पानीपत (2019)(U/A)
Release date
06 Dec 2019
genre
पानीपत कहानी
पानीपत 2019 की एक बॉलीवुड ऐतिहासिक पीरियड ड्रामा है, जिसे आशुतोष गोवारिकर ने डायरेक्ट किया है। फिल्म में संजय दत्त, अर्जुन कपूर और कृति सेनन मुख्य किरदारों में हैं। फिल्म, पानीपत की तीसरी लड़ाई पर आधारित है, जो 18वीं शताब्दी में अब्दाली और मराठाओं के बीच 14 जनवरी 1761 में लड़ी गई थी। इस फिल्म में संजय दत्त अफगानिस्तान के, एक क्रूर राजा अहमद शाह अब्दाली के खतरनाक अवतार में है। अर्जुन कपूर सदाशिव राव भाऊ के किरदार में है और कृती सेनन सदाशिव राव भाऊ की दूसरी पत्नी पार्वती बाई के किरदार में हैं। फिल्म में कृति सेनन का एक डायलाग है जिसमे वह कहती हैं की, "मराठा, हिन्दुस्तान के वो योद्धा, जिनके लिए उनका धर्म और कर्म, उनकी वीरता है।"
फिल्म का निर्माण सुनीता गोवारीकर और रोहित शेलतकर ने किया है। आशुतोष गोवारिकर प्रोडक्शन के बैनर तले बनी, यह फिल्म 6 दिसंबर 2019 को बड़े पर्दे पर रिलीज़ की गयी है।
पानीपत के तीसरे युद्ध पर आधारित आशुतोष गोवारिकर की फिल्म 'पानीपत' वीर मराठाओं को पूरी तरह से सम्मानित करती है। मराठों और अफगानों के बीच लड़ी गई यह लड़ाई ऐतिहासिक है और निर्देशक ने इसे बखूबी उतारा है। अर्जुन कपूर, कृति सैनन और संजय दत्त अभिनीत यह फिल्म मराठों की वीरता दिखाने में सफल रही है, लेकिन भावनाओं की कमी खली है।
मराठा और अफगानों के बीच हुई पानीपत की यह लड़ाई जीत की कहानी नहीं है। लेकिन इतिहास में इसे मराठों की अद्भुत वीरता के लिए जाना जाता है। सदाशिवराव भाऊ (अर्जुन कपूर) के नेतृत्व में मराठों ने उदगिरी किला पर फतेह हासिल कर लिया और वहां से निज़ामशाही की हुकुमत खत्म की। 18वीं सदी में हिंदुस्तान में मराठा साम्राज्य का बोलबाला था। नाना साहेब पेशवा (मोहनीश बहल) बढ़ते साम्राज्य और लगातार मिलती जीत पर खुश थे। लेकिन उनकी खुशी ज्यादा समय तक नहीं टिकी क्योंकि अफगानिस्तान का शासक अहमद शाह अब्दाली (संजय दत्त) हिंदुस्तान अब देहली पर अपनी कब्जा जमाना चाहता है। मुगल शासक नाज़िब- उद-दौला हिंदुस्तान से मराठों का साम्राज्य खत्म करने की साजिश में अहमद शाह अब्दाली की मदद करता है और यहीं से बदलता है इतिहास। powered by Rubicon Project अफगानों को हिंदुस्तान से खदेड़ने के लिए मराठा सेना देहली की ओर रुख करती है। पुणे से देहली के सफर में सदाशिव राव के साथ उनकी पत्नी पार्वती बाई (कृति सैनन), शमशेर बहादुर (बाजीराव- मस्तानी के बेटे) और विश्वास राव (नाना साहेब पेशवा के बेटे) भी हैं। अब्दाली के लाख सेना के मुकाबले मराठों के पास महज 45 हजार की सेना है। ऐसे में वो उत्तर भारत के दूसरे राजाओं को अपने साथ इस युद्ध में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं, ताकि अब्दाली से हमेशा हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सके। ऐसे में कुछ राजाओं से उन्हें मदद मिलती है और कुछ से मिलता है विश्वासघात। तमाम चुनौतियों को पार करते हुए पानीपत के मैदान में अफगानी सेना और मराठा आमने सामने आते हैं। 14 जनवरी 1761 को लड़ी गई इस लड़ाई में मराठा योद्धाओं ने अपना ऐसा कौशल दिखाया था कि युद्ध के बाद अहमद शाह अब्दाली ने भी उनके हिम्मत और दृढ़ता की दाद दी थी। मराठा यह युद्ध हारकर भी जीत गए थे।