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'फ़िल्मों के लिए कुछ भी कर सकती हूँ'
जेपी दत्ता की रिफ़्यूजी से करियर की शुरुआत करने वाली करीना को इम्तियाज़ अली की जब वी मेट तक की सफलता के लिए क़रीब 26 फ़िल्मों का इंतज़ार करना पड़ा. इस दौरान उन्होंने लगभग हर बड़े सितारे के साथ फ़िल्में कीं लेकिन उन्हें एक हिट अभिनेत्री नहीं माना गया.
सात साल पहले दिल्ली में सतीश कौशिक और बोनी कपूर की फ़िल्म मिलेंगे-मिलेंगे के सेट पर वह अपने करियर और संबंधों पर ख़ूब बातें कर लेती थीं लेकिन टशन तक आते-आते जहाँ उनका अंदाज़, लुक और ख़ुद के बारे में बात करने का तरीका बदला वहीं इस साल की चर्चित और सबसे महँगी मानी जा रही निर्देशक शब्बीर ख़ान और अभिनेता अक्षय कुमार के साथ बनी फ़िल्म कम्बख़्त इश्क़ तक आते आते उनकी पहचान भी बदल गई.
दिल्ली में उनके चेहरे पर दुबई से सीधी हवाई यात्रा की थकान दिखाई दे रही थी लेकिन उनके करियर की कामयाबी की चमक उससे भी बढ़कर थी.
आपकी इस फ़िल्म की साल भर से चर्चा हो रही है लेकिन तमाम बतकहियों , हॉलीवुड की लोकेशन , वहाँ के सिल्वेस्टर स्टेलोन और डेनिस रिचर्डसन जैसे कुछ बड़े सितारों के बाद भी इसमें ऐसा क्या है जो इसे आपकी अब तक की सबसे बेहतरीन फ़िल्म बना सकता है. जबकि अक्षय के साथ आपकी टशन और उनकी हालिया चाँदनी चौक टू चाइना जैसी फिल्मों का परिणाम अच्छा नहीं रहा ?
मैंने अक्षय के साथ क़रीब सात फिल्में की हैं. वे हमारे सिनेमा के बड़े अभिनेता हैं. मेरी उनकी पहली मुलाक़ात करिश्मा की फिल्म की शूटिंग के समय हुई थी. जहाँ तक इस फ़िल्म की बात है तो इसकी कहानी से लेकर संवाद और प्रस्तुतीकरण तक सब कमाल का है. इसमें मेरी और अक्षय की जो नोंक-झोंक है वो कभी किसी फ़िल्म में नहीं दिखाई दी है. सबसे बड़ी बात है कि यह पहली बार पूरी तरह हॉलीवुड में फ़िल्माई गई है.
ये बातें तो तब भी कही गईं थीं जब टशन रिलीज़ की गई थी लेकिन ज़बरदस्त प्रचार के बावजूद वो नहीं चली. कहा गया कि टशन एक हॉलीवुड नक़ल थी. जहाँ तक आपकी कम्बख़्त इश्क की नोंकझोंक की बात है तो प्रोमोज़ बता रहे हैं कि आपकी अब तक की सबसे शानदार नोंक-झोंक वाली फ़िल्म शाहिद कपूर के साथ बनी इम्तियाज़ अली की जब वी मेट ही है.
ऐसी बात नहीं है, उसमें बस मेरा लुक और मेरी वास्तविक प्रकृति मिलजुल गई थी. उसमें मेरा गीत नाम की सिख लड़की का चरित्र लोगों को भा गया था.
जब आपको लोगों ने उस चरित्र में पसंद किया और वो फ़िल्म सफल रही तो फिर आपको टशन में जीरो साइज़ तक जाने की क्या ज़रूरत थी और कम्बख़्त इश्क में आप फिर वही टोटके अपना रही हैं. सुना तो यह भी है कि आपने पहले बिकनी और चुम्बन के शॉट दिए और फिर उन्हें हटाने के लिए निर्माता और निर्देशक पर दबाव बनाया ?
मैं फ़िल्मों और एंटरटेंमेंट के लिए कुछ भी कर सकती हूँ. लेकिन हर बार मीडिया के पास मुझसे ज़्यादा खबरें होतीं हैं. यदि मैंने प्रोमोज़ से दृश्यों को हटाने की बात की होती तो फिर वे अब तक क्यों दिखाई दे रहे हैं. मैं जो कुछ करती हूँ उस पर पूरी तरह विचार करके ही करती हूँ. कम्बख़्त इश्क में मेरा चरित्र ही इस तरह बुना गया है... उसमें मैं जींस पहनकर स्विमिंग पूल में नहाने नहीं जा सकती थी. लोगों को फ़िल्म में मेरा सुपर मॉडल स्मृता का चरित्र पसंद आएगा.
आपने जब भी बड़े अभिनेताओं के साथ फ़िल्में कीं , लोगों को आपका काम बहुत अधिक पसंद नहीं आया जबकि जब भी आप फ़रदीन , तुषार या शाहिद के साथ दिखीं तो आप सराही गईं ?
जब हम किसी बड़े बैनर या अभिनेता के साथ काम करते हैं तो या तो उसमें कई दूसरे कलाकार काम कर रहे होते हैं या उसकी चमक-दमक में काम दब जाता है. ऐसे में ख़ुद को साबित करना आसान नहीं होता. मैंने हमेशा ही ख़तरे और चुनौतियाँ स्वीकार की हैं. तब भी जब मैं फिल्मों में आना चाहती थी और अब भी जब लोग केवल अफ़वाहों के सहारे ज़िंदगी जीने की कोशिश करते हैं.
आपने जब शुरुआत की तब करिश्मा अपने करियर के चरमोत्कर्ष पर थीं. कहा गया कि उन्होंने आपको स्थापित करने के लिए अपना करियर दाँव पर लगा दिया ?
नहीं. हम दोनों ही शुरू से फ़िल्में करना चाहते थे. मेरी बहन और मेरी माँ ने इसमें हमेशा मदद की. मैं तो हार्वर्ड में पढ़ने चली गई थी और मेरी शुरुआत ऋतिक के साथ कहो ना प्यार है से होने वाली थी, लेकिन शूटिंग के बाद भी मैं उसे नहीं कर पाई. बाद में जेपी दत्ता जी की रिफ्यूजी से शुरुआत हुई. करिश्मा ने हमारे परिवार की परंपरा तोड़कर फिल्मों में आने का फैसला किया. हमारा परिवार फ़िल्मों का परिवार है. हम दोनों ही उनके बग़ैर शायद नहीं रह सकते थे. ऋतिक के साथ हालाँकि बाद में मैंने तीन फ़िल्में की.
आपके हिस्से में ज़्यादातर बड़े निर्देशकों की फ़िल्में आईं पर चमेली , देव और ओंकारा जैसी ऑफ़बीट फिल्में करने के बाद भी आपको कभी बड़ी अभिनेत्री नहीं माना गया और आपकी शुरुआत में आपके हाथों से बाजीराव मस्तानी , ब्लैक , गुलेल और वॉटर जैसी फ़िल्में खिसक गईं ?
ऐसा कई बार होता है. पर मैं नहीं बता सकती कि मैंने जो फ़िल्में चुनीं उनके कथानक और पटकथाओं में क्या गड़बड़ हो गई. हो सकता है कि मैंने ही ग़लत फ़िल्में चुन लीं. लेकिन किसी फिल्म के फ़्लॉप होने से कोई कलाकार कैसे फ़्लॉप होता है मैं नहीं जानती. जबकि मैंने कुछ फ़िल्मों में नेगेटिव शेड की भूमिकाएँ तक कीं. यहाँ सिफारिश काम नहीं आती.
यदि आपमें प्रतिभा है तो आप एक दिन सामने आ जाते हैं. करिश्मा सहित ऐसे कई कलाकार हैं जिन्होंने इंडस्ट्री में दर्जन फ़्लॉप फ़िल्में दीं और एक दिन ख़ुद को साबित किया. फ़िल्म बनाना किसी अकेले का काम नहीं. सबकी मेहनत और रचनात्मकता इससे जुड़ी रहती है. मेरे लिए न पहली फ़िल्म आसान थी और न कम्बख़्त इश्क़ आसान है.
जब लोग आपसे आपकी पर्सनल लाइफ़ से जुड़े सवाल करते हैं तो कैसा लगता है ?
पहले बुरा लगता था लेकिन अब ऐसे सवाल मुझे उबाऊ लगते हैं. उन्हें समझना चाहिए कि हर आदमी की अपनी ज़िंदगी होती है और उसे अपनी तरह से जीने का पूरा अधिकार भी. ज़िंदगी ज़िंदगी होती है तीन घंटे की फ़िल्म नहीं जहाँ सब कुछ ठीक ही हो जाए.
अब आपकी आने वाली फ़िल्मों के बारे में क्या कहना है आपका ?
मैंने हमेशा से ऐसी फ़िल्में करने की कोशिश की जो मुझे मीना कुमारी या नर्गिस की तरह अभिनेत्री साबित करें स्टार नहीं. इसलिए मैंने हर तरह के कंटेंट वाली फ़िल्में की. अब भी मेरी आने वाली फ़िल्मों- मैं और मिसेज खन्ना, मिलेंगे मिलेंगे, थ्री इडियट्स, स्टेप मॉम, ध्रुव, एजेंट विनोद और क़ुर्बान में आपको यही देखने को मिलेगा.
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