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Monica O My Darling Film Review: राजकुमार राव - हुमा कुरैशी का ये सांप सीढ़ी का खेल ज़बरदस्त पासा पलटता है
Monica O My Darling Film Review
फिल्म - मोनिका ओ माय डार्लिंग
डायरेक्टर - वासन बाला
लेखक - योगेश चंदेकर
स्टारकास्ट - राजकुमार राव, हुमा कुरैशी, सिकंदर खेर, बक्स, ज़ैन मैरी खान, सुकांत गोयल, शिव रिंदानी व अन्य
प्लेटफॉर्म - नेटफ्लिक्स
अवधि - 2 घंटे
कभी आपने सांप और सीढ़ी का खेल खेला है? जहां आप बड़े जतन से एक एक कदम आगे बढ़ते हैं और अचानक किस्मत पलटती है और आप सीढ़ी चढ़ जाते हैं, जीत के करीब। लेकिन फिर पासा पलटता है और किस्मत भी, एक सांप डसता है और आप वापस सीढ़ियों के इंतज़ार में एक एक कदम चढ़ने लगते हैं। मोनिका ओ माय डार्लिंग भी सांप सीढ़ी का ऐसा ही एक दिलचस्प खेल है। यहां खिलाड़ी बस एक है - मोनिका। वो पासा पलटती जाती है और अपनी बड़ी सी कंपनी के बड़े बड़े रसूखदारों को सीढ़ी बनाती जाती है।
लेकिन इन सीढ़ियों पर चढ़ते हुए सांप केवल मोनिका को डंसता है या बाकी लोगों को ये आपको ये मज़ेदार सस्पेंस थ्रिलर देखने पर ही पता चलेगा। मोनिका ओ माय डार्लिंग के केंद्र में मोनिका (हुमा कुरैशी) और उसके जाल में फंसा हुआ जयंत।
सबसे दिलचस्प ये है कि ये फिल्म मर्डर मिस्ट्री नहीं है बल्कि सीरियल मर्डर मिस्ट्री है। फिल्म में ढेर सारे किरदार हैं और इन सबका एक एक कर मर्डर होता है। लेकिन क्या ये मर्डर किसी सीरियल किलर ने किया है। क्या फिल्म के अंत में इस सीरियल किलर का नाम उजागर होगा? ये देखने के लिए तो आपको फिल्म देखनी ही पड़ेगी। लेकिन इसके अलावा भी ढेर सारे कारण है जिसकी वजह से आपको ये फिल्म देखनी ही पड़ेगी।
कहानी
मोनिका ओ माय डार्लिंग की कहानी शुरू होती है और मर्डर के साथ। मर्डर किसने किया ये भी साफ पता चलता है। और लगता है कि यहीं से कहानी शुरू होगी। लेकिन फिर छह महीने के बाद की कहानी के साथ फिल्म वापस शुरू होती है और ऐसा लगता है कि वो किस्सा पीछे छूट गया। इसके बाद कहानी आगे बढ़ती है जयंत (राजकुमार राव) के साथ जो कि एक कंपनी का नया शेयर होल्डर है। वजह ये कि कंपनी के मालिक की बेटी उसकी गर्लफ्रेंड निक्की (आकांक्षा रंजन कपूर) है। लेकिन जयंत की ज़िंदगी में दिक्कतें तब आती हैं जब कंपनी की एक और कर्मचारी मोनिका (हुमा कुरैशी) उसके बच्चे के साथ प्रेगनेंट हो जाती है और उसे ब्लैकमेल करने लगती है।
किरदार
मोनिका ओ माय डार्लिंग में किरदार ढेर सारे हैं और हर किरदार का अपना एक अलग ग्राफ है। सारे ही किरदार, छोटे या बड़े, आपको फिल्म में अहम और ज़रूरी लगेंगे। सबसे खास बात ये कि फिल्म का मुख्य किरदार, मोनिका आपको ज़्यादा देऱ के लिए स्क्रीन पर नहीं दिखाई देगा। लेकिन जब भी ये किरदार स्क्रीन पर आएगा, कहानी का रूख मोड़ देगा। फिल्म का दूसरा मुख्य किरदार है राजकुमार राव का जयंत। छोटे से शहर अंगोला से आया एक लड़का जो रोबोटिक्स की दुनिया में कुछ बड़ा करना चाहता है। जिसे ये लगता है कि आज वो जिस मुकाम पर है उसमें रईस लड़की को डेट करने से ज़्यादा हाथ उसकी काबिलियत का है।
ढेर सारे किरदार
इसके साथ ही फिल्म में ढेर सारे छोटे छोटे किरदार हैं। सिकंदर खेर, कंपनी के मालिक के बेटे निशि की भूमिका में छोटी मगर मज़ेदार सी पारी खेलते हैं। वहीं गौरव मोरे के किरदार में सुंकात गोयल अपने हर सीन पर आपकी नज़र उनकी तरफ ही खींच कर रखते हैं क्योंकि अगर आपकी नज़र हटी तो क्या पता वो फिर कुछ खेल कर जाएं। बागवती पेरूमल के किरदार में अरविंद स्वामी भी इस मर्डर मिस्ट्री का अहम हिस्सा बनते हैं। राधिका आप्टे, फिल्म के दूसरे हिस्से में अपनी मज़बूत एंट्री लेती हैं, एसीपी नायडू की भूमिका में। वहीं जयंत की बहन शालू के किरदार में ज़ैन मैरी खान भी अपने सीन बखूबी परदे पर उतारती हैं। हर किरदार के साथ आप बस हर मर्डर का क्लू, इन किरदारों में ढूंढते दिखते हैं। कभी कभी आप इनके डायलॉग्स दो बार ध्यान से सुनेंगे तो कभी इनके हाव भाव देखेंगे। बस ये जानने के लिए या तो इनमें से कोई एक अगला मरने वाला है या फिर इन्हीं में से कोई एक मारने वाला है।
क्या है खास
इस फिल्म का सबसे खास पक्ष है इसे पेश करने का तरीका। वैसे तो निर्देशन वासन बाला की ये फिल्म मर्डर मिस्ट्री है लेकिन इसे बेहद ही कॉमिक अंदाज़ में पेश किया गया है। योगेश चंदेकर की कहानी इतनी ज़्यादा कसी हुई है कि पलक झपकाने की भी फुर्सत नहीं मिलती है। आगे - पीछे, दाएं - बाएं, कहानी के साथ आप भी घूमते रहेंगे लेकिन फिर भी आपका सर नहीं चकराएगा। सांप - सीढ़ी के इस खेल में आपको धीरे धीरे मज़ा आएगा और इसका क्रेडिट अतानु मुखर्जी की एडिटिंग को दिया जाना चाहिए। ये पूरी टीम मिलकर आपको 2 घंटे की एक सफल फिल्म देती है जो आपको पूरी तरह से इंटरटेन करती है।
क्या करता है निराश
इस बार निराश, आपको ये फिल्म नहीं करेगी। बल्कि आप खुद से निराश होंगे। क्योंकि जिस कदम आपको लगेगा कि आपने तो ये गुत्थी सुलझा ली, उसके अगले ही सीन में आपको फिर से एक गूगली मिलेगी। साथ ही फिल्म के छोटे छोटे क्लू आपको अंत तक गुत्थी सुलझाने में मदद ज़रूर करते रहेंगे। लेकिन जैसे ही आप एक क्लू की सीढ़ी पकड़कर गुत्थी सुलझाने के करीब पहुंचेंगे, फिर आपको एक ट्विस्ट का सांप डस लेगा और आप वापस ढेर सारे मर्डर और ये मर्डर किसने किए के सवाल पर आकर अटक जाएंगे। इसलिए फिल्म आपको कहीं से भी निराश होने का मौका नहीं देगी। आप फिल्म के साथ इस खेल के मज़े लेंगे। फिल्म के एक सीन में एसीपी नायडू (राधिका आप्टे) कहती हैं - कहानी को ढीला छोड़ने का। बस ऐसा ही यहां पर लेखक योगेश चंदेकर और डायरेक्टर वासन बाला की टीम ने शातिर तरीके से किया है।
कहानी की स्टार
अगर सांप सीढ़ी के खेल में सांप को सपेरा कंट्रोल करने लगे तो कितना मज़ा आ जाए। मोनिका ओ माय डार्लिंग का सपेरा है इसका म्यूज़िक जो अपनी बीन पर आराम से सबको नचा सकता है। कहानी को भी और दर्शक को भी। इसलिए इस कहानी का स्टार है इसका म्यूज़िक जिसके लिए अचिंत ठक्कर की टीम को बधाई देनी चाहिए। फिल्म का गाना एक ज़िंदगी काफी नहीं है, पूरी फिल्म की नींव बनता है। अनुपमा श्रीवास्तव की आवाज़ में ये गाना आपको 70 के दशक की रेट्रो की दुनिया की ऐसी तगड़ी झलक देता है कि ये कह पाना मुश्किल है कि ये गाना ओरिजिनल है या फिर किसी पुराने गाने का रीमेक। एक मर्डर मिस्ट्री को मज़बूती से कॉमेडी के साथ पेश करना बेहद कठिन काम है जिसे आसान करती है फिल्म का प्रभावी बैकग्राउंड। साउंड डिज़ाईनर कुणाल शर्मा इसके लिए बधाई के हकदार हैं। वहीं हर गाने के साथ फिल्म कहानी को साथ साथ आगे लेकर चलती है और इसमें कोई चूक ना हो इसका ध्यान रखते हैं इन गानों को लिखने वाले गीतकार वरूण ग्रोवर।
देखें या नहीं देखें
अब यहां तक अगर आप आ चुके हैं तो आप ये जानने के लिए रूकेंगे भी नहीं कि फिल्म देखनी है या नहीं। मोनिका ओ माय डार्लिंग एक मज़ेदार मर्डर मिस्ट्री है और इंटरटेनमेंट का पूरा डोज़ आपको देती है। ये फिल्म आप नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं।