समीर
Born on 24 Feb 1958 (Age 66) Bnaras, Uttar-Pradesh
समीर जीवनी
बॉलीवुड के जाने-माने गीतकार शीतला पाण्डेय उर्फ़ मीर गीत लेखन के साथ उन्हें मर्मस्पर्शी बनाने की दक्षता भी रखते हैं। बालीवुड में अपने गीतों से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध करने वाले गीतकार समीर लगभग चार दशक से सिनेप्रेमियों के दिलों पर राज कर रहे है। समीर ने लगभग 6,000 फिल्मी और गैर फिल्मी गाने लिखे है। उन्होंने हिन्दी के अलावा भोजपुरी, मराठी फिल्मों के लिये भी गीत लिखे है। समीर ने अपने तीन दशक के अपने करियर में लगभग 500 हिंदी फिल्मों के लिए गीत लिखे। समीर को अब तक तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
पृष्ठभूमि
समीर का जन्म 24 फरवरी 1958 को बनारस उत्तर प्रदेश में हुआ। उनके पिता अंजान फिल्म जगत के मशहूर गीतकार थे। बचपन से ही समीर का रूझान अपने संगीत की ओर था।
पढ़ाई
समीर ने अपनी शुरूआती पढ़ाई बनारस में ही संपन की हैं। उन्होंने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से मास्टर्स ऑफ़ कॉमर्स में मानक डिग्री की उपाधि ली है। उनके परिवार की इच्छा थी, की वह एक बैंक अधिकारी बने, लेकिन संगीत में रूचि होने के कारण उन्होंने यह नौकरी ठुकरा दी , और पहुँच गए मुंबई।
करियर
मुंबई पहुंचकर समीर ने तीन सालों तक कड़ा संघर्ष किया। काफी मेहनत करने के बाद 1983 में उन्हें बतौर गीतकार ''बेखबर'' फिल्म के लिये गीत लिखने का मौका मिला। इस बीच समीर को "इंसाफ कौन करेगा", "दो कैदी", "रखवाला", "बीबी हो तो ऎसी" जैसी कई बड़े बजट की फिल्मों में काम करने का अवसर मिला, लेकिन इन फिल्मों की असफलता के कारण वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में नाकामयाब रहे।
लगभग 10 वर्ष तक मुंबई में संघर्ष करने के बाद वर्ष 1990 में आमिर खान-माधुरी दीक्षित अभिनीत फिल्म ''दिल'' में अपने गीत 'मुझे नींद ना आये' की सफलता के बाद समीर गीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये।वर्ष 1990 में ही उन्हें महेश भट्ट की फिल्म आशिकी में भी गीत लिखने का अवसर मिला। फिल्म 'आशिकी' में 'सांसों की जरूरत है जैसे', 'मैं दुनिया भूला दूंगा' और 'नजर के सामने जिगर के पास' गीतों की सफलता के बाद 'समीर' को कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गये।जिनमें बेटा, बोल राधा बोल, साथी, और 'फूल और कांटे' जैसी बडे बजट की फिल्में शामिल थी। इन फिल्मों की सफलता के बाद उन्होंने सफलता की नयी बुलंदियों को छुआ और एक से बढकर एक गीत लिखकर श्रोताओं को मंत्रमुंग्ध कर दिया
वर्ष 1997 में अपने पिता अंजान की मौत और अपने मार्गदर्शक गुलशन कुमार की हत्या के बाद समीर को गहरा सदमा पहुंचा। उन्होंने कुछ समय तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया और वापस बनारस चले गए, लेकिन उनका मन वहां भी नहीं लगा और एक बार फिर नए जोश के साथ वह मुंबई आ गए और 1999 में प्रदर्शित फिल्म "हसीना मान जाएगी" से अपने सिने करियर की दूसरी पारी शुरू की।