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द फेम गेम वेब सीरीज़ रिव्यू: अपनी अंधेरी दुनिया में खींचती हैं माधुरी दीक्षित, मुस्कान जाफरी जीत लेंगी दिल
सीरीज़
-
द
फेम
गेम
डायरेक्टर
-
श्रीराव,
बिजॉय
नाम्बियार,
करिश्मा
कोहली
क्रिएटर
-
श्री
राव
स्टारकास्ट
-
माधुरी
दीक्षित,
मुस्कान
जाफरी,
लक्षवीर
सरन,
मानव
कौल,
संजय
कपूर
व
अन्य
प्लेटफॉर्म
-
नेटफ्लिक्स
एपिसोड/अवधि
-
8
एपिसोड/
40
मिनट
प्रति
एपिसोड
धर्मा प्रोडक्शन्स सब कुछ भव्य करता है। इसलिए धर्माटिक इंटरनेटनमेंट ने भी भव्य तरीके से माधुरी दीक्षित को उनकी पहली वेब सीरीज़ में लॉन्च किया है। द फेम गेम, नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है। सीरीज़ कहानी है अनामिका की। वो अनामिका जो अपने करियर को वापस ऊपर उठाने की पुरज़ोर कोशिश में खुद को खो रही है। वो अनामिका जिसकी ज़िंदगी ऊपर से जितनी चमकदार है, अंदर से उतनी ही खोखली। वो अनामिका जो एक सुबह अपने कमरे में नहीं दिखती और हमेशा के लिए गायब हो जाती है।
अब अनामिका कहां हैं, यही पूरी सीरीज़ का निचोड़ है। लेकिन अनामिका को ढूंढने में आप धीरे धीरे अनामिका को असल में ढूंढने की कोशिश करेंगे। वो ढूंढना जो अंदर है। अनामिका कहां है तो ये सीरीज़ आपको बता देगी लेकिन अनामिका कौन है, इसमें आपकी दिलचस्पी बनाने की कोशिश करेगी।
सीरीज़
में
वो
सब
कुछ
है
जो
ग्लैमर
की
दुनिया
में
अंदर
और
बाहर
होता
है।
मीलों
का
फासला
और
मन
में
छिपा
हुआ
अथाह
दर्द
का
सागर।
ये
दर्द
अनामिका
की
आंखों
में
छलकता
है
जब
वो
बताती
है
कि
पैसे
और
रूतबे
के
लिए
उसकी
मां
ने
उसके
दूर
के
भाई
से
ही
उसकी
शादी
करा
दी।
लेकिन
क्या
ये
दर्द
अनामिका
की
आंखों
से
आपके
दिल
तक
उतर
पाता
है?
ये
हम
आपको
इस
द
फेम
गेम
रिव्यू
में
बताते
हैं।
प्लॉट
द फेम गेम की कहानी वही है जो आजकल हर एक सस्पेंस सीरीज़ की कहानी होती है।। मुख्य किरदार जो गायब, एक पुलिस ऑफिसर जो कि आम पुलिस ऑफिसर से हीरो बनने की तलाश कर रहा है उस एक केस के साथ जो कि अब उसे मिला है, एक अमीर लेकिन अंदर से खोखला परिवार, एक लेस्बियन कपल, एक गे कपल, ढेर सारे लोग जिन पर हर एपिसोड में शक की सुई गहराती जाए, पैसों की दिक्कत से जूझता अमीर परिवार, पति - पत्नी की बेमानी शादी, एक एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, बच्चों की अनसुलझी और गलत दिशा में जाती एडल्ट - सेक्स लाईफ और अंत में एक बड़ा खुलासा। द फेम गेम का भी मुख्य प्लॉट यही है। इन्हीं पॉइंट्स के इर्द गिर्द इस पूरी सीरीज़ को बुना गया है।
तकनीकी पक्ष
इन सारे पक्षों को ध्यान में रखकर एक श्री राव ने एक सीरीज़ का ढांचा तैयार किया श्री राव ने अक्षत घिल्डियाल, अमिता व्यास, श्रेया भट्टाचार्य और निशा मेहता के साथ मिलकर इस ढांचे में अपनी सीरीज़ की कहानी फिट करने की कोशिश शुरू कर दी। लेकिन दिक्कत इस सीरीज़ की दिक्कत यहीं से शुरू हो जाती है, इस ढांचे में कहानी को फिट करने के लिए कहीं से भी तोड़ा और जोड़ा गया। जैसे ही आप किरदारों को समझने की कोशिश करने लगते हैं, उनमें आपको कुछ ऐसी बातें खटकने लग जाती हैं कि आप चाह कर भी ना कहानी से ना ही इन किरदारों से जुड़ पाते हैं।
निर्देशन
माधुरी दीक्षित के डिजिटल डेब्यू के लिए एक काफी भव्य स्तर पर तैयारी की गई है। द फेम गेम में वो सब कुछ डालने की कोशिश की गई जिसकी माधुरी दीक्षित पर्याय। म्यूज़िक, डांस और ढेर सारे इमोशन। लेकिन जहां संगीत के पक्ष में ये सीरीज़ पूरी तरह माधुरी दीक्षित की कास्टिंग को विफल कर देती है वहीं दूसरी तरफ, भावनात्मक पक्ष पर ये सीरीज़ दर्शक को कन्फ्यूज़ ज़्यादा करती हैं। सस्पेंस सीरीज़ में आमतौर पर एक एक परत खोली जाती है लेकिन यहां सस्पेंस खुलने की बजाय, हर किरदार, धीरे धीरे किरदार कम और एक प्रोटोटाईप ज़्यादा लगने लग जाता है। ढेर सारे सवाल जो सीरीज़ को उठाने चाहिए और सुलझाने चाहिए, दर्शक के मन में उठते हैं और निराशाजनक ये है कि श्री राव, करिश्मा कोहली और बिजॉय नाम्बियार का निर्देशन इन सवालों को सुलझाने की कोशिश भी नहीं करता है क्योंकि हर कोई उस ढांचे को बचाए रखने की कोशिश में जुटा है जिस पर ये सीरीज़ ज़बर्दस्ती बैठा कर फिट करने की कोशिश की गई है।
किरदार
इस सीरीज़ में वो सारे किरदार हैं जो एक सस्पेंस सीरीज़ में होने ज़रूरी है। एक टॉप एक्ट्रेस है जो अपने परिवार, प्यार और काम में बैलेंस बनाना चाहती है और तीनों जगह परफेक्ट रहने की कोशिश में जुटी हुई है। दो बच्चे हैं जो अपने माता - पिता से उतने ही दूर हैं जितना आलीशान बंगलों में एक कमरे से दूसरा कमरा होता है। एक सीनियर किरदार है जिसे केवल परिवार की मान और मर्यादा की चिंता है। एक पति है जो खुद को पत्नी से कम सफल होने की कुंठा ज़ाहिर ना कर पाने के कारण घुट रहा है। एक हाउसहेल्प है जो परिवार से बढ़कर है और जो इन सभी किरदारों से सबसे ज़्यादा जुड़ा है। इसके अलावा ढेर सारे किरदार जो सस्पेंस बनाने के लिए ज़रूरी हैं। दिक्कत ये है कि ये सारे किरदार एक Prototype हैं। मानो किसी Rulebook से निकालकर लिख दिए हैं। इन सब किरदारों को पहले सीन में देखते ही आपको अंदाज़ा मिल जाएगा कि इस किरदार का ग्राफ कहां तक जाएगा।
अभिनय
माधुरी दीक्षित का ये डिजिटल डेब्यू काफी अहम है। खासतौर से तब जब अरण्यक में रवीना टंडन और आर्या में सुष्मिता सेन अपना डंका बजा चुकी हैं। ऐसे में माधुरी दीक्षित पूरी कोशिश करती हैं इस सीरीज़ को अपने मज़बूत कंधों पर उठाने की। मगर यहीं पर श्री राव माधुरी दीक्षित की अहमियत कम कर देते हैं। क्योंकि इस सीरीज़ को माधुरी दीक्षित के कंधों की नहीं बल्कि उनके सबसे मज़बूत पक्ष, उनके भावुक अभिनय की थी। लेकिन वो emotions कहीं पर भी माधुरी दीक्षित के ज़रिए उभर कर सामने नहीं आ पाते। वो पूरी कोशिश करती हैं अनामिका की अंधेरी दुनिया में आपको घसीटने की लेकिन उनके किरदार को इतने सतही तौर पर लिखा गया है कि आप अनामिका की दुनिया का अंधेरा देखते तो हैं लेकिन फिर भी उसके लिए कुछ महसूस नहीं करते। शायद इसलिए कि अनामिका खुद भी अपनी घुटन को परदे पर नहीं उतार पाती। जैसे कि कहानी में एक जगह अनामिका का बेटा अपनी ज़िंदगी खत्म करने की कोशिश करता है। किसी भी मां के लिए ये झकझोर देने वाला समय होना चाहिए। लेकिन अनामिका एक सीन के बाद ठीक और सहज दिखाई देती है। उसका डर, भय, पीड़ा, ग्लानि कुछ भी परदे पर नहीं दिखाई देता है।
सपोर्टिंग कास्ट
अगर फिल्म की सपोर्टिंग कास्ट की बात करें तो कास्टिंग के लिहाज़ से शायद अनामिका एक एवरेज कोशिश है। शुरूआत करते हैं माधुरी दीक्षित के पति के किरदार में संजय कपूर से। संजय कपूर इस सीरीज़ में एक पति कम, संजय कपूर ज़्यादा लगे हैं। उनकी कोशिश और उनका संघर्ष साफ दिखाई देता है। माधुरी दीक्षित की मां के किरदार में सुहासिनी मुले दिलचस्प दिखती हैं लेकिन उनके किरदार को जैसे अधूरा ही छोड़ दिया गया है। ऐसे में वो ज़्यादा प्रभावित नहीं कर पाती हैं। मानव कौल एक सुपरस्टार के किरदार में हैं जो अनामिका का प्रेमी है और उसका बेस्ट ऑन स्क्रीन साथी भी। लेकिन उनके किरदार को इतनी बेरहमी से ट्रैक से उतार दिया गया कि मानव कौल की लाख कोशिशों के बावजूद वो ज़ेहन में अपनी छाप नहीं छोड़ पाते हैं। लक्षवीर सरन माधुरी दीक्षित के बेटे के किरदार में हैं और वो प्रभावित करने की अच्छी कोशिश करते हैं। अपनी मां के साथ उनके सीन में वो माधुरी दीक्षित के सामने भी अपनी उपस्थिति मज़बूती से दर्ज कराते हैं। इसके अलावा, पुलिस ऑफिसर के किरदार में राजश्री पांडे का किरदार इतना ज़्यादा repetitive है लेकिन इस किरदार को आपने लगभग हर सीरीज़ में इसी ग्राफ के साथ देखा है।
सीरीज़ की स्टार
माधुरी दीक्षित के अलावा अगर इस सीरीज़ में कोई स्टार है तो वो हैं मुस्कान जाफरी जिनका किरदार धीरे धीरे ही सही लेकिन अनामिका के साथ पूरी हिम्मत के साथ ऊपर उठने की कोशिश करता है और सफल भी होता है। दिलचस्प ये है कि कहानी में यही मुस्कान के किरदार का पूरा गणित है। वो हमेशा से अपनी मां जैसा बनना चाहती है लेकिन वो अपनी मां जैसी है नहीं। या फिर क्या वो अपनी मां जैसी है? मुस्कान का किरदार इस पूरी सीरीज़ का विजेता किरदार है। और कई सीन में वो आपको अपनी कहानी से बांधने की कोशिश करती हैं। मुस्कान के ज़रिए आप अनामिका तक भी पहुंचने की कोशिश करते हैं।
क्या था अच्छा
इस सीरीज़ का अच्छा भाग है माधुरी दीक्षित। और वो माधुरी दीक्षित से वो करवाने की कोशिश करना जो उन्होंने कभी नहीं किया। अपनी भावनाओं को छिपा कर रखना। पूरी कहानी में। वो करने की माधुरी दीक्षित पूरी कोशिश करती हैं। अनामिका का किरदार उनकी अब तक के करियर के सारे किरदारों से बिल्कुल अलग है। झूठ में बुना एक सच्चा किरदार। जो कि रील पर जितना रियल दिखता है, असल ज़िंदगी में भी वो उतना ही सच्चा किरदार हो सकता है। और यही कारण है कि इस सीरीज़ को देखने के लिए पहले ही एपिसोड में दर्शकों का उत्साह बनता है।
क्या रही कमी
लेकिन जितनी जल्दी ये उत्साह बनता है, उतनी ही जल्दी ठंडा पड़ जाता है। क्योंकि इस सीरीज़ की सबसे बड़ी विलेन है इसकी पटकथा जो पूरी तरह बिखरी है और लाख कोशिशों के बावजूद आप इसके सारे पहलू समेट कर इकट्ठा नहीं कर सकते हैं। सीरीज़ आपको काफी हद तक मधुर भंडारकर की हीरोइन की याद दिलाती है। यूं कहिए कि हीरोइन में आपने जो कुछ भी देखा उसकी तह तक जाने की कोशिश ये सीरीज़ करती है लेकिन विफल होती है अपनी कहानी को तय खाके में डालने की कोशिश करते हुए। अगर आजकल की सीरीज़ बनाने की लिस्ट बनाई जाए तो द फेम गेम में सब कुछ डालने की कोशिश की गई है और ये सब कुछ इतना ज़्यादा है कि इसका ओर छोर गायब हो जाता है और पूरी सीरीज़ केवल किरदारों का परिचय कराने में ही लग जाती है। और सारे किरदार सतही रह जाते हैं। अंत में आप एक शानदार क्लाईमैक्स की अपेक्षा करते हैं लेकिन वो क्लाईमैक्स आपको नहीं मिलता।
देखें या नहीं
द फेम गेम कुछ हिस्सों में आपको प्रभावित करती है। लेकिन इस सीरीज़ में ना सस्पेंस है और ना ही आपको कहानी से जोड़कर रखने की काबिलियत। इस सीरीज़ को आप बिना किसी अपेक्षा के देख सकते हैं। और अगर माधुरी दीक्षित को काफी समय से परदे पर नहीं देखा है तो यहां देखने में कोई हर्ज़ नहीं है।
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