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    सत्यमेव जयते फिल्म रिव्यू : जॉन अब्राहम की हीरोगिरी और दादागिरी दोनों ही निकली A - 1

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    Rating:
    2.5/5
    Star Cast: जॉन अब्राहम, मनोज बाजपेयी, नोरा फतेही, अमरुता खांविलकर, तोता रॉय चौधरी
    Director: मिलाप जावेरी

    एक आदमी है जो कांच के टुकड़ों के बीच घायल पड़ा है। जॉन अब्राहम 500 रूपये के नोटों के बंडल के साथ आते हैं उन्हें नोट पकड़ाते हैं और कहते हैं - नोट बदले लेकिन नीयत नहीं। शुरूआत के लिए ये केवल जॉन अब्राहम और मनोज बाजपेयी की सत्यमेव जयते की एक छोटी सी झलक है। मिलाप झावेरी की ये फिल्म आपको पुराने ज़माने में वापस लेकर जाएगी।

    सत्यमेव जयते अगर गदर के ज़माने की फिल्म होती तो सॉलिड कमाई करती क्योंकि ये बिल्कुल उसी ढंग की मसाला इंटरटेनर है। जहां दर्शक हीरो के डायलॉग सुनकर सीटी मारते थे और मारते जाते थे। भ्रष्टाटार और कुर्सी आज के ज़माने की दो बड़ी समस्याएं हैं जिन्हें लेकर मिलाप ने बिल्कुल कॉमर्शियल इंटरटेनर बनाने की कोशिश की है।

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    अगर फिल्म के प्लॉट की बात करें तो जॉन अब्राहम का किरदार वीर एक सीरियल किलर बन चुका है और उन सारे लोगों को मौत के घाट उतार रहा है जो कि वर्दी पहनकर भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी करते हैं। तो हमारा ये हीरो इन लोगों को चुन चुन के मारता है। और कैसे मारता है? सीधा जला देता है। और इस गुस्से का कारण है उसका अतीत। और बदला लेने की एक प्रतिज्ञा।

    अब आते हैं इंस्पेक्टर शिवांश यानि कि मनोज बाजपेयी जो कि एक बड़ी मछली पकड़ना चाहते हैं इसलिए इस सीरियल किलर को पकड़ने का प्रण लेते हैं। वहीं दूसरी तरफ जब वीर देश से भ्रष्ट लोगों को जला नहीं रहा होता है तो वो कूड़ेदान से कुत्ते के पिल्ले उठाकर उनकी ज़िंदगी बचाने उन्हें एक जानवरों की डॉक्टर शिखा (आएशा शर्मा) के पास लेकर जाता है। ज़ाहिर सी बात है प्यार प्यार प्यार। बाकी का पूरा प्लॉट वीर और शिवांश की लुका छिपी का खेल है।

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    पहले ही फ्रेम से मिलाप झावेरी ने साफ कर दिया है कि वो आपको 70, 80, 90 के दशक का इंटरटेनमेंट देने आए हैं। जहां हीरो के साथ कुछ गलत होता है, फिर वो बदला लेने के लिए खुद गलत हो जाता है। कुछ बेहद भारी भरकम डायलॉग मारता है और दर्शक सीटियां मारते हैं। सत्यमेव जयते की स्क्रिप्ट जहां भी ढीली पड़ी है, फिल्म के डायलॉग्स ने बचा लिया है।

    इंटरवल के ठीक पहले फिल्म में एक ट्विस्ट आएगा जो आपके होश उड़ा देगा लेकिन क्लाईमैक्स आपको बुरी तरह निराश कर देगा। जॉन अब्राहम ने फिल्म में वही किया है जो वो बेस्ट करते हैं - बॉडी दिखाना, अपने हाथ से कार का पहिया उखाड़ देना और ना जाने क्या क्या। फिल्म का एक्शन केवल खून और खून है। लेकिन बात वहीं अटक जाती है जॉन के डायलॉग्स महफिल जमा देते हैं।

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    मनोज बाजपेयी इस फिल्म के मसाले को थोड़ा कम कर, फिल्म को संभालने की कोशिश करते दिखते हैं। आएशा शर्मा स्क्रीन पर अच्छी दिखी हैं लेकिन उनके किरदार के पास करने को कुछ नहीं था। वहीं अमृता खानविलकर का भी रोल दमदार नहीं दिखता।

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    नोरा फतेही का दिलबर, फिल्म का शानदार पॉइंट है लेकिन बाकी गानों में कोई मज़ा नहीं है। सत्यमेव जयते, नई बोतल में डाली हुई पुरानी शराब है जहां केवल डायलॉगबाज़ी पूरी फिल्म को बचा ले जाती है। इस फिल्म को देखिए लेकिन केवल पुराना ज़माना याद करने के लिए। फिल्मीबीट की तरफ से फिल्म को 2.5 स्टार।

    English summary
    Satyameva Jayate Film Review : John Abraham and his biceps entertain you like the 80's cinema and you will fall for the dialogues.
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