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आश्रम 2 वेब सीरीज़ रिव्यू: इतना उलझे कि सुलझ ही नहीं पाए ढोंगी बाबा निराला बॉबी देओल
रेटिंग - 1.5/5
सीरीज़ - आश्रम
निर्देशक - प्रकाश झा
स्टारकास्ट - अदिति पोहानकर, त्रिधा रॉय चौघरी, बॉबी देओल, चंदन रॉय सान्याल, दर्शन कुमार, तुषार पांडे, राजीव सिद्धार्थ, अनुप्रिय गोयनका व अन्य
एपिसोड्स - 9 एपिसोड/38 मिनट प्रति एपिसोड
प्लेटफॉर्म - MX Player
गरीबों वाले बाबा की जय हो इस जयकार के साथ प्रकाश झा की वेब सीरीज़ आश्रम शुरू हुई थी और खत्म हुई थी एक धमाकेदार सीज़न 2 के वादे के साथ। अब वो सीज़न 2 दीवाली के पहले रिलीज़ हो चुका है लेकिन जितना ढोंगी इस सीरीज़ में बॉबी देओल का किरदार बाबा निराला है, उतना ही ढोंग है सीज़न 2 के नाम पर ये नए 9 एपिसोड।
सीज़न 2 खत्म होता है वहां पर जहां से पहला सीज़न शुरू हुआ था। और शुरू होता है वहां पर जहां पर पहला सीज़न खत्म हुआ था। कुछ समझे? दिक्कत हुई ना। बस यही दिक्कत इस पूरे सीज़न 2 में दिखती है।
क्योंकि जिन सवालों को सीज़न 1 में अधूरा छोड़ा गया था उनके जवाब सीज़न 2 में देने का वादा किया गया। लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं है। इस सीरीज़ की सबसे खास बात है इसकी बेहद मज़बूत स्टारकास्ट जो कि नए सीज़न में ताश के पत्तों की तरह ढहती दिखाई देती है। हालांकि कहानी को बेहतरीन अंजाम देने की कोशिश ज़रूर की जाती है लेकिन प्रकाश झा वही बासी खिचड़ी परोसते दिखते हैं।
9 एपिसोड में 8 एपिसोड 38 मिनट है और आखिरी एपिसोड 1 घंटे का। लेकिन क्या कहानी अपने अंजाम तक पहुंचती है। जानिए हमारी समीक्षा में।

कहानी
इस सीज़न की कहानी की मुख्य पात्र बनकर उभरती हैं पम्मी पहलवान (अदिति पोहानकर) और बबीता (त्रिधा रॉय चौधरी)। और उन दोनों के ज़रिए दो किरदारों की असमानता सामने दिखाने की कोशिश बेहतरीन तरीके से की गई। एक जो अपने साथ हुई ज़बरदस्ती को बाबा का आशीर्वाद मानकर जीवन में आगे बढ़ जाती है और एक जो उसे रेप कह कर बाबा का पर्दाफाश करने की कोशिश में जुट जाती है।

एपिसोड्स
इस बार भी आश्रम में 9 एपिसोड हैं। जहां पहले 8 एपिसोड की अवधि लगभग 40 मिनट है वहीं आखिरी एपिसोड 1 घंटे का है। इन 8 एपिसोड्स में कहानी आगे बढ़ती है और पहले सीज़न ने जो राजनीति, जात - पात, ड्रग्स और इन सब के केंद्र में एक ठरकी बाबा का जाल बिछाया था। दूसरा सीज़न उस जाल को काटने के लिए आगे बढ़ता दिखता है। लेकिन दिक्कत तब आती है जब शुरू के तीन एपिसोड के बाद ही ये सीरीज़ अपनी दिशा साध लेता है और केवल एक लड़की के बदले की ओर बढ़ता चला जाता है।

अभिनय
इस सीज़न की स्टार बनकर उभरती हैं अदिति पोहानकर। पम्मी पहलवान के रूप में उनकी कहानी का ग्राफ एक भक्त की अंध भक्ति से लेकर एक ढोंगी बाबा से अपने रेप का बदला लेने को तैयार चतुर और मज़बूत पहलवान तक शानदार तरीके से गढ़ा गया है। और अदिति पोहानकर हर फ्रेम में आपका दिल जीतती दिखाई देती हैं। चाहे वो एक बच्ची की मासूमियत हो या फिर एक Rape Victim का दर्द, अदिति अपने अभिनय से इस सीरीज़ का केंद्र बन जाती हैं और उनकी कहानी देखने में किसी को कोई गुरेज नहीं होता।

निर्देशन
प्रकाश झा ने सीज़न 1 में आश्रम की दुनिया के ज़रिए कई सारी कुरीतियों का ताना बाना बुना था। एक तरफ जहां राजनीति और धर्म का खेल कैसे साथ खेला जा सकता है तो दूसरी तरफ युवाओं को अपने बस में करने के लिए ड्रग्स के धंधे को कैसे जमाया जाता है। पहले लड़कियों को समाज के निचले तबकों से उठाना और उन्हें अच्छा जीवन देना और फिर उनका फायदा उठाने वाला बाबा। इन सब समस्याओं का निवारण करने का वादा प्रकाश झा दूसरे सीज़न में करते हैं लेकिन अपना वादा पूरा नहीं कर पाते और बुरी तरह विफल होते हैं।

तकनीकी पक्ष
अद्वैत नेमलेकर और संजय मासूम के कंपोज़िशन, बाबा की सत्संग संध्या की जान बनते हैं। और बाबा लाएंगे क्रांति वाले रैप कहानी में बेहतरीन तरीके से फिट होते हैं। संतोश मंडल की एडिटिंग भी कहानी को इधर उधर से काटती दिखती है और एक केंद्र पर लाने की कोशिश करती है जबकि सीरीज़ कई मुद्दों को समान रूप से खोेल चुकी थी। ऐसे में दर्शक इंतज़ार करते हैं कि ड्रग्स रैकेट का क्या हुआ या जहां से सीरीज़ शुरू हुई थी उन रहस्यों का क्या हुआ लेकिन अंत तक किसी पर से परदा नहीं उठता है।

क्या है अच्छा
सीज़न 2 के शुरूआती एपिसोड्स दिलचस्प है और एक बेहतरीन कहानी की ओर इशारा करते हैं। वहीं कहानी का अंत उस चक्र को पूरा करता है जहां से ये पूरी कहानी शूरू हुई थी। अब प्रकाश झा ने जिस मोड़ पर लाकर कहानी को छोड़ा है वो पूरा तो है लेकिन और ज़्यादा की मांग करता है और यहीं शायद उनकी सफलता है क्योंकि दर्शकों को अब तक कहानी की इतनी आदत लग चुकी है कि वो इसे खत्म करना चाहेंगे, आगे जानना चाहेंगे।

कहां किया निराश
लेकिन बस यहीं ये सीरीज़ बुरी तरह निराश करती है। एक ट्रैक को छोड़कर बाकी सारे ट्रैक या तो अधूरे छोड़ दिए गए या फिर यूं ही निपटा दिए गए हैं। और यही कारण है कि इतनी शानदार स्टारकास्ट होने के बावजूद, पम्मी पहलवान को छोड़कर किसी की भी कहानी पूरी होती नहीं दिखती है। ड्रग्स रैकेट से लेकर राजनीति तक सारे पहलू निराश करते हैं। ये दर्शकों पर ही है कि या तो वो ये मान लें कि बाबा की अंधभक्ति इतनी शक्तिशाली है कि कोई कुछ नहीं कर सकता, बचकर निकल पाने के अलावा या फिर धीरज के साथ शायद एक और सीज़न का इंतज़ार करें।

सबसे बड़ी दिक्कत है
आश्रम की सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि ये बहुत सारे मुद्दों को उठाकर कहानी बुनती तो है लेकिन फिर इसे बस दिनचर्या बना लेती है। मानो कि कोई डेली सोप हो जो रोज़ की कहानी दिखाने लगता है। और आश्रम में रोज़ में कोई अंतर नहीं है। औरतें प्रताड़ित हो रही हैं, उनका शोषण किया जा रहा है और रोज़ एक नई महिला शिकार बन रही है। बस आश्रम की सुई यहीं पर अटक जाती है और आगे ही नहीं बढ़ती। यहीं घूमती रह जाती है।

देखें या ना देखें
अगर आपने पहला सीज़न नहीं देखा है तो हम आपको इसे शुरू से देखने की सलाह नहीं देंगे। और अगर आपने पहला सीज़न देख ही लिया है तो ना चाहते हुए भी आप बॉबी देओल के इस धोखे का शिकार हो चुके हैं और आपको अपनी कहानी पूरी करने के लिए ही सही लेकिन ये सीरीज़ देखनी पड़ेगी।
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