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Salaam Venky Review: धीमी कहानी में जान भरते हैं काजोल और विशाल जेठवा, टिश्यू बॉक्स साथ रखना ना भूलें
निर्देशक- रेवती
कलाकार- काजोल, विशाल जेठवा, राजीव खंडेलवाल, राहुल बोस, आहना कुमरा, प्रकाश राज, प्रियमणि, अनंत महादेवन, आमिर खान
"जिस इंसान को इज्जत से जीने का हक है, उसे इज्जत से मरने का भी हक होना चाहिए".. फिल्म 'सलाम वेंकी' रियल लाइफ हीरो वेंकटेश उर्फ वेंकी और उसकी मां सुजाता की कहानी बताती है। यह श्रीकांत मूर्ति की किताब 'द लास्ट हुर्रा' (The Last Hurrah) पर आधारित है। एक मां- बेटे की भावनात्मक कहानी से शुरु होते हुए ये फिल्म euthanasia यानि की इच्छा मृत्यु जैसे अहम मुद्दे को उठाती है, जो कि हमारे देश में अभी भी वैध नहीं है।
कहानी
फिल्म की कहानी वेंकी (विशाल जेठवा) की है, जो मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित है। यह एक ऐसी दुर्लभ बीमारी है, जिसकी वजह से धीरे धीरे साल दर साल बच्चे की मांस पेशियां काम करना बंद कर देते हैं। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की उम्र ज्यादा से ज्यादा 14- 15 वर्ष तक की होती है। लेकिन वेंकी अपना 24वां साल जी रहा है। वह एक खुशमिजाज लड़का है, जिसने अपनी नियति को स्वीकार कर लिया है कि उसकी मौत नजदीक है। अस्पताल ही उसका घर है और डॉक्टर्स उसके दोस्त। लेकिन वेंकी की मां सुजाता (काजोल) इस सच्चाई को स्वीकार करने के लिए संघर्ष करती है। वो अपने बेटे के लिए वह सबकुछ करती है जो वो कर सकती है।
मां- बेटे का इमोशनल बॉन्ड
जब वेंकी के चंद आखिरी दिन बचे होते हैं, तो वो अपनी मां के सामने एक ऐसी मांग रख देता है, जिसे सुनकर सभी हतप्रभ रह जाते हैं। वेंकी euthanasia चाहता है, ताकि वो अपने आर्गेन डोनेट कर सके और उससे कुछ लोगों को जीवनदान मिले। शुरुआत में सुजाता इसके लिए राजी नहीं होती है, लेकिन धीरे धीरे वह समझती है कि वेंकी के लिए उसकी ये आखिरी ख्वाहिश कितनी महत्वपूर्ण है। वह अपने बेटे की आखिरी इच्छा को पूरी करने के लिए देश के कानून से लड़ती है.. क्योंकि भारत में euthanasia कानूनन जुर्म है। इस लड़ाई में सुजाता को वेंकी के डॉक्टर (राजीव खंडेलवाल), वकील (राहुल बोस) और पत्रकार (आहना कुमरा) का भी साथ मिलता है। लेकिन क्या उसे इस लड़ाई में जीत मिल पाएगी? क्या वेंकी की आखिरी इच्छा पूरी होगी? इसी के इर्द गिर्द घूमती है कहानी।
अभिनय
फिल्म पहले दृश्य से लेकर आखिरी दृश्य तक किसी इमोशनल रोलर कोस्टर की तरह चलती है। कई जगहों पर आपकी आंखें नम होगीं। मां और बेटे के किरदार में काजोल और विशाल जेठवा ने दमदार प्रदर्शन किया है। दोनों के बीच की केमिस्ट्री ही है, जो आपके दिल को छूती है। एक दृश्य में अस्पताल के बेड पर लेटा वेंकी जोर जोर से रोते हुए अपनी मां को आवाज लगाता है क्योंकि उसे लगता है कि मां गुस्सा है.. इस दृश्य को जिस तरह से दोनों कलाकारों ने निभाया है, वो अद्भुत है। विशाल जेठवा ने इससे पहले फिल्म 'मर्दानी 2' में अपने अभिनय का लोहा मनवाया था.. और अब यहां भी उन्हें एक ऐसा किरदार मिला है, जहां वो हाव भाव के साथ काफी खेल पाए। सहायक किरदारों में राजीव खंडेलवाल, राहुल बोस, आहना कुमरा, प्रकाश राज, प्रियमणि, अनंत महादेवन ने अच्छा काम किया है। वहीं, आमिर खान का कैमियो काफी प्रभावी करने वाला है।
निर्देशन
फिल्म के निर्देशन का जिम्मा उठाया है रेवती ने। पटकथा लिखी है कौसर मुनीर और समीर अरोड़ा ने। 'सलाम वेंकी' एक रियल लाइफ हीरो की कहानी है, जो कि काफी भावनात्मक है। फिल्म में भी इमोशनल स्तर पर कहानी को पूरे मार्क्स मिलते हैं। लेकिन किसी कहानी से बांधे रखने के लिए पटकथा को सही गति देना भी जरूरी होता है। फिल्म कई हिस्सों में बेहद धीमी जाती है.. खासकर फर्स्ट हॉफ में। इंटरवल में आप काफी मिली जुली प्रतिक्रिया के साथ रह जाते हैं क्योंकि तब तक फिल्म में किरदार पर किरदार आते जाते हैं, और कहानी किसी के साथ न्याय नहीं करती है। सेकेंड हॉफ में स्थिति संभलती है। वहीं संवाद के मामले में भी फिल्म औसत जाती है। कहानी में ह्यूमर कुछ जगहों पर काम करता है, जबकि कहीं कहीं फ्लैट जाता है। आमिर खान के किरदार से जुड़ा रेफरेंस प्रभावित करता है।
तकनीकी पक्ष
रवि वर्मन की सिनेमेटोग्राफी खूबसूरत है। वहीं, प्रोडक्शन डिजाइन भी तारीफ भी होनी चाहिए। मनन सागर की एडिटिंग थोड़ी और चुस्त हो सकती थी। खासकर फर्स्ट हॉफ में फिल्म को काफी खींचा गया सा लगता है। फिल्म का संगीत मिथुन द्वारा रचित है। गाने के बोल मिथुन, संदीप श्रीवास्तव और कौसर मुनीर ने लिखे हैं। "जिंदगी बड़ी" छोड़कर हालांकि कोई गाना याद नहीं रह जाता है।
कुल मिलाकर, पटकथा के स्तर पर कुछ कमियों के बावजूद, काजोल और विशाल जेठवा अभिनीत "सलाम वेंकी" दमदार अभिनय से सजी एक इमोशनल ड्रामा है, जो आपके दिल को छूती है। फिल्मीबीट की ओर से "सलाम वेंकी" को 3 स्टार।
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