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    द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर Review: बेजान फिल्म और मजाकिया कैरेक्टर्स, अक्षय-अनुपम की कोशिश नाकाम

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    Rating:
    2.0/5
    Star Cast: अनुपम खेर, अक्षय खन्ना, सुजैन बर्नेट, अहाना कुमराह, अर्जुन माथुर
    Director: विजय रत्नाकर गुट्टे

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    The Accidental Prime Minister Movie Review: Anupam Kher | Akshaye Khanna | FilmiBeat

    विजय गुट्टे की एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर में एक सीन हैं जहां डॉ मनमोहन सिंह (अनुपम खेर) अपने मीडिया सलाहकार संजय बारू (अक्षय खन्ना) से पूछते हैं कि वो इतना ड्रामा क्यों कर रहे हैं। बस कुछ ऐसा ही आपको बारू की किताब पर आधारित इस पूरी फिल्म के दौरान लगेगा।

    फिल्म की शुरूआत होती है सोनिया गांधी (सुजैन बर्नेट) की अध्यक्षता में 2004 के चुनावों में कांग्रेस की जीत से। जहां एक तरफ सोनिया के सलाहकार उन्हें पीएम की कुर्सी संभालने के लिए कहते हैं वहीं दूसरी तरफ वे अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह के लिए पीएम की कुर्सी आगे कर देती हैं। बिल्कुल वहीं से संजय बारू के नजरिए से हमें दिखाया जाता है कि दरवाजे के पीछे आखिर क्या हुआ.. जहां पर दिखाया जाता है कि कैसे सोनिया गांधी और उनके चहेते सपोर्टर्स द्वारा 10 साल के UPA सरकार में मनमोहन सिंह को हर वक्त नीचा दिखाया जाता है।

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    फिल्म का फर्स्ट हाफ आराम से निकलता है जहां मनमोहन सिंह को संजय बारू के साथ कई चुनौतियां पार करते हुए दिखाया जाता है। संजय बारू मनमोहन सिंह को हर कदम पर सही सलाह देते हैं और उनके लिए भाषण भी लिखते हैं।

    वहीं इंटरवल के बाद जबरदस्त ट्विस्ट आता है जब संजय बारू बयान करते हैं कि कैसे पार्टी अध्यक्ष के लिए निष्ठा और वंशानुगत उत्तराधिकार की राजनीति मनमोहन सिंह को सिर्फ एक मजाक बनाकर रख देती है। इसके बाद वे सिर्फ एक आसान निशाना बन जाते हैं जब वे अपने ही सहयोगियों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार (2G scam, Coalgate scam) पर आंख मूंद कर लेते हैं। मनमोहन सिंह मानते हैं कि UPA-2 सरकार में पार्टी अध्यक्ष इन सबका निबटारा खुद करेंगी। बाद में ये निर्णय घातक साबित होता है।

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    आखिरकार जब मनमोहन सिंह 2014 में पीएम के पद से विदा लेते हैं और प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके शब्द होते हैं- 'मैं आशा करता हूं कि समकालीन मीडिया से इतर इतिहास मेरे ऊपर थोड़ा नर्म होगा'

    विजय गुट्टे का निर्देशन असंगत है और लेखन में गहराई की कमी है जिसके चलते स्क्रीनप्ले काफी बिखरा-बिखरा नजर आता है। फिल्म में मनमोहन सिंह के लिए मानवीय भावना रखने के बजाए यहां भी मज़ाक बनाया गया है। जिससे ऑडिएंस उनके इमोशन्स से कनेक्ट नहीं हो सकी है। इस फिल्म में सभी कैरेक्टर्स सिर्फ हास्य चित्र मालूम होते हैं।

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    परफॉर्मेंस की बात करें तो अनुपम खेर ने वाकई शानदार काम किया है। उन्होंने मनमोहन सिंह के मनमोहन सिंह की बॉडी लैंग्वैज से लेकर उनके हर अंदाज को घोलकर पी लिया है। उनकी चाल और धीमे से बात करने का अंदाज अनुपम खेर ने शानदार तरीके से निभाया है।

    वहीं एक नैरेटर के तौर पर अक्षय खन्ना टेलर्ड-सूट में काफी स्मार्ट लगे हैं। उनके चेहरे पर हमेशा रहने वाली चालाकी से भरी मुस्कुराहट कई बार ऑडिएंस को सोच में डाल देती है। वहीं सुजैन बर्नेट न सिर्फ सोनिया गांधी की तरह दिखती हैं बल्कि उनके एक्सप्रेशन से लेकर बोलने का तरीका एकदम सटीक और शानदार है।
    प्रियंका गांधी के किरदार में अहाना कुमरा को एक या दो सीन ही मिले हैं। वहीं राहुल गांधी के किरदार में अर्जुन माथुर भी ठीक-ठाक लगे हैं।

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    कैमरा वर्क कुछ नया ऑफर नहीं करता बल्कि एडिटिंग कहीं-कहीं भटकी हुई भी नजर आती है। वहीं फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी काफी बेकार है जो नैरेटिव को फीका कर देता है।

    फिल्म में एक डायलॉग है जहां मनमोहन सिंह कहते हैं कि 'मुझे कोई क्रेडिट नहीं चाहिए, मुझे अपने काम से मतलब है क्योंकि मेरे लिए देश पहले आता है'.. फिल्म में अक्षय खन्ना का किरदार संजय बारू ही सारी स्पॉटलाइट ले जाते हैं क्योंकि वे हर पल महत्वपूर्ण खिलाड़ी की भूमिका में हैं। इसके लिए बारू के लेखन को भी जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। हमारी तरफ से इस फिल्म को 2 स्टार्स।

    English summary
    There's a dialogue in the film where Anupam Kher's Manmohan Singh says, "Mujhe koi credit nahi chahiye, mujhe apne kaam se matlab hai kyunki mere liye desh pehle aata hai." Well in the film, it's Akshaye Khanna's Sanjaya Baru who grabs the spotlight from Singh as he is portrayed as the key player in all the important moments. Maybe, Baru's writing is got to be blamed for this! I am going with 2 stars.
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