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'जय मम्मी दी' फिल्म रिव्यू: ना कॉमेडी पर हंसी आती है, ना रोमांस दिल जीत पाता है
निर्देशक- नवजोत गुलाटी
कलाकार- सनी सिंह, सोनाली सैगल, सुप्रिया पाठक, पूनम ढिल्लन
दो परिवारों के बीच दुश्मनी और उसके बीच एक प्रेम कहानी का फॉरम्यूला बॉलीवुड में नया नहीं है। लेकिन इस विषय पर ज्यादातर ट्रैजेडी फिल्में बनी हैं, जबकि 'जय मम्मी दी' में कहानी को कॉमेडी में पिरोने की कोशिश की गई है। सांझ भल्ला (सोनाली सैगल) और पुनीत खन्ना (सनी सिंह) पड़ोसी हैं और कॉलेज के दिनों से रिलेशनशिप में हैं। लेकिन उनकी मां पिंकी (पूनम ढिल्लन) और लाली (सुप्रिया पाठक) एक दूसरे की शक्ल तक देखना पसंद नहीं करतीं। दोनों के बीच लंबी पुरानी दुश्मनी है और एक दूसरे को नीचा दिखाने का एक मौका नहीं छोड़तीं। लेकिन यह दुश्मनी क्यों है यह कोई नहीं जानता। अब मम्मियों की दुश्मनी के बीच दो युवा दिल मिल पाते हैं या नहीं, उनकी शादी हो पाती या नहीं, यही है फिल्म की कहानी।
फिल्म की कहानी में नयापन लाने की कोशिश की गई है। लेकिन औसत संवाद और पटकथा की वजह है फिल्म में जान नहीं रह जाती है। दो परिवार की मम्मियों को केंद्र में रखकर शायद ही कोई कहानी लिखी गई हो, लेकिन इस कहानी को 105 मिनट तक दिलचस्प बनाए रखने में निर्देशक नाकाम रहे। सनी सिंह और सोनाली सैगल इससे पहले बतौर कपल फिल्म 'प्यार का पंचनामा 2' में भी दिख चुके हैं। शायद निर्माता- निर्देशक उसी सफलता को भुनाने की कोशिश कर रहे थे। हालांकि यहां दोनों कलाकारों के बीच की कैमिस्ट्री प्रभावित नहीं कर पाई। सनी सिंह कॉमेडी दृश्यों में अच्छे लगे हैं। सुप्रिया पाठक और पूनम ढिल्लन ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। लेकिन सभी कलाकार यहां कुछ अलग कर दिखाने में असमर्थ दिखे हैं क्योंकि किसी भी किरदार को निखारा ही नहीं गया है। सभी कलाकार उबाऊ लेखन के बीच जूझते नजर आए हैं।

दोनों मम्मियों के बीच खींचातानी और इस बीच सांझ और पुनीत का रोमांस फर्स्ट हॉफ में थोड़ी दिलचस्पी लाता है। लेकिन दूसरा हॉफ जम्हाई लेने पर मजबूर कर देता है। खासकर फिल्म का क्लाईमैक्स पूरी कहानी को एक झटके में नीचे गिरा देता है। नवजोत गुलाटी के लेखन के साथ साथ संकेत शाह की सिनेमेटोग्राफी भी एक कमज़ोर पक्ष है। देव राव जाधव और चेतन सोलंकी की एडिटिंग किसी तरह फिल्म को बचाती है। कहना गलत नहीं होगा कि नवजोत गुलाटी के निर्देशन ने फिल्म को बोझिल बना दिया है। फिल्म भावनाओं से दूर है। यहां ना कॉमेडी दिल जीत पाती है, ना ही रोमांस। लेकिन अच्छी बात यह है कि यह महज 105 मिनट की है।
फिल्म में संगीत दिया है तनिष्क बागची, Meet Bros, पराग छाबरा ने, जो कि औसत है। मम्मी नू पसंद और लैम्बोर्गिनी रिक्रिएट किया गया है। गाने सुनने में अच्छे लगते हैं, लेकिन फिल्म में ज्यादा असर नहीं छोड़ पाते। फिल्म 'जय मम्मी दी' मनोरंजन का वादा करती है, लेकिन उस वादे को पूरा नहीं कर पाती। दो मम्मियों के बीच दुश्मनी और उसमें पनपती एक प्रेम कहानी बोर करती है। फिल्मीबीट की ओर से 'जय मम्मी दी' को 1.5 स्टार।