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सीरीज़
-
फोर
मोर
शॉट्स
प्लीज़
सीज़न
3
प्लेटफॉर्म
-
अमेज़ॉन
प्राइम
वीडियो
स्टारकास्ट
-
कीर्ति
कुल्हाड़ी,
सयानी
गुप्ता,
बानी
जे,
मानवी
गगरू,
प्रतीक
बब्बर,
सिमॉन
सिंह,
नील
भूपलम,
समीर
कोच्चर
एपिसोड/अवधि
-
10
एपिसोड/40
मिनट
प्रति
एपिसोड
डायरेक्टर
-
जोईता
पटपटिया
प्रोड्यूसर
-
रंगीता
प्रीतिश
नंदी,
प्रीतिश
नंदी
लेखिका
-
देविका
भगत
डायलॉग्स
-
इशिता
मोईत्रा
Four More Shots Please Season 3 review: फोर मोर शॉट्स प्लीज़, अमेज़ॉन प्राईम वीडियो की वो सीरीज़ है जो अपने पहले सीज़न में एमी इंटरनेशनल अवार्ड्स तक के लिए नॉमिनेट की जा चुकी है। अब ये सीरीज़ अपने तीसरे सीज़न के साथ वापस आ चुकी है। चार दोस्त - अंजना, सिद्धि, उमंग और दामिनी की कहानी। चारों की ज़िंदगी में अपनी दिक्कते हैं और ये परेशानियां से चारों मिलकर सुलझाती हैं।
ज़िंदगी
का
हर
उतार
चढ़ाव
इन
चार
सहेलियों
ने
मिलकर
देखा
है।
चाहे
वो
निजी
दिक्कतें
हों
या
फिर
काम
की
दिक्कतें।
लेकिन
दो
सीज़न
के
बाद
इन
चार
सहेलियों
की
ज़िंदगी
में
तीसरे
सीज़न
में
क्या
कुछ
ऐसा
नया
होता
है
जो
आपको
इनकी
ज़िंदगी
से
जुड़ने
के
लिए
मजबूर
करे?
जानिए
हमारी
पूरी
समीक्षा
में।
पिछले सीज़न की झलक
सिद्धि पटेल (मानवी गागरू), उमंग सिंह (बानी जे), दामिनी रिज़्वी रॉय (सयानी गुप्ता), अंजना मेनन (कीर्ति कुल्हाड़ी) चार पक्की वाली सहेलियां हैं। पहले दो सीज़न में ये अपनी ज़िंदगी में अलग अलग परेशानियों से जूझ रही थीं। जहां, सिद्धि अपने मोटापे के लिए अपनी मां से ताने सुनते सुनते थक जाती थी और उनके अमीर लड़कों के रिश्तों में रिजेक्ट होते होते जूझ रही थी वहीं उमंग जो कि अपने QUEER होने के अस्तित्व के साथ अपने परिवार और समाज से लड़ रही है। दामिनी अपने काम में एक सम्मानजनक स्थान पाना चाहती है तो अंजना अपने एक्स पति को किसी और के साथ Move on करता देख खुद को अकेला महसूस कर रही है।
कहानी
इस सीज़न की शुरुआत वहीं से होती है जहां पिछला सीज़न खत्म होता है - सिद्धि के पापा के देहांत की खबर के साथ। सिद्धि के पिता की शोक सभा में तीनों दोस्त सिद्धि का सहारा बनती हैं। वहीं इस सीज़न में सिद्धि की कहानी, उसकी मां से भी जुड़ती दिखती है। इसके अलावा, उमंग जहां अपने पिता से मिलने और उन्हें अपने अस्तित्व को स्वीकार करने की कोशिश करने के लिए गांव जाती है तो गर्भपात करने के बाद दामिनी अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ पाने की कोशिश कर रही है पर असफल है। वहीं अंजना अपने एक्स पति और अपने सह कर्मचारी के बीच खुद को फंसा हुआ महसूस कर रही है और इन दोनों ही मर्दों से छुटकारा पाना चाहती है। पूरा सीज़न मुख्य रूप से इसी जद्दोजहद में घूमता है।
किरदार
इस बार चारों किरदारों को आप अच्छी तरह से जानते हैं और इनकी परेशानियों को भी। यही वजह है कि ये सीज़न शुरूआत के साथ ही आपको ऊबाने लगता है। क्योंकि किसी के जीवन में कुछ ऐसा नया नहीं हो रहा है। सबकी परेशानियां घूम फिर कर वही दिक्कतें हैं जो पहले सीज़न से चली आ रही हैं लेकिन जिसका समाधान, तीन सीज़न के बाद भी निकल पाना मुश्किल लग रहा है। सबकी लव लाइफ इससे भी ज़्यादा दिक्कत भरी है। हर किसी की ज़िंदगी में लड़के आ रहे हैं और जा रहे हैं और इनके साथ तालमेल बिठा पाना आपको भटकाता रहेगा। Women Empowerment के नाम पर जहां पहले दो सीज़न में आपको ये दिक्कतें वाजिब लगती थीं वहीं अब इस सीज़न में आपको सब कुछ एक Hype लिए हुए बनावटी लगने लगता है। किसी के किरदार में कोई नयापन नहीं दिखता है।
अभिनय
मानवी गागरू और कृति कुल्हाड़ी के हिस्से पूरी सीरीज़ में मज़बूत सीन आए हैं। या फिर जो सीन उनके हिस्से आए हैं, इन दोनों ने ही उसे इतनी बाारीकी और मज़बूती से परदे पर उतारा है कि बिना सिर पैर की आगे बढ़ती कहानियों के बीच भी आपको सिद्धि और अंजना की दिक्कतें और उनके संघर्ष समझ आने लगते हैं। बानी जे के रियल और रील व्यक्तित्व में ज़्यादा अंतर नहीं रखा गया है लेकिन जहां ये बात पिछले दो सीज़न में उनके हित में काम की वहीं इस सीज़न में बानी ये मौका भुना नहीं पाती हैं। उनके घरवालों और उनके बीच उनके अस्तित्व के संघर्ष को लेकर जो सीन बने उन्हें एक गहरा असर छोड़ना चाहिए था लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है। सयानी का किरदार दामिनी, पूरे सीरीज़ में अपनी जगह ढूंढने के लिए संघर्ष करता दिखता है और इसलिए सयानी खुद भी संघर्ष करती दिखती हैं।
क्या है अच्छा
इस बार इस सीरीज़ में इन चार सहेलियों की आपस की बॉन्डिंग से हटकर इनके अपने परिवार और अपने आस पास लोगों के साथ संबंधों को दिखाने की कोशिश कुछ हद तक सफल होती है। लेकिन जितनी जल्दी ये छोटे छोटे किस्से बुने जाते हैं उतनी ही बेतरतीबी से इन्हें बीच में ही छोड़ दिया गया है। जैसे इस सीरीज़ की शुरूआत के साथ सिमॉन सिंह और मानवी गागरू के मां - बेटी के रिश्ते पर फोकस होता है लेकिन उसे अधपका छोड़ दिया जाता है। ऐसे ही आपको अंजना की बेटी आर्या का अपने पिता की नई पत्नी और बेटे के साथ एक अनोखा रिश्ता बनाना दिलचस्प दिखता है लेकिन उस एंगल पर भी कोई काम नहीं किया जाता है। लेखिका बस उन दिक्कतों को छूकर आगे बढ़ गई हैं।
क्या करता है निराश
इस सीरीज़ में सबसे ज़्यादा निराश करते हैं इसके पुरुष किरदार। महिलाओं की दुनिया बनाने के चक्कर में पुरूषों को Prop की तरह इस्तेमाल किया जाना साफ दिखता है। ये जताना और बार बार जताना कि आदमियों के बिना भी दुनिया चल सकती है बहुत ही ज़बरदस्ती दिमाग में डाला हुआ ख्याल लगने लगता है। जैसे हर पुरूष के पीछे एक महिला का हाथ होता है वैसे ही हर कामयाब महिला भी कुछ बेहद सुलझे हुए पुरूषों के साथ जीवन में आगे बढ़ सकती है। लेकिन पता नहीं क्यों इस सीरीज़ में Women Empowerment को पुरूषों के बिना दिखा पाना ही मज़बूत संबल बनाया गया है। यही कारण है कि किसी भी पुरूष किरदार पर ना ही काम किया गया है और ना ही महिलाओं के जीवन में उनकी अहमियत पर ज़्यादा फोकस करने की कोशिश की गई है।
सबसे कमज़ोर पक्ष
पिछले दो सीज़न में इस सीज़न का सबसे मज़बूत पक्ष था इसके डायलॉग्स जो कि इस सीज़न में सबसे कमज़ोर कड़ी बनकर उभरते हैं। Hinglish में होने के बावजूद इस सीरीज़ के संवाद, लोगों को इसके मुद्दों से जोड़ने का काम करते हैं। लेकिन इस सीज़न में सब कुछ सतही रूप से और बेढब तरीके से परोसा गया है जिससे 2 - 3 एपिसोड के बाद ही आपका साथ पूरी सीरीज़ से धीरे धीरे छूटने लग जाता है।
देखें या नहीं
Four More Shots Please के अपने अलग फैन्स है और ये फैन्स भी इस तीसरे सीज़न के साथ निराश ही होंगे। लेकिन चूंकि उन्होंने पिछले दो सीज़न देखे हैं तो उन्हें ये तीसरा सीज़न देखने में ज़्यादा दिक्कत नहीं होगी। लेकिन अगर आपने ये सीरीज़ नहीं देखी है तो इसे तीसरे सीज़न तक देखना समय की बर्बादी है क्योंकि इस नए सीज़न में ऐसा कुछ नया नहीं है जो आपने पिछले दो सीज़़न में नहीं देखा है। इसलिए ये तीसरा सीज़न अगर आप छोड़ भी देते हैं तो जीवन में ऐसी कोई कमी नहीं आएगी।
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