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October Review: दिल को छू लेने वाली फिल्म, अनोखी कहानी, वरुण धवन ने कमाल कर दिया
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'A story about love', ये चार शब्द शुजीत सरकार की इस फिल्म को बखूबी बयान करते हैं। ये फिल्म उनके लिए नहीं जो टिपिकल बॉलीवुड रोमैंस देखने की चाहत रहते हैं। इस फिल्म में न तो दो प्यार करने वाले रोमैंटिक गाना गाते दिखेंगे और न ही प्यार भरी लाइनें बोलकर एक दूसरे को इंप्रेस करेंगे। इस फिल्म में आपको डैन(वरुण धन) और शियुली(बनीता संधु) के जरिए खूबसूरत और प्योर लव देखने को मिलेगा। ये फिल्म आपको एक अलग ही दुनिया में लेकर जाएगी। इस फिल्म में शुजीत सरकार ने एक शियुली के फूलों को एक रूपक की तरह इस्तेमाल किया है, जिसका छोटा सा जीवन अनकहे प्यार की कहानी कह जाता है।
डैन यानी दानिश वालिया, 21 साल का दिल्ली का लड़का एक होटल मैनेजमेंट इंटर्न है जो अपने आस-पास की चीजों से हर वक्त चिढ़ा-चिढ़ा सा मालूम होता है। उसका ढ़ीला-ढ़ाला रवैया अक्सर उसकी जिंदगी में परेशानियां लेकर आता है लेकिन डैन को कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। वहीं दूसरी तरफ शियूली अय्यर है, जो कि डैन की जूनियर है अपने काम में परफेक्ट है। दोनों का रिश्ता काफी अच्छा है लेकिन दोनों आपस में बात कम ही करते हैं।
वहीं अचानक फिल्म में बड़ा टर्न तब आता है जब दोस्तों के साथ न्यू ईयर की पार्टी कर रही शियुली बिल्डिंग से नीचे गिर जाती है और कोमा में चली जाती है। उसके आखिरी शब्द थे कि डैन कहां है? वहीं जब इसके बारे में डैन को पता चलता है जो डैन खुद को शियुली की स्थिर दुनिया की तरफ खिंचता हुआ पाता है। हर एक सान के बाद आपको दोनों के बीच एक खूबसूरत बॉन्ड बनता हुआ दिखेगा। शायद दोनों प्यार में हैं और शायद नहीं भी.. ये खूबसूरत रिश्ता बिना किसी नाम के ऐसे ही आगे बढ़ता जाता है।
डायरेक्टर शुजीत सरकार अपने काम की बारीकी के जरिए हर एक सीन में जान डाल देते हैं। सिर्फ एक फिल्म नहीं अक्टूबर एक ऐसी कविता है, जो आपको गहराई से प्यार को समझने के लिए बेहद खूबसूरती से छोटे-छोटे मौके देती है। फिल्म में जहां-जहां उदासी आती है, वे आपको मजाकिया पल भी देते हैं, जो आपके चेहरे पर मुस्कुराहट ला देते हैं।
वहीं दूसरी तरफ, वहीं दूसरी तरफ फिल्म का सुस्त पेस न सिर्फ फिल्म की कमजोरी है बल्कि ये आपके धैर्य को चैलेंज करता रहेगा। शूजित सरकार अपने हर एक कैरेक्टर को पूरी तरह समझाने के लिए वक्त लेते हैं। वे जल्दबाजी में ऑडिएंस को फिल्म के उतार-चढ़ाव नहीं समझाते। कुछ को फिल्म की सुस्त रफ्तार काफी अजीब लग सकती है। वहीं डैन का शियुली से अचानक लगाव भी कई सवाल छोड़ जाता है।
परफॉर्मेंस की बात करें तो ये फिल्म वरुण धवन के करियर की अब तक की बेस्ट फिल्म है। बॉलीवुड के माचो हीरो की इमेज से इतर इस फिल्म में डैन के कैरेक्टर में वरुण धवन की मासूमियत आपको उनकी तरफ खींच लेगी। नास्तव में शूजीत सरकार की असामान्य कास्टिंग ने कमाल कर दिया और अपने लाउड और फालतू कैटेक्टर्स के लिए क्रिटिक्स के निशाने पर रहने वाले वरुण धवन की एक अलग ही इमेज देखने को मिली।
वहीं इस फिल्म से डेब्यू करने वाली बनीता संधु का प्रॉमिसिंग लगती हैं। कैरेक्टर की डिमांड के चलते उनके ज्यादा डायलॉग्स नहीं हैं लेकिन ये एक्ट्रेस अपनी बोलती आंखों से सबकुछ कह जाती हैं। वहीं शियुली की मां के किरदार में एक्ट्रेस गीतांजलि राव भी बेहतरीन लगी हैं।
जूही चतुर्वेदी के डायलॉग्स शानदार हैं। खास तौर पर वरुण धवन के डायलॉग्स, जो उदासी भरे बैकग्राउंस में कुछ रोशनी का काम करते हैं। गिरते हुए पत्ते, उदास शाम, हवा में नमी और ओस वाली घास पर गिरे शियुली के फूल.. अवीक मुखोपाध्याय ने बेहद खूबसूरती से कैमरे में कैद किया है। वहीं चंद्रशेखर प्रजापति की एडिटिंग भी बेहतरीन है।
शांतनु मोइत्रा का म्यूजित फिल्म की हर सिचुएशन पर परफेक्ट बैठता है और इसकी कहानी को और भी खूबसूरत बना देता है। वहीं उनका म्यूजिक सीन से एक इमोश्नल रिश्ता बनने पर मजबूर कर देता है।
पूरी फिल्म की बात करें तो, वरुण धनव-बनीता संधु की अक्टूबर की ये फिल्म देखने से ज्यादा महसूस करने वाली है। ये स्लो पेस वाली फिल्म देखना उनके बस की बात नहीं है जो इस तरह का सिनेमा पसंद नहीं करते। ये फिल्म प्यार की एक ऐसी कहानी है जो बिना कहे ही सबकुछ कह जाती है। और रात में खिलने वाले फूल खुलते हैं, पत्तियां मुरझा जाती हैं.. ये फिल्म प्यार की एक ऐसी कहानी है जो बिना कहे ही सबकुछ कह जाती है।
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