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'सम्राट पृथ्वीराज' फिल्म रिव्यू: अक्षय कुमार स्टारर प्यार और पराक्रम की ये कहानी भावनाओं में है कमजोर
निर्देशक - डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी
कलाकार - अक्षय कुमार, मानुषी छिल्लर, सोनू सूद, संजय दत्त, मानव विज, साक्षी तंवर, आशुतोष राणा
"मेरे आपके हक बराबर, मेरे आपके फर्ज़ बराबर, मेरा आपका स्थान बराबर.." शादी के बाद रानी संयोगिता को दरबार में अपने बराबर का स्थान देते हुए सम्राट पृथ्वीराज कहते हैं। ये फिल्म सम्राट पृथ्वीराज की वीरगाथा के अलावा संयोगिता के साथ उनकी प्रेम की कहानी भी बयां करती है। चंद बरदाई की पृथ्वीराज रासो पर आधारित, ये फिल्म सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जीवन और उनके मूल्यों को दर्शाती है।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शौर्य और वीरता की कहानी हम सब इतिहास की किताब में पढ़ते आए हैं, लेकिन क्या उन घटनाओं को बड़े पर्दे पर लाने में निर्माता आदित्य चोपड़ा और निर्देशक डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी सफल रहे हैं? शायद नहीं। इस फिल्म का प्लॉट जितना मजबूत है, बड़े पर्दे पर execution में वह उतनी ही कमजोर दिखी है।

कहानी
मुहम्मद गोरी (मानव विज) ने अपने भाई मीर हुसैन की प्रेमिका चित्ररेखा को कब्जे में ले लिया था। जिसके जान की भीख मांगते हुए मीर हुसैन सम्राट पृथ्वीराज चौहान (अक्षय कुमार) के पास आया। शरण में आए हुए की रक्षा करने को कर्तव्य मानने वाले सम्राट पृथ्वीराज ने मुहम्मद गोरी को संदेश भेजा कि या तो चित्ररेखा को वापस करे या युद्ध होगा। यहां से दोनों के बीच दुश्मनी हुई। सम्राट पृथ्वीराज ने साल 1191 में तराइन की युद्ध में मुहम्मद गोरी को हराकर उसे कब्जे में ले लिया। लेकिन कुछ ही दिनों में उसे माफ कर वापस अफगानिस्तान भेज दिया। इस बीच फिल्म युद्ध से अलग हमें पृथ्वीराज चौहान के निजी जीवन में झांकने का मौका देती है, जब कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता के साथ उनका प्रेम विवाह होता है। इस विवाह से नाराज कन्नौज के राजा जयचंद अपने मन में पृथ्वीराज के प्रति द्वेष रखते हुए मुहम्मद गोरी से हाथ मिला लेते हैं। इसके बाद पृथ्वीराज और गोरी के बीच फिर युद्ध होता है, जहां धोखे और फरेब से पृथ्वीराज और चंद बरदाई (सोनू सूद) को बंदी बना लिया जाता है। प्रेमगाथा और युद्धभूमि के बीच अपनी मातृभूमि के लिए पृथ्वीराज चौहान किस तरह अपनी शौर्य और वीरता का परिचय देते हैं.. इसी के इर्द गिर्द घूमती है फिल्म।

अभिनय
सम्राट पृथ्वीराज के किरदार में अक्षय कुमार कुछ दृश्यों में अच्छे लगे हैं, खासकर जहां एक्शन दिखाना हो। लेकिन जहां बात हाव भाव दिखाने और संवाद अदायगी की आती है, वहां अभिनेता इस फिल्म में बेहद सपाट नजर आते हैं। मानुषी छिल्लर आत्मविश्वास से भरी लगती हैं। स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी भी अच्छी है, लेकिन अभिनय निखारने पर उन्हें अभी काफी काम करना होगा। कवि चंद बरदाई के किरदार में सोनू सूद में परिपक्वता नजर आती है। देखा जाए तो अभिनय के मामले में वही इस फिल्म में ध्यान आकर्षित करते हैं। जबकि काका के किरदार में संजय दत्त, मुहम्मद गोरी के किरदार में मानव विज, जयचंद के किरदार में आशुतोष राणा जैसे कलाकार अधपके पटकथा का शिकार बने हैं और कोई प्रभाव नहीं छोड़ते हैं।

निर्देशन
सम्राट पृथ्वीराज चौहान की महानता के साथ न्याय करने के लिए फिल्म को एक बेहद मजबूत पटकथा की जरूरत थी, जो उनकी यात्रा, वीरता और सोच का जश्न मनाए, लेकिन फिल्म निर्माता- निर्देशक ने फिल्म को एंटरटेनिंग बनाने की होड़ में अति नाटकीय बना दिया। दर्शकों को पात्रों से परिचित कराने के बजाय, फिल्म एक सीक्वेंस से दूसरे सीक्वेंस पर इतनी तेजी से आगे बढ़ती है कि किरदारों से भावनात्मक तौर पर जुड़ने का मौका ही नहीं मिलता है। ना पृथ्वीराज- संयोगिता की प्रेम गाथा असर छोड़ती है, ना पृथ्वीराज- गोरी की दुश्मनी प्रभावशाली लगती है। फिल्म की शुरुआत काफी दिलचस्प तरीके से होती है। निर्देशक डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने जिस तरह फिल्म की ओपनिंग और क्लाईमैक्स को जोड़ा है, वह रोमांचक है। लेकिन पहले आधे- पौने घंटे के अलावा फिल्म की लिखावट सपाट है।

तकनीकी पक्ष
इतिहास पर बनी फिल्मों के लिए तकनीकी तौर पर मजबूत होना बहुत आवश्यक हो जाता है और 'सम्राट पृथ्वीराज' इस पक्ष में अच्छे अंकों से पास होती है। फिल्म का प्रोडक्शन डिजाइन किया है सुब्रत चक्रवर्ती और अमित रे ने, जो कि शानदार है। फिल्म पर्दे पर भव्य और सटीक दिखती है। मानुष नंदन की सिनेमेटोग्राफी फिल्म की भव्यता के साथ पूरा न्याय करती है। लेकिन आरिश शेख द्वारा की गई फिल्म की एडिटिंग थोड़ी कमजोर है। पूरी फिल्म इतनी तेजी में चलती है कि कहानी का हिस्सा समझने या सराहने का आपको मौका ही नहीं मिलता है, लिहाजा कहानी प्रभावित नहीं कर पाती है। अंकित बलहारा और संचित बलहारा द्वारा दिया गया बैकग्राउंड स्कोर औसत है। फिल्म के संवाद को किसी विशेष लहजे में नहीं ढ़ाला गया है, जो कुछ भागों में अच्छा लगता है, लेकिन कहीं ना कहीं प्रमाणिकता से दूर करता है।

संगीत
फिल्म का संगीत दिया है शंकर- एहसान- लॉय ने और बोल लिखे हैं वरुण ग्रोवर ने। फिल्म का संगीत औसत है। टाइटल ट्रैक "हरि हर" को छोड़कर कोई भी गाना प्रभावित नहीं करती है। साथ ही गाने फिल्म की लंबाई को बढ़ाने के अलावा कोई योगदान नहीं देते। ना प्रेम कहानी को प्रभावी बनाते हैं, ना युद्ध के दौरान रोंगटे खड़े करने वाला असर डालते हैं।

देंखे या ना देंखे
भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के वीरता, शौर्य और प्यार की ये कहानी पन्नों पर भले बहुत मजबूत रही होगी, लेकिन बड़ी स्क्रीन पर आकर्षित नहीं करती है। इतिहास पर बनी फिल्मों का जो प्रभाव होना चाहिए, महान सम्राट पर बनी फिल्म में जो आत्मा होनी चाहिए.. वही यहां में गायब है। हालांकि फिल्म बहुत बड़े स्केल पर बनाई गई है, जिस वजह से बड़ी स्क्रीन पर भव्य दिखती है। फिल्मीबीट की ओर से 'सम्राट पृथ्वीराज' को 2.5 स्टार।