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Tumbbad Movie Review: लालच और रहस्यों का खजाना है तुंबाड, शानदार कहानी और परफॉर्मेंस जानदार
सोहम शाह की फिल्म तुंबाड की बात करें तो ये महात्मा गांधी के उस कथन पर आधारित है, जिसमें उन्होंने कहा था कि इस दुनिया में किसी भी इंसान की जरूरत के लिए पर्याप्त साधन हैं लेकिन उसकी लालच के लिए नहीं। रहस्यों से भरी इस फिल्म को देखते हुए दादी-नानी की कहानियां याद आती हैं। हालांकि यहां पर कहानी थोड़ी सी ज्यादा भायवह है।
फिल्म की कहानी 1918 के तुंबाड में शुरू होती है। हमें मिलाया जाता है सदाशिव और उसके बड़े भाई विनायक से। उनकी विधवा मां (ज्योति मालशे) जर्जर हवेली में रहने वाले अपने अपने ससुर की सेवा में व्यस्त रहती हैं। वहीं दोनों भाईयों को एक छोटी सी झोपड़ी में गुजारा करने में काफी परेशानी होती है। इस झोपड़ी नें उनके साथ रहती हैं उनकी पर दादी जो कि एक मॉन्सटर हैं और उन्हें जंजीरों में बांध कर रखा जाता है। इन्हें तभी खाना खिलाना होता है जब ये सो रही हों। उसे केवल एक नाम से डर लगता है और वो नाम हो 'हस्तर'।
इसके बाद कहानी और पीछे जाती है, जहां देवी मां का एक लालची बेटा है हस्तर, जिसे शाप है कि उसे कभी सोने और खाने की लालच की वजह से कभी पूजा नहीं जाएगा। शाही परिवार इस शाप को अनदेखा कर देता है और देवी मां और हस्तर के लिए एक मंदिर बनवाया जाता है। एक बरसात वाले दिन, विनायक जंजीरों में बंधी अपनी पर दादी यानी उस मॉन्स्टर को खोल देता है और हस्तर के खजाने के बारे में पूछता है। उसकी लालच बढ़ जाती है और वो खजाना पाने के लिए वापस लौटने की कसम खाता है।
तुंबाड किसी और हॉरर फिल्म से काफी अलग है। जहां बाकी हॉरर फिल्मों में एक आत्मा किसी इंसान और उसके परिवार को परेशान करती है। तुंबाड में लालच और प्रेत आत्मा की अजब कहानी दिखाई गई है। विनायक अपने लालच के लिए हस्तर का शोषण करता नजर आता है। फिल्म की यही बात उसे बाकियों से अलग करती है। हमारी तरफ से इस फिल्म को 3.5 स्टार।