम पर लौटते ही वो अपनी प्रोफेशनल लाईफ में आपको तुरंत घसीट लेगा। बिना आपकी अनुमति के।
रूद्र
वीर
सिंह,
एक
काबिल
पुलिस
ऑफिसर
जिसके
बिना
शायद
उसका
डिपार्टमेंट
तो
चलेगा
लेकिन
असली
मुजरिमों
को
वक्त
पर
पकड़ना
मुश्किल
होगा।
लेकिन
क्या
रूद्र
वीर
सिंह,
वाकई
इतना
काबिल
ऑफिसर
है।
कैसे
हर
पुलिस
वाले
की
तरह
वो
भी
पूरी
कोशिश
के
बावजूद,
हादसे
नहीं
रोक
पाता
है
ये
इस
सीरीज़
का
सार
भी
बनेगा।
जानिए
हमारे
रिव्यू
में
कैसी
है
अजय
देवगन
की
ये
डेब्यू
सीरीज़।
कहानी
रूद्र छह पार्ट की एपिसोडिक सीरीज़ है जहां हर एपिसोड में DCP रूद्र वीर सिंह (अजय देवगन) एक नया केस सुलझाते दिखेगा। इन केस में एक बड़े स्तर की चोरी और बाकी की मर्डर मिस्ट्री शामिल है। इस काम में अजय देवगन के किरदार का साथ उनका डिपार्टमेंट बखूबी निभाते दिखता है। उनकी बॉस के किरदार में अश्विनी कलसेकर, साथी के किरदार में अतुल कुलकर्णी और जूनियर के किरदार में तरूण गहलोत इस सीरीज़ को मज़बूती से संभालते दिखते हैं। साथ ही सीरीज़ इन छह एपिसोड्स में धीरे धीरे, रूद्र वीर सिंह की निजी ज़िंदगी और उसकी मानसिक स्थिति को भी धीरे धीरे उजागर करती है। सीरीज़ में ईशा देओल उनकी पत्नी के शाईला के किरदार में दिखाई देती हैं जो अपने पति से अलग हो चुकी है।
निर्देशन
रूद्र द एज ऑफ डार्कनेस को डायरेक्ट किया है राजेश मपूसकर। ये सीरीज़, मशहूर हॉलीवुड सीरीज़ लूथर का आधिकारिक रीमेक है और राजेश ने इसमें कोई छेड़छाड़ करने की कोशिश नहीं की है। सीरीज़ को उतना ही डार्क रखा गया है। और यही कारण है कि इस किरदार में अजय देवगन को डायरेक्ट करने में ज़्यादा मुश्किल नहीं आई है। अभी तक पहले सीज़न में राजेश ने किरदारों की कहानियां गढ़ने की बजाय केवल उनके काम और केस सुलझाने की कहानी पर फोकस किया है और इसमें राजेश मपूसकर पूरी तरह से सफल होते हैं।
तकनीकी पक्ष
50 मिनट लंबे हर एपिसोड को लिखने का ज़िम्मा लिया इशानी त्रिवेदी, अब्बास दलाल और हुसैन दलाल ने। तीनों ने मिलकर एक कसी हुई पटकथा को कागज़ पर उतारा है जिसे राजेश मपूसकर ने शायद हू ब हू परदे पर उतार दिया। इस बात के लिए पूरी टीम को बधाई के काबिल है। इशानी, अब्बास और हुसैन की पटकथा में छह अलग अलग कहानियों को रूद्र की ज़िंदगी से अलग रखते हुए भी रूद्र की ज़िंदगी में पिरोना काफी सराहनीय कोशिश थी। इसमें उनका साथ देते हैं जय शीला बंसल, चिराग महाबल और गगन सिंह सेठी के एकदम नॉर्मल डायलॉग्स। वो जो रूद्र को किसी भी तरह का हीरो बनाने की कोशिश नहीं करते हैं। इसका कारण ये भी हो सकता है कि अजय देवगन डायलॉग्स से ज़्यादा अपनी आंखों से बात करते हैं। लेकिन इस सीरीज़ के अधिकतर शानदार डायलॉग्स आए हैं इसकी पैरेलल लीड राशि खन्ना के हिस्से। पूरी सीरीज़ में एक मायूसी है जो कि तपस रेलिया का बैकग्राउंड स्कोर बहुत ही अच्छे तरीके से बनाए रखने की कोशिश करता है। अंतरा लहरी की एडिटिंग इन छह कहानियों को बिना बोझिल हुए, सस्पेंस बरकरार रखते हुए आप तक पहुंचाने का काम बखूबी करती है।
एपिसोड्स
रूद्र छह एपिसोड्स की एक सीरीज़ है। पहला एपिसोड है 'जीनियस की औकात’ एक मर्डर मिस्ट्री है। लेकिन मर्डर मिस्ट्री से ज़्यादा ये अजय देवगन और राशि खन्ना के बीच चूहे - बिल्ली का खेल नज़र आता है और एक बड़ा ही रोचक खेल। दूसरे एपिसोड का नाम है 100 किलर, जो कि एक सीरियल किलर को ढूंढने पर फोकस करता है। वो सीरियल किलर जिससे अजय देवगन के साथ पूरा डिपार्टमेंट लड़ने की कोशिश करता है। तीसरा एपिसोड है बली का बकरा जो कि एक मानसिक रूप से विक्षिप्त सीरियल किलर यानि कि एक sociopath को ढूंढने में निकलता है। चौथा एपिसोड शायद इस सीरीज़ की सबसे कमज़ोर कहानी हो। इस एपिसोड का नाम भी है Weak Spot जो कि एक ऐसे सीरियल किलर की खोज करने में निकलेगा जो मनोरोगी है। पांचवे एपिसोड का नाम है ज़बान का पक्का जो कि एक बड़े स्तर की चोरी पर आधारित है लेकिन इस एपिसोड के साथ सीरीज़ अपने क्लाईमैक्स और फिनाले की तरफ शानदार ढंग से पलटती है। आखिरी एपिसोड तोड़ फोड़ इस सीज़न का परफेक्ट फिनाले कहा जा सकता है। जहां मुख्य किरदारों के आपसी समीकरण तेज़ी से बदलते हुए दिखते हैं।
रूद्र का किरदार और अभिनय
इस
सीरीज़
में
अजय
देवगन
का
किरदार
बेहद
सिमटे
हुए
तरीके
से
लिखा
गया
है।
पूरी
सीरीज़
में
उनका
किरदार
एक
संयमित
और
स्थिर
अंदाज़
में
आगे
बढ़ता
है।
यही
कारण
है
कि
अपने
करियर
में
ढेरों
बार
पुलिस
ऑफिसर
का
किरदार
निभाने
के
बावजूद
अजय
देवगन
रूद्र
के
किरदार
में
बिल्कुल
नए
कलेवर
में
नज़र
आते
हैं।
हालांकि
उनका
अभिनय
चिर
परिचित
है।
जैसे
कि
अपनी
पत्नी
से
अलग
होने
का
दुख
वो
डायलॉग्स
से
ज़्यादा
अपनी
गंभीर
अदायगी
से
दिखाते
हैं।
पूरे
सीन
में
वो
एक
भी
एक्सप्रेशन
नहीं
देते
हैं
लेकिन
फिर
भी
उनकी
आंखें
आपको
बांधती
हैं।
इसी
तरह,
लगातार
मरे
हुए
लोगों
के
बीच
रहते
हुए
उनके
व्यक्तित्व
का
संवेदनशील
हिस्सा
कैसे
उनके
दिमाग
पर
हावी
हो
जाता
है,
ये
भी
परदे
पर
अजय
देवगन
ने
बेहद
ही
विश्वसनीय
तरीके
से
अपने
किरदार
में
उतारा
है।
सीरीज़
में
अजय
देवगन
के
हिस्से
हीरो
बनने
का
कोई
मौका
नहीं
आता
है
और
यही
सीरीज़
की
सफलता
का
सबसे
अहम
कारण
है।
सपोर्टिंग कास्ट
रूद्र द एज ऑफ डार्कनेस का एक एक किरदार उतने ही ध्यान से लिखा गया है। हर किरदार कहानी को आगे बढ़ाने में अपना पूरा योगदान देता है। चाहे वो अश्विनी कलसेकर के रूप में अजय देवगन की बॉस हो जो अपने बेस्ट ऑफिसर को हमेशा उसकी प्रोफेशनल लिमिट याद दिलाती रहती है या फिर ईशा देओल के रूप में रूद्र की पत्नी हो जो अपने पति को ये एहसास दिलाती है कि वो अपनी पत्नी से ज़्यादा मरे हुए लोगों में दिलचस्पी रखता है और अपने घर से ज़्यादा उन्हें मारने वालों के बारे में सोचता है। अतुल कुलकर्णी के हिस्से शुरूआत के एपिसोड्स में ज़्यादा कुछ खास आया नहीं है लेकिन वो जब भी परदे पर होते हैं, उनसे दर्शक थोड़ा और की उम्मीद हमेशा लगाए रहते हैं। इस सीरीज़ में सबसे ज़्यादा प्रभावित करते हैं हर एपिसोड के विलेन। चाहे वो एक child prodigy राशि खन्ना हों, या फिर अपनी ज़िंदगी के काले पन्नों से हताश सैनिक के रूप में विक्रम सिंह चौहान हों। मिलिंद गुणाजी को कम ही सही लेकिन कुछ मिनटों के लिए देखना अच्छा अनुभव था। Luke Kenny अब ज़्यादातर हर सीरीज़ के लिए एक विलेन के तौर पर स्थापित हो चुके हैं।
क्या है अच्छा
रूद्र की सबसे अच्छी बात ये है कि इस सीरीज़ को किसी बहादुर हीरो के आराम से केस सॉल्व करने की कहानी के रूप में नहीं दिखाया है। यहां मुख्य किरदार उतना ही दिक्कतों से भरा व्यक्तित्व जितना कि हर दूसरा इंसान। सीरीज़ का ट्रीटमेंट Larger Than Life कहानियां ना रखना इस सीरीज़ को बेहद खास बना देता है। आप कहानियों से तुरंत जुड़ते हैं और उन्हें खुद सुलझाने की कोशिश नहीं करते हैं। क्योंकि आप परदे पर उसे सुलझाने की कोशिश करती टीम पर भरोसा रखना चाहते हैं।
क्या करता है निराश
इस सीरीज़ में अगर कुछ निराश करता है तो वो है इसकी अंग्रेज़ी सीरीज़ का हू ब हू रूपांतरण। ये केस आपने पहले भी देखे हैं। वहीं इन छह केस का उलझना जितना दिलचस्प है, एपिसोड के अंत होते तक में इन केस को सुलझाने के तरीके उतने ही बचकाने और मंद है। यही कारण है कि आप पूरी सीरीज़ से जुड़े रहते हैं लेकिन सभी एपिसोड अलग कहानी के बावजूद, अंत तक आते आते फीके हो जाते हैं। इस सीरीज़ का high point सीधा इसके फिनाले एपिसोड पर जाकर ही आता है।
सीरीज़ की स्टार
इस सीरीज़ की स्टार हैं राशि खन्ना जो पहले एपिसोड में केवल एक suspect की तरह नज़र आती हैं लेकिन धीरे धीरे उनका कद अजय देवगन के समानांतर आकर खड़ा होता है। उनके किरदार को बेहद ही कसे हुए अंदाज़ में लिखा गया है और राशि खन्ना इस सीरीज़ की पैरेलल लीड बनकर उभरती हैं। पैरेलल लीड इसलिए कि राशि पूरी सीरीज़ में अपनी वही छाप छोड़ जाती हैं। उनके और अजय देवगन के सीन काफी रोमांचक है और दोनों के बीच की एक असहज, गुस्से और रोमांच की केमिस्ट्री स्क्रीन पर बहुत ही प्रभावी तौर से काम करती है। अगले सीज़न में राशि खन्ना के किरदार को कौन सी दिशा मिलती है ये देखना बहुत ही दिलचस्प होगा।
देखें या नहीं
रूद्र को आप सस्पेंस थ्रिलर नहीं कह सकते हैं। अगर आप इसे मर्डर मिस्ट्री या शेरलॉक होम्स जैसी कहानियों के लिए देखना चाहते हैं तो आप बिल्कुल गलत सीरीज़ पर प्ले का बटन दबाने चाह रहे हैं। हां, लेकिन अगर आप अपराध करने के पीछे अपराधियों का मनोविज्ञान देखना चाहते हैं तो रूद्र एक सफल सीरीज़ है। ये साईकोलॉजिकल थ्रिलर छह एपिसोड में आपकी दिलचस्पी बनाए रखेगी और अगले सीज़न के लिए भी इंतज़ार कराएगी।
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