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शमशेरा फिल्म रिव्यू: जब कहानी ही कमजोर हो तो रणबीर कपूर का दम कितना काम करेगा
निर्देशक- करण मल्होत्रा
कलाकार- रणबीर कपूर, वाणी कपूर, संजय दत्त, सौरभ शुक्ला, रोनित रॉय, क्रैग मक गिनले, इरावती हर्षे
"आज़ादी कोई तुम्हें देता नहीं, आज़ादी छीनी जाती है.." अपनी जनजाति को गुलामी से आजाद करने के लिए जी जान से संघर्ष करता शमशेरा कहता है। पूरी कहानी इसी आज़ादी को केंद्रित में रखकर कही गई है। इस फिल्म के जरीए निर्देशक दर्शकों को 18वीं सदी की काल्पनिक दुनिया में ले जाने की कोशिश करते हैं। यशराज फिल्म्स की भारी भरकम बजट के जरीए प्रोडक्शन के स्तर पर निर्देशक ने यह अचीव भी कर लिया है। लेकिन क्या कहानी के साथ वो कोई प्रभाव छोड़ने में सफल रहे हैं? तो जवाब है, नहीं!
फिल्म संजू के चार सालों के बाद रणबीर कपूर इस फिल्म के साथ बड़ी स्क्रीन पर दिख रहे हैं। कोई शक नहीं कि वो एक उम्दा अभिनेता हैं और किसी भी किरदार में ढ़लने की कला बखूबी जानते हैं। लेकिन जब कहानी धोखा जाए तो किसी कलाकार की कला कितनी देर तक फिल्म बांध पाएगी। 'शमशेरा' कमजोर लेखन और निर्देशन का उदाहरण है।

कहानी
यह कहानी है कि खमीरन जनजाति की, जो कभी राजपूताना सेना की शान हुआ करते थे। लेकिन जातिगत भेदभाव की वजह से पहले समाज से उन्हें दरकिनार कर दिया.. फिर अंग्रेजों ने धोखे से बंदी बना लिया। यह काज़ा नाम के एक काल्पनिक शहर पर आधारित है, जहां के किले में एक निर्दयी दरोगा शुद्ध सिंह द्वारा पूरी खमीरन जनजाति को बंदी और गुलाम बनाया जाता है और उन लोगों को बुरी तरह प्रताड़िता किया जाता है। लेकिन जहां गुलामी होती है, वहां जंजीरों को तोड़ने वाला भी पैदा हो ही जाता है। खमेरनों के बीच आता है शमशेरा.. जो गुलामों का सरदार बन जाता है और फिर बनता है अपने कबीले की हिफाज़त करने वाला सबसे बड़ा योद्धा। वह अपने कबीले की आजादी और सम्मान के लिए जी-जान से संघर्ष करता है। और उसके बाद ये जिम्मेदारी उठाता है उसका बेटा बल्ली। बल्ली किसी तरह काजा के किले से भाग निकलता है और बाहर अपनी सेना बनाता है। लेकिन क्या वो अग्रेजों और दरोगा शुद्ध सिंह की सेना के होते अपने कबीले के लोगों को आज़ादी दिया पाएगा? इसी के इर्द गिर्द घूमती है पूरी कहानी।

अभिनय
कोई दो राय नहीं कि ये पूरी फिल्म रणबीर कपूर के कंधों पर ही टिकी है। बल्कि वही 2 घंटे 40 मिनट तक सीट पर जमे रहने की हिम्मत देते हैं। शमशेरा और बल्ली.. दोनों ही किरदार में रणबीर कपूर ने अच्छा काम किया है। एक ओर जहां उनके किरदारों में गंभीरता है, दूसरी ओर कुछ हिस्सों में मासूमियत भी दिखती है। ये रणबीर की पहली एक्शन फिल्म है.. और कहना चाहेंगे कि वो एक्शन सीन्स में खूब जमे हैं। लेकिन हैरानी वाली बात है कि निर्देशक ने उन्हें एक भी इमोशनल सीन क्यों नहीं दिये! रणबीर भावनात्मक दृश्यों को जिस खूबसूरती से निभाते हैं, वो सब जानते हैं, लेकिन यहां वो कमी खली। वाणी कपूर के हिस्से में यहां कुछ खास नहीं है। उनके नाम तीन गाने हैं और कोई शक नहीं कि वो बेहतरीन डांसर हैं, लेकिन अभिनय के मामले में उन्हें अभी थोड़ी और मेहनत की जरूरत है। वहीं, बैक टू बैक विलेन बन रहे संजय दत्त भी अब अपने भावों को दोहराते से लगते हैं। उनके किरदारों में बिल्कुल नयापन नहीं दिखता है और ये निर्देशक की चूक है। सहायक भूमिकाओं में सौरभ शुक्ला, रोनित रॉय, क्रैग मक गिनले ने अच्छा काम किया है।

निर्देशन
करण मल्होत्रा ने शमशेरा जैसी कहानी के साथ एक रिस्क लिया.. जहां उन्हें 18वीं सदी की कहानी बतानी थी। यहां उन्हें उम्दा एक्टर्स मिले, बजट मिला.. लेकिन नहीं मिली तो एक मजबूत कहानी। फिल्म की कहानी बेहद सतही लगती है। जब कहानी इतने बड़े स्तर की होती है तो एक चीज को सबसे ज्यादा काम करती है कि वो है इमोशनल फैक्टर। इस फिल्म में वो कमी खलती है। यहां आपको भी किरदार से या परिस्थितियों से कोई जुड़ाव महसूस नहीं होगा। फिल्म शुरु से अंत तक सपाट चलती है। लिहाजा, एक समय के बाद सिर्फ इसके क्लाईमैक्स का इंतजार करते हैं, जो आपको पहले से ही पता भी होती है। वहीं, कहना गलत नहीं होगा कि फिल्म की कहानी कई अलग अलग फिल्में और वेब सीरिज की खिचड़ी लगती है।

तकनीकी पक्ष
तकनीकी स्तर पर फिल्म अच्छी है। शमशेरा के साथ उन्होंने जो अनदेखी दुनिया दिखाने की कोशिश की है, उसमें सिनेमेटोग्राफर अनय गोस्वामी सफल रहे हैं। फिल्म के प्रोडक्शन डिजाइन की तारीफ होनी चाहिए। वीएफएक्स भी अच्छी है। पीयूष मिश्रा के संवाद औसत हैं। कई संवाद को कविता की तरह रखा गया है, लेकिन जब कहानी ही प्रभावी नहीं होती है तो भारी भरकम संवाद खोखले लगते हैं। शिवकुमार वी पाणिकर की एडिटिंग थोड़ी और चुस्त हो सकती थी, खासकर फिल्म के फर्स्ट हॉफ में।

संगीत
फिल्म का संगीत दिया है मिथुन ने, जो कि बेहद औसत है। ज़ी हुजूर, फितूर जैसे गाने थोड़ा प्रभाव डालते हैं, लेकिन कहानी के बाधा की तरह लगते हैं। सभी गाने सिर्फ फिल्म की लंबाई को बढ़ाने का काम करते हैं, जो पहले से ही काफी लंबी है। साथ ही गानों में रणबीर और वाणी की कैमिस्ट्री बिल्कुल निराश करती है।

रेटिंग- 2.5
शमशेरा पूरी तरह से रणबीर कपूर पर टिकी हुई फिल्म है। अभिनेता अपने दोनों किरदारों के साथ पूरी तरह से न्याय भी करते हैं। लेकिन कमजोर कहानी और निर्देशन फिल्म को औसत बना देती है। चार सालों के बाद रणबीर को इस फिल्म के साथ बड़े पर्दे पर देखना थोड़ा निराशाजनक रहा। फिल्मीबीट की ओर से 'शमशेरा' को 2.5 स्टार।
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