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Rk/Rkay रिव्यू: दिलचस्प ट्विस्ट और व्यंग्य के साथ एंटरटेन करती है रजत कपूर- मल्लिका शेरावत की फिल्म
निर्देशक- रजत कपूर
कलाकार- रजत कपूर, मल्लिका शेरावत, रणवीर शौरी, कुब्रा सैत, मनु ऋषि चड्डा, चंद्रचूर राय
"आपको कैसे मालूम कि आप किसी कहानी के किरदार नहीं हैं? हो सकता है कि आपको भी किसी ने लिखा है और आपके पास भी उतने ही लफ़्ज़ हैं, जितने आपको दिये गए हैं," महबूब सामने गुस्से में खड़े आरके (RK) से कहता है। आरके/आरके (RK/RKAY) में फिल्म के भीतर एक फिल्म चलती है। आरके (रजत कपूर) एक फिल्म निर्देशक हैं जो अपनी नई फिल्म पर काम कर रहे हैं। जिसके अभिनेता महबूब भी वो भी खुद ही हैं और अभिनेत्री हैं नेहा (मल्लिका शेरावत), जो महबूब की प्रियतमा गुलाबो का किरदार अदा कर रही हैं।
फिल्म की शूटिंग पूरी हो जाती है, लेकिन निर्माता (मनु ऋषि चड्डा) फिल्म से संतुष्ट नहीं होते हैं और क्लाईमैक्स बदल देने की सलाह देते हैं। निर्माता और निर्देशक के बीच थोड़ी बहस छिड़ती है, लेकिन दोनों के होश तब उड़ जाते हैं, जब फिल्म का मुख्य किरदार महबूब गायब हो जाता है। जी हां, गायब.. यानि की फिल्म की पूरी रील से उसके दृश्य गायब हो जाते हैं।
अब फिल्म को पूरी करने के लिए उन्हें अपने किरदार को ढूंढ़ने की जरूरत होती है। ऐसे में आरके का बेटा उनसे कहता है, "आपने उस किरदार को लिखा है, आपसे ज्यादा महबूब को कौन जान सकता है.." इसके बाद आरके अपने किरदार की खोज में लग जाता है। आरके/आरके उन फिल्मों में है, जहां वास्तविकता और काल्पनिक दुनिया के बीच की रेखा धुंधली पड़ जाती है। यह क्रिएटर और उसके क्रिएशन के बीच की दिलचस्प कहानी है।
निर्देशन
ये फिल्म सुनकर जितनी जटिल लग रही है उतनी ही जटिल है भी। अभिनेता कई पात्र निभाते हैं और सबसे जुड़े कुछ अनसुलझे लेकिन दिलचस्प प्लॉट हैं। निर्देशन की बात करें तो रजत कपूर ने बड़ी स्पष्टता के साथ किरदारों की इस भ्रमित दुनिया को लगातार डेढ़ घंटों तक बनाकर रखा है। वह जिस तरह से किरदारों के साथ खेलते हैं, उसे देखना काफी मजेदार है।
फिल्म का लेखन भी रजत कपूर ने ही किया है और कोई दो राय नहीं कि काफी मनोरंजक लिखा गया है। यहां किसी संवाद के द्वारा आपको जबरदस्ती हंसाने की कोशिश नहीं की गई है, बल्कि स्वाभाविक रूप से यह गुदगुदाती है। खास बात है कि यह इतनी छोटी फिल्म है कि लगातार शुरु से अंत तक आपको बांधे रखती है।
तकनीकी पक्ष
लेकिन साथ ही कहना चाहेंगे कि जो फिल्म के सकारात्मक पक्ष हैं, वही इसकी कमी भी साबित हो सकती है। खासकर बड़े पर्दे पर देखने वाले दर्शकों के लिए। इस फिल्म की कहानी में बड़े पर्दे वाले तत्वों की कमी है। यह एक ख्वाब जैसी इंटिमेट लगती है। जिसे ओटीटी के रास्ते से भी दर्शकों तक लाया जा सकता था।
तकनीकी स्तर पर फिल्म अच्छी है। फिल्म में 60 के दशक के सिनेमा को दिखाया गया है, लिहाजा मेकअप, कॉस्ट्यूम और लोकेशंस काफी अहमियत रखती है.. और यहां फिल्म पास होती है। सुरेश पाई की एडिटिंग काफी सधी हुई है। सागर देसाई का संगीत कहानी को एक सुर देता है। वहीं, रफी महमूद की सिनेमेटोग्राफी बेहद दिलचस्प है और ध्यान आकर्षित करती है।
अभिनय
वहीं, अभिनय की बात करें तो रजत कपूर एक शानदार कलाकार हैं और यहां भी दोनों किरदारों को काफी सहजता के साथ निभाते नजर आए हैं। जहां आरके में गंभीरता और एक रहस्य नजर आता है, महबूब एक संजीदा किरदार है। गुलाबो के किरदार में मल्लिका शेरावत ने अच्छा काम किया है। कोई शक नहीं कि यह उनके द्वारा निभाया गया सबसे अलग किरदार है। रणवीर शौरी, मनु ऋषि चड्डा, कुब्रा सैत, चंद्रचूर राय ने भी अपने अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय है।
रेटिंग- 3.5 स्टार
कुल मिलाकर, 'आरके/आरके' जैसी फिल्में बॉलीवुड में बिरले ही बनती हैं, जो कथानक के साथ ऐसी रिस्क लेते हों। हॉलीवुड में ऐसी फिल्में बनी हैं, जहां वास्तविकता और काल्पनिक दुनिया मिलकर एक हो जाती है। ये फिल्म अपने किरदारों और परिस्थतियों के जरीए कुछ हिस्सों में दार्शनिक होती भी लगती है। यह इच्छाओं से जुड़ी, मृत्यु और जिंदगी से जुड़ी बातें करती हैं। फिल्म में एक किरदार आरके से कहता है, "आपकी पिछली फिल्म तो बकवास थी, ये उतनी बेकार नहीं है.."। बहरहाल, हम कहना चाहते हैं कि ये बेकार नहीं, बल्कि एक मनोरंजक और एक्सपेरिमेंटर फिल्म है। फिल्मीबीट की ओर से आरके/आरके (Rk/Rkay) को 3.5 स्टार।
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