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हेलमेट फिल्म रिव्यू: कंडोम कॉमेडी को हंसी की फुहारों के साथ पेश करते हैं अपारशक्ति खुराना - प्रनूतन बहल
फिल्म - हेलमेट
निर्देशक - सतराम रमानी
लेखक - गोपाल मुढने, सतराम रमानी, रोहन शंकर
स्टारकास्ट - अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बनर्जी, आशीष वर्मा
प्रोड्यूसर - डीनो मोरिया, सोनी पिक्चर्स
प्लेटफॉर्म - ज़ी 5
काफी सालों पहले, बॉलीवुड में जॉन अब्राहम ने एक परदों के पीछे छिपे एक बड़े सामाजिक मुद्दे को क्रांतिकारी तरीके से कॉमेडी में पेश किया था विकी डोनर के साथ। इस फिल्म को प्रोड्यूस करते हुए जॉन अब्राहम ने बॉलीवुड को दिया था एक नायाब हीरा - आयुष्मान खुराना। स्पर्म डोनेशन पर बात करते हुए विकी डोनर ने हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू किया था।
अब लगभग एक दशक बाद, जॉन अब्राहम के प्रतिद्विंदी कहे जाने वाले एक्टर डीनो मोरिया ने ऐसे ही एक सामाजिक मुद्दे को ठीक उसी अंदाज़ में पेश करने की कोशिश की है, आयुष्मान खुराना के भाई अपारशक्ति खुराना के साथ। अपारशक्ति, इससे पहले कई फिल्मों में अपनी शानदार कॉमिक टाईमिंग से सपोर्टिंग भूमिकाओं में दिल जीत चुके हैं। हेलमेट लीड एक्टर के तौर पर उनकी पहली बड़ी कॉमर्शियल फिल्म है।
फिल्म में अपारशक्ति खुराना का साथ देते हैं अभिषेक बनर्जी, आशीष वर्मा और प्रनूतन बहल। लेकिन निर्देशक सतराम रमानी की ये फिल्म कितनी सफल होती है ये हम आपको बताएंगे। हेलमेट एक सामाजिक व्यंग्य बनने की पूरी कोशिश करती है। कंडोम कॉमेडी को अपारशक्ति खुराना, हंसी की फुहारों के साथ पेश करते हैं। लेकिन छेद हो चुके कंडोम व्यर्थ हैं उतना ही जितनी कि ये कॉमेडी फिल्म।
हेलमेट की कहानी
हेलमेट कहानी है लकी (अपारशक्ति खुराना) की जो एक बैंड कंपनी में गायक है और उसके मालिक की भांजी रूपाली (प्रनूतन बहल) से प्यार करता है। दोनों शादी करना चाहते हैं लेकिन रूपाली के पास एक अमीर NRI लड़के का रिश्ता है और लकी है इंटर पास। ऐसे में लकी को चाहिए पैसे जिससे कि वो रूपाली से शादी कर सके और इस पैसे कमाने के लिए ही फिल्म में एंट्री होती है कंडोम की जो कि फिल्म में लकी के लिए ब्रह्मास्त्र बनेगा।
कंडोम को लेकर इतनी शर्म है
फिल्म स्थित है उत्तर प्रदेश के एक जिले में जहां कंडोम की बिक्री बेहद कम है क्योंकि लोगों को कंडोम मांगने में शर्म आती है। इसलिए कोई निरोध का नाम भी नहीं लेता। इन लोगों में लकी और उसके दो दोस्त - सुलतान (अभिषेक बनर्जी) और माईनस (आशीष वर्मा) शामिल हैं। लेकिन जब इन तीनों को पैसे कमाने की धुन सवार होती है। और किस्मत इन्हें अमीर बनने का मौका उसी चीज़ से देती है जो चाहिए सबको पर मांगता कोई नहीं है - कंडोम। कंडोम को लेकर ये तीन युवा लड़के अपनी शर्म कैसे दूर करते हैं और कैसे पूरे जिले की शर्म दूर कर, कंडोम इस्तेमाल करने की आदत सबको डालते हैं, यही पूरी फिल्म का प्लॉट है।
कंडोम बना हेलमेट पर फिल्म नहीं बचा पाता
बात करें फिल्म के Oneliner की - चाहिए सबको पर मांगता कोई नहीं है तो इस एक लाईन के ढांचे पर सतराम रमानी ने पूरी फिल्म की इमारत खड़ी करने की कोशिश की है। ये लाईन है भी इतनी तगड़ी कि इस पर एक आलीशान इमारत खड़ी हो सकती थी। वहीं इस इमारत का बड़ा दरवाज़ा है कंडोम जिसे बड़े ही शानदार तरीके से फिल्म में हेलमेट का नाम दिया गया है। ये दो बातें फिल्म को एक बेहतरीन सोशल कॉमेडी बनाने के लिए भरपूर हैं। लेकिन सतराम रमानी इनका इस्तेमाल करने के बावजूद फिल्म में असफल हो जाते हैं।
निर्देशन
फिल्म को डायरेक्ट किया है सतराम रमानी ने और ओरिजिनल पटकथा भी उनकी ही है। लेकिन फिल्म की नींव यानि कि इसकी पटकथा बिल्कुल सपाट है। कंडोम जैसे विस्फोटक मुद्दे पर बेहद नीरस स्क्रीनप्ले एक अच्छी और मज़बूत कहानी के साथ दिल तोड़ने वाले लेवेल तक नाईंसाफी करता है। फिल्म की कहानी जितनी मज़बूत है सतराम रमानी इसे उतने ही नीरस तरीके से बनाते हैं। किसी सीन का कोई प्रभाव आप पर नहीं दिखता है। फिल्म में ज़रूरी मुद्दों पर जब भी बात होती है तो वो सीन आते आते तक फिल्म इतनी बोझिल हो चुकी होती है कि आप बस इसे खत्म करना चाहते हैं।
अभिनय
बात करते हैं फिल्म के मुख्य कलाकारों की - आयुष्मान खुराना, प्रनूतन बहल, आशीष वर्मा और अभिषेक बनर्जी। चारों मिलकर इस फिल्म को बढ़ाने की कोशिश करते हैं लेकिन किसी के हिस्से कुछ भी महत्त्वपूर्ण नहीं आता है। इसके लिए शायद लेखक को दोष देना बेहतर होगा क्योंकि ये चारों ही कलाकार इससे पहले, अपने हर प्रोजेक्ट में अपनी अभिनय क्षमता का विस्तार से प्रदर्शन भी कर चुके हैं और दर्शकों का दिल भी जीत चुके हैं। लेकिन इस फिल्म में यूं लगता है कि चारों कलाकार, दिशाहीन से फिल्म में भाग रहे हैं और दर्शकों का दिल जीतने की पुरज़ोर कोशिश करते हैं लेकिन विफल होते हैं।
सपोर्टिंग कास्ट
फिल्म में सपोर्टिंग एक्टर्स की भरमार है। आशीष विद्यार्थी से लेकर जमील खान तक शारिब हाशमी से लेकर रंजन राज तक। और ये सारे कलाकार, अपने अनुभव से इस फिल्म को बांधने की कोशिश करते हैं लेकिन इनमें सफल होते हैं केवल दो कलाकार। पहले हैं जमील खान जिन्हें आपने सोनी की सीरीज़ गुल्लक में देखा होगा। इस फिल्म में भी जमील खान अपने छोटे से किरदार में दिल जीतने की कोशिश करते हैं और सफल भी होते हैं।
तकनीकी पक्ष
हेलमेट एक हल्की फुल्की सामाजिक फिल्म है लेकिन इस फिल्म में कॉमेडी तो है ही नहीं। सानंद वर्मा के साथ कुछ सीन अच्छे बन पड़े हैं लेकिन शायद ऐसा केवल उनके स्क्रीन पर होने की वजह से है। फिल्म के म्यूज़िक से लेकर डायलॉग्स तक सब कुछ फीका है। वहीं एडिटिंग से अगर फिल्म को कसा जाता तो शायद ये कुछ हद तक दर्शकों को बांध कर रख पाने में सफल हो पाती।
इमोशन के साथ ड्रामा
फिल्म में जब कॉमेडी काम नहीं कर पाती है तो इसमें बाकी चीज़ें जोड़ने की कोशिश की जाती हैं। ड्रामा से लेकर इमोशन तक। इतना ही नहीं फिल्म को देश की राष्ट्रीय समस्या जनसंख्या विस्फोट के साथ भी आंकड़ों के साथ जोड़ने की कोशिश की जाती है। कुल मिलाकर फिल्म में एक ऐसी खिचड़ी बनती हैं तो इतनी बेस्वाद है कि आप बीमारी की मजबूरी में भी नहीं खाएंगे।
पूरी तरह विफल होती है फिल्म
हेलमेट एक अच्छे मुद्दे पर बनी फिल्म है जो कि शायद एक शॉर्ट फिल्म या आधे घंटे के वेब एपिसोड के तौर पर ज़रूर अच्छे तरीके से सफल हो सकती थी। लेकिन 1.30 घंटे में ये फिल्म ना ही अपने मुद्दे को मनोरंजक तरीके से सामने रख पाती है और ना ही कंडोम के प्रति ज़रूरी मुद्दों के लिए जागरूक कर पाती है। जबकि फिल्म ये सब करने की कोशिश करती है। इस मुद्दे से जुड़ा ऐसा कुछ नहीं हो जो फिल्म में छूटा हो - सेक्स समस्याओं सेे लेकर जनसंख्या तक।
निराश करती है फिल्म
कुल मिलाकर हेलमेट एक अच्छे विषय पर बनी बेहद निराशाजनक फिल्म है। फिल्म की स्टारकास्ट अच्छी है जो इस फिल्म के ज़रिए आपको निराश करेगी और इन प्रतिभाशाली कलाकारों को इस फिल्म में व्यर्थ होते देखना आपके दिल को दुखी करेगा। हमारी तरफ से फिल्म 1.5 स्टार्स।
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