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दिल्ली क्राईम सीज़न 2 रिव्यू: शेफाली शाह, रसिका दुग्गल, तिलोत्तमा शोमे की तिकड़ी, कमज़ोर नहीं होने देती सीरीज़
सीरीज़
-
दिल्ली
क्राईम
प्लेटफॉर्म
-
नेटफ्लिक्स
क्रिएटर
-
रिची
मेहता
डायरेक्टर
-
तनुज
चोपड़ा
लेखक
-
मयंक
तिवारी,
शुभ्रा
स्वरूप,
विदित
त्रिपाठी,
एनज़िया
मिर्ज़ा
स्टारकास्ट
-
शेफाली
शाह,
राजेश
तैलंग,
रसिका
दुग्गल,
आदिल
हुसैन,
तिलोत्तमा
शोमे
व
अन्य
एपिसोड/अवधि
-
5
एपिसोड/
40
मिनट
प्रति
एपिसोड
आपकी सुरक्षा, हमारी ज़िम्मेदारी। आपके साथ हमेशा। ये वादा दिल्ली पुलिस की ट्विटर आईडी बनवाता भूपिंदर, पूरे विश्वास के साथ दिल्ली पुलिस का ध्येय, इसकी सोशल मीडिया आईडी पर लिखवाता है। और इसी के साथ शुरू होती है दिल्ली के क्राईम का एक और पहलू, एक और कहानी।
पिछले सीज़न में जहां दिल्ली क्राईम निर्भया कांड को बेहद झकझोर देने वाले तरीके से स्क्रीन पर लेकर आई थी वहीं इस सीज़न में दिल्ली क्राईम, दिल्ली के मशहूर कच्चा बनियान गैंग के सीरियल मर्डर केस की तरह हो रहे मर्डर को सामने लेकर आई है। सीरीज़ की शुरूआत होती है वर्तिका चतुर्वेदी (शेफाली शाह), अपनी पूरी टीम - इंस्पेक्टर भूपिंदर (राजेश तैलंग), आईपीएस नीति (रसिका दुग्गल), इंस्पेक्टर जयराज (अनुराग अरोड़ा), इंस्पेक्टर सुभाष गुप्ता (सिद्धार्थ भारद्वाज) और कमिश्नर विजय (आदिल हुसैन) के साथ लौटी हैं।
सीरीज़
की
शुरूआत
में
ही
वर्तिका
चतुर्वेदी
दिल्ली
के
दो
हिस्सों
के
बारे
में
बात
करती
हैं।
पहला
जो
दिल्ली
के
महलों
में
रहने
वाली
हाई
क्लास
सोसाईटी
है
और
दूसरा
जो
झुग्गियों
में
रहता
है
लेकिन
काम
इन
ऊंचे
महलों
में
रहने
वालों
के
लिए
करता
है।
ऐसे
शहर
को
पुलिस
कर
पाना
बेहद
पेचीदा
काम
है,
वो
भी
एक
बेहद
कम
पुलिस
फोर्स
के
साथ।
पिछली
बार
दिल्ली
क्राईम
की
कहानी
का
आधार
असली
था
और
इस
बार
कहानी
की
प्रेरणा।
लेकिन
क्या
पिछली
बार
की
तरह
इस
बार
भी
दिल्ली
क्राईम
आपको
इंटरटेन
कर
पाती
है?
एक नई कहानी के साथ लौटी वर्तिका की टीम
दिल्ली क्राईम सीज़न 2 की शुरूआत होती है दिल्ली की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उठा रहीं डीसीपी वर्तिका चतुर्वेदी और उनकी टीम से मिलवाते हुए। वर्तिका चतुर्वेदी (शेफाली शाह), जिन पर दिल्ली के करोड़ों लोगों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी है वो अपने पति से बहस करती हैं कि हर क्राइम तो नहीं रोका जा सकता है लेकिन एक भी रोक लिया जाए तो वो सफलता है। वहीं उनके पति उन्हें बताते हुए दिख रहे हैं कि कैसे दिल्ली का क्राईम रेट 20 प्रतिशत बढ़ चुका है जो कि बहुत ज़्यादा है। इस बीच आंकड़ों की भी बात होती है कि कैसे कुछ लाख लोगों पर केवल 135 पुलिस ऑफिसर है और इतनी कम पुलिस फोर्स के साथ वर्तिका चतुर्वेदी दिल्ली में शांति व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश कर रही हैं।
प्लॉट
दिल्ली
क्राईम
हल्की
फुल्की
बातचीत
से
शुरू
होती
है
जहां
डीसीपी
वर्तिका
अपनी
बेटी
से
उसकी
ज़िंदगी
की
अपडेट
ले
रही
हैं
तो
एसीपी
पिंकी
अपनी
सास
से
परेशान
हैं
जो
हर
दिन
उनकी
ड्यूटी
की
गाड़ी
लेकर
सब्ज़ी
लेने
निकल
जाती
हैं।
लेकिन
15
मिनट
के
अंदर,
दिल्ली
में
एक
नए
क्राईम
के
साथ
वर्तिका
चतुर्वेदी
अपनी
पूरी
टीम
के
साथ
वापस
इसे
सुलझाने
में
जुट
जाती
हैं।
और
ये
शिफ्ट
दर्शकों
को
भी
काफी
सहज
तरीके
से
अपने
साथ
जोड़
लेता
है।
कच्चा
बनियान
गैंग
की
आखिरी
वारदात
90
के
दशक
में
हुई
थी
तो
फिर
उसी
स्टाईल
में
ये
कौन
है
जो
हत्याएं
कर
रहा
है,
इसी
सवाल
से
ये
सीरीज़
शुरू
होती
है।
मैडम सर में कमी की गुंजाइश ही नहीं
शेफाली शाह एक मंझी हुई अदाकारा हैं और उन्हें अगर एक कसा हुआ किरदार मिल जाए तो वो कहीं भी चूक की गुंजाइश नहीं रखती हैं। दिल्ली क्राईम की वर्तिका चतुर्वेदी का किरदार उनके लिए अब आसान हो चुका है क्योंकि वो पहले इसे जी चुकी हैं और यही कारण है कि उन्हें जब आप स्क्रीन पर देखेंगे तो आपको वर्तिका चतुर्वेदी और उसका चिर परिचित अंदाज़ ही दिखाई देगा। वर्तिका अपने गुस्से और काम के बीच अपनी भाषाओं के साथ खेलती हैं। गुस्से में अंग्रेज़ी के संवाद तो काम को समझने के लिए आराम से हिंदी में वार्तालाप और इनके बीच परफेक्ट बैलेंस बनाती शेफाली शाह। लेकिन अगर सीरीज़ के दो सीज़न में सबसे बेहतरीन तरीके से किसी का किरदार निखर कर सामने आता है तो वो हैं रसिका दुग्गल। उनका किरदार एसीपी नीति जहां पिछले सीज़न में एक इंटर्न की तरह इस दुनिया को समझने की कोशिश कर रही थीं वहीं इस सीज़न में वो अपनी बॉस का एक हाथ हैं। वर्तिका चतुर्वेदी का दूसरा हाथ हैं राजेश तैलंग जो सीरीज़ में भूपिंदर की भूमिका में दिखाई देते हैं और इसे पूरी तरह से मज़बूती के साथ पकड़े दिखते हैं।
क्या है अच्छा
पिछली
बार
दिल्ली
क्राईम
को
काफी
आलोचनाओं
का
सामना
करना
पड़ा
था।
एक
ऐसा
केस
जिसने
पूरे
देश
को
झकझोर
दिया
फिर
से
उसे
लोगों
के
ज़ेहन
में
ज़िंदा
कर
देने
से
लोग
परेशान
हुए
और
इसका
ठीकरा
फोड़ा
गया
दिल्ली
क्राईम
की
टीम
पर।
इसलिए
इस
बार
किसी
केस
को
प्रेरणा
के
तौर
पर
तो
लिया
गया
लेकिन
उस
पर
अपनी
नज़र
से
टिप्पणी
की
गई
है।
धीरे
धीरे
कैसे
एक
क्राईम
सीन
पूरे
देश
में
फैले
भेदभाव
पर
एक
व्याख्यान
बनता
जाएगा
ये
देखना
काफी
दिलचस्प
है।
दिल्ली
क्राईम
पूरे
समाज
पर
टिप्पणी
करता
है
अमीर
-
गरीब
के
भेदभाव
से
लेकर
जातियों
के
भेदभाव
तक
यहां
कि
महिला
और
पुरूष
के
बीच
भेदभाव
तक।
महिलाओं
के
प्रति
एक
अलग
ही
सोच
है
ये
तब
सामने
आता
है
जब
कोई
ये
सोचना
भी
नहीं
चाहता
है
कि
हत्या
करने
वाला
पुरूष
ही
नहीं,
महिला
भी
हो
सकती
है।
ये
सुनना
जितनी
अजीब
पुलिस
टीम
की
हेड
वर्तिका
के
लिए
होता
वहीं
एसीपी
नीति
भी
ये
सुनकर
उतनी
ही
हैरान
रहती
हैं।
वहीं
ये
भेदभाव,
नीति
और
उनके
सैनिक
पति
के
बीच
भी
साफ
दिखाई
देता
है
जहां
पति
को
लगता
है
कि
वो
पूरे
देश
की
रक्षा
करती
है
जब
नीति
केवल
एक
शहर
का
Law
and
order
संभाल
रही
है।
क्या करता है निराश
दिल्ली क्राईम इस बार केवल 5 एपिसोड की सीरीज़ है। इन पांच एपिसोड में से पहले तीन में केवल क्राईम कैसे हुआ और किसने किया पर बात हो रही है। पुलिस बेतहाशा क्राईम करने वाले को ढूंढ रही है। लेकिन फिर अगले 2 एपिसोड में क्रिमिनल को ढूंढना और शो को समाधान तक ले जा पाना शायद काफी मुश्किल होने लग जाता है और अचानक दर्शकों को बता दिया जाता है कि क्राईम किसने किया है। क्योंकि इस बार दिल्ली क्राईम केवल एक क्राईम थ्रिलर नहीं है, इसे समाज के आईने की तरह दिखाने की कोशिश की है और इस कोशिश की शुरूआत जहां बेहतरीन तरीके से होती है वहीं अंत तक आते आते दोनों के बीच सामंजस्य बिठा पाना मुश्किल दिखता है और इसलिए सबसे आसान समाधान हो जाता है दर्शकों को पहले ही जवाब बता देना। क्योंकि इसके बाद दर्शकों को केवल ये इंतज़ार रहता है कि इस जवाब तक पुलिस कैसे पहुंचेगी। और यहीं दिल्ली क्राईम की टीम आपको निराश कर देती है।
तकनीकी पक्ष
इस बार दिल्ली क्राईम को बेहतरीन ड्रामा के स्तर पर ना पहुंचा पाने के लिए शायद दो चीज़ों की ज़िम्मेदारी है - एक कमज़ोर पटकथा और दूसरा उससे भी कमज़ोर डायलॉग्स। समाज व्यवस्था पर चोट करने के लिए लिखी गई इस कहानी में चोट करने के लिए डायलॉग्स कम हैं। इनकी कमी पूरी की गई है कुछ मज़बूत सीन के साथ लेकिन वो सीन कहानी में कुछ ऐसी जगह पर मिलते हैं जहां सब कुछ पकड़ पाना आपके लिए मुश्किल हो जाता है। वहीं शायद पांच एपिसोड में समेट देने के चक्कर में ये सीरीज़ बहुत सारे मुद्दों पर बात करना शुरू तो करती है लेकिन फिर उन्हें इतनी जल्दी समेटने की कोशिश करती है कि सब कुछ बिखरता सा दिखता है। एक और जहां जाति व्यवस्था पर बहस शुरू होती है वहीं दूसरी तरफ, पुलिस के मानवीय एंगल को भी दिखाने की कोशिश की गई है। इसके अलावा, कोई हत्यारा क्यों बन रहा है इसके मनोवैज्ञानिक कारणों पर भी बात होना शुरू होती है। अगर अच्छे पुलिस वाले हैं तो एक पुलिस वाले को बुरा दिखाकर बैलेंड करने की नाकाम कोशिश भी है। लेकिन फिर सारी बातें कहीं जाकर खत्म नहीं होती हैं। बीच में ही छूट जाती हैं। और ये आपके मन में एक टीस छोड़ जाती है।
कहानी की स्टार
इस सीरीज़ की स्टार बनकर उभरती हैं तिलोत्तमा शोमे। उनके सीन आपको सोचने का समय देते हैं। उनके अगले कदम के बारे में आपको आंकने का समय देते हैं। तिलोत्तमा शोमे 5 एपिसोड की इस सीरीज़ में कहानी को नीचे डूबने से बचाने एकदम सही समय पर आती हैं और सीरीज़ को अपने नाम कर ले जाती हैं। वहीं कुछ सीन इस सीरीज़ को अलग स्तर पर लेकर जाते हैं। जैसे माता पिता के मरने का ग़म में डूबी एक लड़की जब अपने घर से गायब चीज़ों की लिस्ट गिनवाती है तो उस लिस्ट में एक महंगी क्रीम का भी ज़िक्र होता है। वहीं तिलोत्तमा का किरदार जब एक ऊंची बिल्डिंग से शहर देखता है तो जैसे शहर अपने आप ही दो साफ भाग में बंटा हुआ दिखता है और आप अचानक ही असहज हो जाते हैं।
देखें या नहीं
दिल्ली क्राईम अपनी कमियों के बावजूद एक बेहद सशक्त सीरीज़ है। हर एक्टर अपने किरदार में इतने परफेक्ट तरीके से फिट होता है कि आपको ये सीरीज़ ना देखने के लिए कोई खास कारण नहीं मिलेगा। सीरीज़ की दिक्कत केवल इसका छोटा होना हो सकती है। दिल्ली क्राईम की अच्छी बात ये है कि इस सीरीज़ में पुलिस हीरो नहीं है। बस एक और इंसान है जो अपना काम कर रहा है। अपनी सैलेरी के बदले। वो काम मुश्किल है, थकाने वाला है लेकिन है काम ही। इस काम से उनकी निजी ज़िंदगी पर कितना असर पड़ता है, ये भी झलकियों में दिखता है। लेकिन फिर भी दिल्ली क्राईम एक अच्छी और सफल देखने लायक सीरीज़ है।
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