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    अरुणा ईरानी जीवनी

    अरुणा ईरानी हिंदी सिनेमा की मंझी हुई अभिनेत्रीं और टीवी कलाकार  हैं।उन्होंने बड़े पर्दे पर बाल कलाकार, कॉमेडियन, खलनायिका, हीरोइन, चरित्र अभिनेत्री कई प्रकार की भूमिका अदा कर चुकीं हैं। अरुणा ईरानी ने अब तक  अभिनय के सफर में 300 से ज्यादा हिंदी फिल्मों और टीवी शोज में काम कर चुकीं हैं। 

    पृष्ठभूमि 
    अरुणा ईरानी का जन्म मुंबई में 3 मई, 1952 को हुआ था। उनके एक भाई हैं- फिल्म निर्देशक इंद्र कुमार। 

    शादी
    अरुणा ईरानी की शादी हिंदी फिल्म निर्देशक कुकु कोहली से हुई है।  वह हिंदी सिनेमा के  स्थापित निर्माता-निर्देशक हैं। 

    करियर 
    अरुणा ईरानी ने अपने करियर की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में फिल्म गंगा जमुना से की थी।  उस समय वह महज नौ साल की थी।  इसमें उन्होंने चरित्र अभिनेत्री आजरा के बचपन की भूमिका निभाई थी और हेमंत कुमार के गीत "इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके" में अपने गुरुजी के साथ गा रहे बच्चों में वे भी शामिल थीं। 

    'थोड़ा रेशम लगता है', 'चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी', 'दिलबर दिल से प्यारे', 'मैं शायर तो नहीं' बॉलीवुड फिल्मों के ये वो सुपरहिट गाने हैं जो अरुणा ईरानी के डांस के लिए भी फेमस हैं। वे 'जहां आरा' (1954), 'फर्ज' (1967), 'उपकार' (1967), 'आया सावन झूम के' (1969), 'कारवां' (1971) जैसी सफल फिल्मों में काम कर चुकी हैं। फिल्म 'कारवां' में अरुणा के काम को सभी ने बहुत सराहा था। इस फिल्म के गाने 'चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी', 'दिलबर दिल से प्यारे' अरुणा के डांस की वजह से काफी लोकप्रिय हुए थे।
     
    अरुणा के करियर में महत्वपूर्ण मोड़ आया 1971 में "कारवाँ" के साथ। इस सुपरहिट म्यूजिकल फिल्म में उन्होंने तेज-तर्रार बंजारन की यादगार भूमिका निभाते हुए अपने अभिनय कौशल के साथ-साथ नृत्य की प्रतिभा का भी प्रदर्शन किया। 

    "दिलबर दिल से प्यारे" और "चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी" जैसे गीतों से उन्होंने अपना लोहा मनवा लिया। निर्माताओं ने उन्हें ऐसी भूमिकाओं के लिए माकूल पाया जिनमें कुछ नकारात्मकता का पुट हो और जिनमें एकाध डांस का भी स्कोप हो। 

    इस बीच अरुणा को महमूद की "बॉम्बे टू गोवा" (1972) में हीरोइन का रोल मिला। हीरो थे अमिताभ बच्चन जो तब तक एक संघर्षशील कलाकार ही थे। "बॉम्बे टू गोवा" हिट तो हुई, लेकिन अरुणा हीरोइन के रूप में करियर न बना सकीं। हाँ, कई फिल्मों में सहायक भूमिका निभाते हुए वे हीरोइन पर भी भारी पड़ जाती थीं। 

    1973 में राजकपूर की "बॉबी" में एक संक्षिप्त मगर दिलचस्प भूमिका में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। इसके बाद वे लगातार एक सशक्त चरित्र अभिनेत्री के तौर पर अपना स्थान पुख्ता करती गईं। 

    "खेल-खेल में", "मिली", "लैला मजनू", "शालीमार" आदि उनकी महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। "कुर्बानी" में उन्होंने बदले की आग में धधकती स्त्री के रोल में फिरोज खान, विनोद खन्ना, जीनत अमान, अमजद खान जैसे कलाकारों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। 

    "लव स्टोरी" में वे "क्या गजब करते हो जी" गाते हुए कुमार गौरव को रिझाती नजर आईं, तो "कुदरत" में मंच पर शास्त्रीय अंदाज में "हमें तुमसे प्यार कितना" गाते हुए दिखाई दीं। 

    गुलजार की क्लासिक कॉमेडी "अंगूर" में देवेन वर्मा की पत्नी के रूप में वे अपने किरदार में पूरी तरह डूबी हुई थीं। 1984 में "पेट, प्यार और पाप" के लिए उन्हें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री अवॉर्ड मिला।

    नब्बे के दशक में अरुणा ईरानी ने "बेटा" और "राजा बाबू" जैसी फिल्मों से माँ के रोल निभाने शुरू किए। "बेटा" में उन्होंने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता। 

    अपने करियर के दौरान अरुणा कई मराठी फिल्में भी कर चुकी हैं। इतना ही नहीं उन्होंने बड़े पर्दे के साथ छोटे पर्दे पर भी किस्मत आजमाई। 2000 में उन्होंने धारावाहिक 'जमाना बदल गया' से छोटे पर्दे पर अभिनय की शुरुआत की। 'कहानी घर घर की'(2006-2007), 'झांसी की रानी' (2009-2011), 'देखा एक ख्वाब' (2011-2012), 'परिचय' (2013-2013), 'संस्कार धरोहर अपनो की' (2013-14) जैसे कई टीवी शोज में अरुणा अहम किरदार निभा चुकी हैं।
     
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