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    कबीर सिंह फिल्म रिव्यू - शाहिद कपूर के करियर की बेस्ट परफॉर्मेंस, पूरी फिल्म पैसा वसूल

    By Staff
    |

    Rating:
    3.5/5

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    Kabir Singh Movie Review: Shahid Kapoor | Kiara Advani | Sandeep Reddy Vanga | FilmiBeat

    एक सीन में में देवदास बना हुआ दिल टूटा आशिक कबीर सिंह (शाहिद कपूर) अपने दोस्तों को बताता है कि ज़िंदगी में तीन ही घटनाएं अच्छी होती है - पैदा होना, प्यार होना और मर जाना। बाकी सब कुछ जो हमारी ज़िंदगी में होता है वो किसी ना किसी चीज़ के प्रति हमारा रिएक्शन होता है। और वाकई इन तीन घटनाओं के साथ आप कबीर सिंह की ज़िंदगी बदलते देखेंगे।

    फिल्म एक सीन के साथ शुरू होती है जहां एक आदमी और औरत बिस्तर पर सो रहे हैं और पीछे से समुद्र की तेज़ लहरों की आवाज़ आ रही है। इन्हीं लहरों की आवाज़ के साथ हम कबीर सिंह की तूफानी ज़िंदगी में एंट्री लेते हैं। वो एक मेडिकल सर्जन है और फुटबॉल चैंपियन है। लेकिन अंदर ही अंदर कई समस्याओं से घुट रहा है जिनमें बेतहाशा गुस्सा एक है।

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    कबीर सिंह की नज़रें जैसे ही प्रीति (कियारा आडवाणी) पर पड़ती हैं, वो बागी बन जाता है , ऐसा बागी जिसके पास अब एक मक़सद भी है। एक शरमाई सी सहमी सी लड़की, प्रीति भी कबीर को अपने दिल की बात बताती है लेकिन उनका रिश्ता ज़्यादा दिन तक नहीं चलता है। इसके बाद कबीर खुद को तबाही के रास्ते पर ले चलता है। शराब, नशा और सेक्स, हर चीज़ उसे उसके दुख से दूर ले जाने की कोशिश करती है।

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    कबीर सिंह तेलुगू फिल्म अर्जुन रेड्डी का हिंदी रीमेक है। तेलुगू फिल्म में विजय देवरेकोंडा और शालिनी पांडे ने चार चांद लगाए थे। शाहिद कपूर की फिल्म का हर फ्रेम, ओरिजिनल फिल्म की कॉपी है। हालांकि हिंदी दर्शकों की उम्मीदें पूरी करने के लिए डायरेक्टर संदीप वांगा रेड्डी ने पूरी कोशिशें की हैं।

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    कबीर सिंह में बहुत कमियां हैं। वो एक नशेड़ी है, औरतों को अपनी जागीर समझता है, एक सनकी आशिक है। लेकिन इन बातों को समझना ज़रूरी है कि कबीर सिंह कैसे इस तरह का इंसान बना है। इससे पहले कि फिल्म को पुरूष प्रधान समाज की झलक कह दिया जाए, फिल्म की भाषा को समझना बहुत ज़रूरी है।

    अब ये सही है या गलत वो कभी खत्म ना होने वाली बहस है और इस बहस के लिए सबकी अपनी अपनी दलीलें हो सकती हैं। इसके बावजूद आप कबीर सिंह को समझने की कोशिश करते हैं और इसका पूरा श्रेय जाता है संदीप के शानदार लेखन को।

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    जब कबीर का भाई अपनी दादी को कहता है कि कबीर की मदद करिए उसका दुख कम करने में तो दादी का कहना है कि दुख कभी कोई किसी का कम नहीं कर सकता। सबको अपने अपने हिस्से का दुख झेलना है। लेकिन ये दर्द संदीप आपको भी महसूस करवाते हैं। आप कबीर के सफर पर उसके साथ निकल पड़ते हैं और इसलिए क्लाईमैक्स तक आप भी फिल्म का हिस्सा बन जाते हैं। और यहीं कबीर सिंह की जीत है।

    हालांकि फिल्म में अर्जुन रेड्डी सा बेबाकीपन नहीं है। संदीप ने कुछ सीन भी छोड़ दिए हैं जो फिल्म को और गहरा बना सकते थे। इसके अलावा, फिल्म को ए सर्टिफिकेट देने के बावजूद सेंसर बोर्ड ने फिल्म से सारी गालियां बीप कर दी हैं जो आपको फिल्म के बीच में गुस्सा दिलाएगा। अगर आपको जुनूनी प्रेम कहानियां नहीं पसंद है तो आपको कबीर सिंह 3 घंटे के लिए झेला सकती है।

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    कबीर सिंह पूरी तरह से शाहिद कपूर की फिल्म है। प्यार, गुस्सा, जुनून, सनक, आसपास के लोगों के साथ बेहूदापन, कोई भी इमोशन हो, शाहिद कपूर ने उसे बेहतरीन ढंग से निभाया है और यही कारण है कि आपको लगेगा कि कबीर सिंह सच में कोई इंसान है, महज़ एक किरदार नहीं। इस बात के लिए संदीप के लेखन को पूरे नंबर मिलने चाहिए।

    जहां एक तरफ विजय देवरेकोंडा ने अर्जुन रेड्डी में हर सीन अपने नाम किया था, वैसे ही शाहिद कपूर ने कबीर सिंह को पूरी तरह से अपने नाम किया है। हालांकि तेलुगू फिल्म हिंदी फिल्म से थोड़ी बेहतर थी। कियारा आडवाणी ने अच्छा काम किया है लेकिन आप शालिनी पांडे की मासूमियत मिस करेंगे।

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    कबीर के दोस्त के किरदार में सोहम मजूमदार फिल्म को थोड़ा हल्का करते हैं। भाई के किरदार में अर्जन बाजवा के भी कुछ अच्छे सीन हैं। इसके अलावा सुरेश ओबेरॉय, निकिता दत्ता और कामिनी कौशल ने भी अपने अपने किरदार बखूबी निभाए हैं।

    कुल मिलाकर कबीर सिंह एक बेहतरीन लव स्टोरी है और आपको प्यार पर एक बार फिर से यकीन दिलाएगी। शाहिद कपूर आपके दिल तक वो दर्द पहुंचाएंगे जो अकसर नाकाम प्यार में होता है। हमारी तरफ से फिल्म को 3.5 स्टार।

    English summary
    Kabir Singh Film Review: For those who have watched Arjun Reddy, Shahid Kapoor's Kabir Singh might not completely rip your heart out. But, it will definitely leave you with a heartache instead.
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