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Vadh Movie Review: पूरे दो घंटे संजय मिश्रा और नीना गुप्ता से नजर नहीं हटेगी, दमदार अभिनय
निर्देशक- जसपाल सिंह संधू, राजीव बरनवाल
कलाकार- संजय मिश्रा, नीना गुप्ता, मानव विज, सौरभ सचदेवा, दिवाकर कुमार
"स्कूल में एक बच्चे को थप्पड़ मारा था मैंने, तो 3 दिन तक सो नहीं पाया.. पांडे के गले में चाकू घुसेड़ दिये, लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा", आंखों में शून्यता का भाव लिए शंभूनाथ मिश्रा (संजय मिश्रा) कहते हैं। काफी कम निर्देशकों ने ही संजय मिश्रा और नीना गुप्ता जैसे दमदार कलाकार को ऐसी फिल्में और ऐसे किरदार दिये हैं, जिनमें वो अपने आप पूरी तरह घोल सकें। 'वध' एक ऐसी ही फिल्म है, जहां दोनों कलाकार अपने स्वाभाविक अभिनय से ऐसा बांधते हैं कि पूरे दो घंटें तक उन पर से नजर नहीं हटती है।
कहानी
वध की कहानी है शंभुनाथ मिश्रा की, जो ग्वालियर के एक सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक हैं। शंभुनाथ अपने बेटे को शिक्षित करने और विदेश में बसने में मदद करने के लिए प्रजापति पांडे (सौरभ सचदेवा) से पैसे उधार लेते हैं। लेकिन अपने बच्चे से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलने के कारण, शंभुनाथ और उनकी पत्नी मंजू मिश्रा (नीना गुप्ता) महीने दर महीने जबरन वसूली करने वाले के उत्पीड़न का सामना करते हैं। प्रजापित पांडे कभी उनके साथ मारपीट करता, तो कभी शराब के नशे में वहां लड़की लाया करता। दोनों असहाय बुजुर्ग सारे अपमान को सहते, किसी तरह जीवन गुजार रहे होते हैं, जब एक दिन ऐसी घटना घटती है जो शंभूनाथ के सब्र का बांध तोड़ देती है। उनके हाथों प्रजापति पांडे की मौत हो जाती है। लेकिन यहां उनकी मुसीबत खत्म नहीं होती है। एक पुलिस अधिकारी (मानव विज) और वहां के विधायक (जसपाल सिंह संधू) किसी भी तरह प्रजापति को मारने वाले को ढूंढ़ निकालना चाहते हैं। ऐसे में क्या शंभूनाथ 'वध' की सजा से बच पाएंगे या एक अपराधी साबित होंगे?
निर्देशक और अभिनय
निर्देशक-लेखक जोड़ी जसपाल सिंह संधू और राजीव बरनवाल ने फिल्म की शूटिंग ग्वालियर में ही की है। मध्यमवर्गीय मिश्रा दंपत्ति की दुनिया को उन्होंने बहुत बेहतरीन ढ़ंग से दिखाया है। उनकी खुशियां, उनकी नोकझोंक, उनके संघर्ष देखते देखते कब आप मिश्रा दंपत्ति के करीब पहुंच जाते हैं, आपको पता भी नहीं चलता। इसकी एक बड़ी वजह संजय मिश्रा और नीना गुप्ता का दमदार प्रदर्शन भी है।
दोनों कलाकार अपने किरदारों में रच-बस गए हैं। दोनों के बीच की कैमिस्ट्री इतनी रियल है कि आप उनके संघर्ष में खुद को उनके साथ पाएंगे। एक दृश्य में शंभुनाथ बने संजय मिश्रा अचानक से रो पड़ते हैं, लेकिन पत्नी उन्हें देखकर व्यथित ना हो जाए, ये सोचकर पल भर में खुद को संभाल लेते हैं। संजय मिश्रा जिस तरह इन पलों को जीते हैं, वो देखने लायक है। वहीं, सौरभ सचदेवा से घृणा होती है, जो बतौर कलाकार उनके लिए एक जीत है। मानव विज पुलिस अफसर के किरदार में प्रभावी लगे हैं।
तकनीकी पक्ष
सपन नरूला की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है। ग्वालियर की गलियों से लेकर कुछ ऐतिहासिक जगहों तक उन्होंने शहर को बखूबी अपने कैमरे में उतारा है। साथ ही बैकग्राउंड म्यूजिक भी सराहनीय है। फिल्म जहां कमजोर पड़ती है, वो कि कहानी के संस्पेंस वाले हिस्से में। संस्पेंस- थ्रिलर फिल्मों में यदि सब कुछ बहुत आसानी से हो जाए, तो वो एक उत्साह पैदा करने में विफल होती है। प्रजापति पांडे हो या विधायक.. फिल्म के निगेटिव किरदारों के आर्क पर थोड़ा और ध्यान दिया जा सकता था। कहीं ना कहीं कहानी में आगे क्या होने वाला है, इसका अंदाजा आपको होता है। लेकिन संजय मिश्रा और नीना गुप्ता की अदाकारी इतनी प्रभावी है कि आप फिर भी कहानी से जुड़े रहते हैं। निर्देशक ने चूहे पकड़ने वाले सीन से जिस तरह पूरी फिल्म का ब्योरा दिया है, वो काफी दिलचस्प है।
रेटिंग - 3.5 स्टार
फिल्म देखते देखते आपको दृश्यम 2 की याद आ सकती है, लेकिन 'वध' ज्यादा यथार्थवादी और रॉ है। आप किसी अपने को बचान के लिए किस हद तक जा सकते हैं? दोनों फिल्में इसी का जवाब देती हैं, लेकिन यहां हीरो एक मध्यमवर्गीय, दुर्बल, बुजुर्ग व्यक्ति है, जो अपने बेटे से दूर अपनी पत्नी के साथ, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर किसी तरह जीवन यापन कर रहा है।
फिल्म के क्लाईमैक्स में जिस तरह दो किरदार एक दूसरे को देखकर, सिर्फ एक झलक से आपसी भावनाओं का बोझ साझा करते हैं, वो बेहतरीन है। फिल्मीबीट की ओर से 'वध' को 3.5 स्टार।
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