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अनकही कहानियां रिव्यू: नेटफ्लिक्स एंथेलॉजी को पूरी तरह जीत लेते हैं अभिषेक बनर्जी और उनका अकेलापन
स्टारकास्ट
-
अभिषेक
बनर्जी,
रिंकू
राजगुरू,
ज़ोया
हुसैन,
पालोमी
घोष,
निखिल
द्विवेदी,
कुणाल
कपूर
व
अन्य
निर्देशक
-
अश्विनी
अईयर
तिवारी,
अभिषेक
चौबे,
साकेत
चौधरी
प्रोड्यूसर
-
RSVP
फिल्म्स
अवधि
-
1
घंटा
50
मिनट
कोई नहीं जानता कि जब एक आदमी अपना घर, गांव, परिवार से दूर इस मुंबई शहर में आता है तो उसे नौकरी मिल जाती है लेकिन अपने दिल की बात करने के लिए दो साथी नहीं मिलते हैं। ऐसे में वो और अकेला हो जाता है। अपने आप से बातें करने लगता है। वो पागल तो नहीं है ना?
अकेलापन
और
अनजान
शहर
ऐसा
इमोशन
है
जो
इससे
पहले
ढेरों
फिल्मों
में
दिखाया
जा
चुका
है।
अनकही
कहानियां
भी
ऐसी
ही
एक
कोशिश
है
तीन
कहानियों
के
ज़रिए,
बड़े
शहरों
के
अकेलेपन
को
दिखाने
की।
पहली
कहानी
डायरेक्ट
की
है
अश्विनी
अईयर
तिवारी
ने,
दूसरी
कहानी
डायरेक्ट
की
है
अभिषेक
चौबे
ने
और
तीसरी
कहानी
डायरेक्ट
की
है
साकेत
चौधरी
ने।
इन तीन कहानियों को जो चीज़ जोड़ती है वो है इंसान का अकेलापन। इससे भी ज़्यादा खास ये कि इन कहानियों का कोई नाम नहीं है। इन्हें भी इनके किरदारों की ज़िंदगी की तरह गुमनाम और अकेला छोड़ दिया गया है।
मुंबई
के
ही
तीन
अलग
किरदारों
के
इर्द
गिर्द
बुनी
गई
ये
कहानियां
किसी
भी
शहर
में
रह
रहे
किसी
भी
इंसान
की
कहानी
हो
सकती
है।
अमूमन
भावनात्मक
कहानियां
आपको
कुछ
सोचने
पर
मजबूर
करती
हैं
या
फिर
परेशान
कर
देती
हैं।
ये
कहानियां
आपको
ना
दुखी
करेंगी
ना
ही
डराएंगी।
ये
बस
आपको
असहज
कर
देंगी।
बहुत
ज़्यादा
असहज।
आगे
पढ़िए
'अनकही
कहानियां'
की
पूरी
समीक्षा
और
फिर
तय
कीजिए
कि
देखें,
या
फिर
ना
देखें
नेटफ्लिक्स
की
ये
नई
पेशकश।
पहली फिल्म
अनकही कहानियां की पहली फिल्म अश्विनी अईयर तिवारी ने डायरेक्ट की है जिसका मुख्य किरदार है प्रदीप (अभिषेक बनर्जी)। मुंबई में एक कपड़ों की दुकान में सेल्समैन की नौकरी करने वाले प्रदीप की ज़िंदगी मशीन की तरह चलती है - दुकान खोलना, कपड़े बेचना, दुकान बंद करना, रात में मोबाईल देखते हुए खाना खाना और अगले दिन फिर वही क्रम।ये सब ऐसा चलता है तब तक जब तक प्रदीप की ज़िंदगी में कोई साथी नहीं होता है। आखिरकार वो साथी ढूंढ लेता है एक प्लास्टिक के पुतले में। केवल साथी ही नहीं, ये पुतला, प्रदीप का पहला प्यार बन जाता है। और ये प्यार आशिकी में तब बदलता है जब वो पुतले के साथ मुंबई की सड़कों से लेकर बीच पर घूमने लगता है। और ये आशिकी पागलपन में भी बदलती है। हर सीन के साथ अश्विनी अईयर तिवारी आपको अकेलेपन में डूबे एक आदमी की बढ़ती हद दिखाती हैं और हर सीन के साथ आपको uncomfortable महसूस कराने में गुरेज नहीं करती हैं।
अंदर तक करेगी uncomfortable
पीयूष गुप्ता, श्रेयस जैन और नितेश तिवारी की कहानी आपको अंदर तक असहज कर देती है। ये असहजता अश्विनी अईयर तिवारी, हर सीन के साथ बढ़ाती हैं और आपको अंदर तक अजीब महसूस कराने में अश्विनी को पूरा साथ मिलता है अचिंत ठक्कर के बैकग्राउंड म्यूज़िक और पीयुष - श्रेयस - नितेश तिवारी के बेहद भावुक डायलॉग्स का। जैसे ही प्रदीप अपने पहले प्यार, उस पुतले को परी नाम देता है, उस पहली मुलाकात से आखिरी अलविदा तक हर डायलॉग फिल्म को थोड़ा और बेहतर बना देता है। चारू श्री रॉय की एडिटिंग कहानी को कहीं से भी छूटने नहीं देती है।
दिल जीतते हैं अभिषेक बनर्जी
फिल्म के मुख्य कलाकार हैं अभिषेक बनर्जी जो अपने हर सीन और हर डायलॉग के साथ आपको अपनी कहानी में चुंबक की तरह खींचते जाएंगे। अगर अभिषेक बनर्जी किसी फिल्म में हैं तो वो फिल्म आपको देख लेनी चाहिए। शायद उनके अलावा कोई भी और कलाकार इस फिल्म को डरावनी बना सकते थे लेकिन अभिषेक अपने असहज रोमांस में भी भावना डालते हैं। उनका अकेलापन आप बांटना चाहेंगे। लेकिन फिर भी उस अकेलेपन की गहराई आप महसूस नहीं कर पाएंगे और इसी वजह से ये फिल्म असहज करती जाएगी। अभिषेक बनर्जी का फिल्म में कुछ सितारे साथ देते हैं - राजीव पांडे, उनके दोस्त शैंटी की भूमिका में; विभा छिब्बर उनकी मां की भूमिका में और टीजे भानु, उनकी मंगेतर शशि की भूमिका में।
दूसरी कहानी
अगली कहानी है अभिषेक चौबे की जो मुंबई की चॉल और बस्तियों में रहने वाले दो लोगों के अकेलेपन को दिखाते हैं जो परिवार होते ही भी अकेले हैं और एक दूसरे के साथ उस अकेलेपन को दूर करने की कोशिश में दिखाई देते हैं। फिल्म एक थिएटर में काम करने वाले लड़के नंदू (डेलज़ाद हिवाले) और चॉल में रहने वाली लड़की मंजरी (रिंकू राजगुरू) की कहानी है। दोनों को पहली नज़र में प्यार हो जाता है लेकिन ये प्यार क्या अपने मुकाम पर पहुंच पाता है?
सबसे कमज़ोर फिल्म
जयंत कैकिनी की कन्नड़ कहानी मध्यांतर से प्रेरित होकर हुसैन हैदरी और अभिषेक चौबे की पटकथा और डायलॉग्स फिल्म को बांधने में असफल दिखते हैं। अभिषेक चौबे, तीन कहानियों की इस फिल्म के सबसे कमज़ोर पक्ष हैं। इस फिल्म का म्यूज़िक दिया है नरेन चंदावरकर और बेनेडिक्ट टेलर ने जो कि प्रभावहीन है। संयुक्ता काज़ा की एडिटिंग फिल्म को बोझिल बनाने से बचा सकती थी लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है।
स्क्रीन पर राज करते हैं डेलज़ाद
रिंकू राजगुरू अपने अभिनय में बिखरी हुई नज़र आती हैं। उनके पास डायलॉग्स कम हैं लेकिन फिल्म के सबसे अच्छे सीन उनके पास हैं। फिर भी इन दृश्यों के ज़रिए रिंकू दर्शकों तक कुछ नहीं पहुंचा पाती हैं - ना भावनाएं, ना ही अपनी कहानी और ना ही अपने अकेलेपन का संघर्ष। हालांकि, डेलज़ाद हिवाले यहां आपका दिल जीतते हैं। उनका अभिनय मासूम है और उनके दृश्य ही इस फिल्म को बांधे रखते हैं।
तीसरी कहानी
सिर्फ अपने मन की करने से शादी नहीं चलती...और बेमन की करने से ज़िंदगी नहीं चलती। तो फिर क्या चुने इंसान - शादी या ज़िंदगी? इसी सवाल के इर्द गिर्द घूमती है साकेत चौधरी की फिल्म। साकेत, दो शादी शुदा जोड़ों के ज़रिए शादीशुदा ज़िंदगी के खोखलेपन और अकेलेपन को टटोलने की कोशिश करते हैं और कुछ हद तक सफल होते भी दिखते हैं। ये कहानी है अर्जुन - नताशा के अफेयर की। वहीं अर्जुन की पत्नी तनु और नताशा के पति मानव ये समझने की कोशिश करते हैं कि उनके पार्टनर ने एक उन्हें धोखा क्यों दिया।
संभलती गिरती है फिल्म
ज़ीनत लखानी और साकेत चौधरी की कहानी कल्पना और सच के बीच पुल बनाने की कोशिश करते दो लोगों की कहानी है। फिल्म में उतार - चढ़ाव हैं लेकिन हर अच्छे सीन के तुरंत पूरी तरह फ्लैट हो जाती है। और ऐसा इस कहानी में लगातार चलता रहता है। अविनाश सिंह के डायलॉग्स ज़्यादा असर नहीं छोड़ते हैं। फिल्म को संभालती है कमलेश रॉबिन पारूई की एडिटिंग। इस फिल्म का म्यूज़िक दिया है ऋषभ शाह ने लेकिन वो भी कहानी पर ज़्यादा प्रभाव डालता नहीं दिखता है।
किसी के लिए नहीं बची ज़्यादा गुंजाईश
फिल्म में एक शादीशुदा जोड़ा है निखिल आडवाणी और ज़ोया हुसैन का और दूसरा शादीशुदा जोड़ा है कुणाल कपूर और पालोमी का। लेकिन चारों की कलाकारों के हिस्से - करीब 25 - 30 मिनट की इस फिल्म में अभिनय की दृष्टि से ज़्यादा कुछ आया नहीं है। इसके लिए इन कलाकारों से ज़्यादा, साकेत चौधरी के निर्देशन को दोष दिया जा सकता है। फिल्म आपको उत्सुक बनाती है लेकिन वो उत्सुकता शांत करने में विफल हो जाती है।
शानदार क्रेडिट डिज़ाईन
इस एंथेलॉजी के एक खास पहलू की तारीफ किए बिना ये समीक्षा अधूरी होगी। इस फिल्म को खूबसूरती से पेश किया गया है एक बेहतरीन क्रेडिट आईडिया के साथ। अनकही कहानियां, के ओपनिंग क्रेडिट्स खूबसूरत illustrations के साथ स्क्रीन पर आते हैं जिन्हें डिज़ाईन किया है स्टूडियो Kokaachi की टीम ने। अनकही कहानियां एक अच्छी कोशिश है और ये कोशिश आपको कहीं भी बोर होने नहीं देती है।
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