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    माय नेम इज खान कहानी

    माय नेम इज खान वर्ष 2010 में रिलीज हुई एक भारतीय ड्रामा है, जिसका निर्देशन करण जौहर और निर्माण हीरू जौहर और गौरी खान ने किया है। फिल्म में शाहरुख खान और काजोल मुख्य भूमिका में हैं। 

     फिल्म की कहानी 
    'दुनिया में सिर्फ दो किस्म के इंसान होते हैं एक वो जो बुरे होते हैं और दूसरे वो जो अच्छे होते हैं। मेरा नाम रिजवान खान है और मैं एक अच्छा इंसान हूं।'' फिल्म का ये संवाद शायद लोकप्रिय हो जाए। कहानी के मुख्य किरदार का नाम है रिजवान खान, हालांकि अन्य किरदारों की भी अपनी अहमियत है। रिजवान खान, मुंबई के बोरीवली इलाके में रहने वाला एक शख्स है जो 'एसपर्गर सिंड्रोम' से पीड़ित हैं। आजकल बॉलीवुड में किसी बीमारी को लेकर फिल्म बनाने का चलन शुरू हो गया है।

    अच्छी बात है कि बॉलीवुड अब अपने कलाकारों को 'बल्ड कैंसर' का मरीज नहीं बनाता। जो सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक में बॉलीवुड की सबसे लोकप्रिय बीमारी रही है। आज उनके पास मरीज बनाने के लिए तरह तरह की बीमारियां मौजूद हैं। रिजवान बेहतर जीवन की तलाश में मुंबई से लॉस एंजेलिस चला जाता है। एसपर्गर से पीड़ित, बेहद शर्मीले और लोगों से घुलने-मिलने में कठिनाई महसूस करने वाले इस युवक को मंदिरा नाम की एक भारतीय महिला से प्यार हो जाता है। दोनों शादी कर लेते हैं। ये सारा घटनाक्रम 9/11 से पहले का है।

    और इसके आगे ही असली कहानी की शुरूआत होती है। किस तरह 9/11 के हमले बाद एक व्यक्ति जिंदगी में तूफान ले आते हैं क्योंकि उसके नाम के साथ 'खा़न' जुड़ा होता है। फिल्म में धर्म भी है, राजनीति भी, हताशा भी है, उम्मीदें भी। आखिर में अपने प्यार को वापस पाने के लिए रिजवान खान अमेरिका के राष्ट्रपति तक पहुंच जाता है। फिल्म का अंत बहुत हद तक नाटकीय हो जाता है। लेकिन एक सच सामने आता कि अपना हक पाने के लिए आपको दुनिया के सबसे ताकतवर देश की ओर देखना होगा क्योंकि वही सब का कर्ता धर्ता है। ये आप पर निर्भर करता है फिल्म देखने के बाद आप क्या संदेश साथ लेकर जाते हैं।
     
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