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Hichki Review: रानी मुखर्जी की दमदार परफॉर्मेंस, फुल मार्क्स के साथ 'हिचकी' PASS
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'बुरे स्टूडेंट नहीं.. सिर्फ बुरे टीचर्स होते हैं' ये बात नैना माथुर का किरदरा निभा रहीं रानी मुखर्जी अपने साथी टीचर को कहती हैं। फिल्म का ये सीन ऑडिएंस को इमोशनल कर देने के लिए काफी है। वहीं हिचकी ऐसे ही कई दिल में उतर जाने वाले इमोशनल सीन्स से भरी हुई है, जो आपको रुलाने के साथ-साथ हंसाएंगे भी। पढ़ना.. जिंदगी के हर पहलू को छूना है, 'हिचकी' इसी बात पर यकीन करना सिखाती है। हालांकि ये काम काफी मुश्किल है, वो भी तब जब टीचर बनीं रानी को अपनी जिंदगी की 'हिचकियों' से जूझ रही होती हैं। इतने सारे इमोशन्स और ड्रामैटिक सीन्स के बावजूद फिल्म सिर्फ रोने वाली कहानी ही नहीं है और यही इस फिल्म का सरप्राइज है।
अब आते हैं फिल्म के प्लॉट पर, हिचकी की शुरूआत होती है टीचर की जॉब के लिए इंटरव्यू देती नैना माथुर से। इंटरव्यू लेने वाला पैनल नैना की डिग्रियों से काफी इंप्रेस होता है, लेकिन तब तक जब तक नैना अजीबो-गरीब आवाजें निकालना शुरू नहीं करतीं। वहीं इंटरव्यर्स के चेहर पर सवालों को देखकर नैना बताती है कि उसे टुरेट सिंड्रोम है। जो कि एक एक नर्वस सिस्टम डिसऑर्डर है, इसके चलते बार-बार हिचकी की तरह आवाजें आती हैं.. और फिर एक और जगह से नैना को रिजेक्ट कर दिया जाता है।
कई सारे रिजेक्शन के बाद, नैना को फाइनली एक कैथलिक स्कूल में जॉब मिल जाती है। इस स्कूल के फाउंडर सेंट नोटकर को भी बोलने से जुड़ी परेशानी होती है। नैना को जॉब तो मिल जाती है लेकिन उसके लिए एक और सरप्राइज इंतजार कर रहा होता है। नैना को 9F क्लासरूम की जिम्मेदारी दी जाती है। इस ये क्लासरूम उन बच्चों की होती है जिन्होंने गरीब कोटे से दाखिला लिया है और उन्हें स्कूल के एलीट क्लास के बच्चे अलग नजरों से देखते हैं। इसके चलते ये बच्चे बागी हो जाते हैं और अपने किसी भी टीचर पर भरोसा नहीं कर पाते। बाकी के प्लॉट में दिखाया जाता है कि कैसे नैना इन बच्चों का दिल जीतती है और उनके सपनों को उड़ना सिखाती है।
पहले ही फ्रेम से नैना माथुर के किरदार में रानी मुखर्जी इतना मजबूत इंप्रेशन कायम करती हैं कि उन पर से एक तल के लिए भी नजर हटाना मुश्किल हो जाता है।
वे हिचकी की इमोशनल कोर हैं और पूरी फिल्म अपने कंधों पर बखूबी लेकर चलती हैं। इस फिल्म में रानी ने एक फिजिक्स टीचर का किरदार इतने इंटरेस्टिंग तरीके से निभाया है कि आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि काश स्कूल के दिनों में आपके पास भी कोई ऐसी टीचर होती।
वहीं एक सीन ऐसा भी आएगा जब नैना आखिरकार टूट जाती है। स्पेशियली एबल्ड किरदार निभा रहीं रानी ने ये रोंगटे खड़े कर देने वाला सीन इतनी शिद्दत से निभाया है कि आप भी इमोशन महसूस करेंगे।
वहीं फिल्म के अंत में हम इतना की बोल सकते हैं कि 'रानी, हम आपको स्कीन पर बार-बार देखना चाहते हैं।'
नीरज कबी ने संजीदगी से इस फिल्म को शानदार क्लाइमेक्स तक पहुंचाया है। वहीं फिल्म के कास्टिंग डायरेक्टर शानू शर्मा ने भी बच्चों के सिलेक्शन में शानदार काम किया है। खासकर आतीश के किरदार में हर्ष मयर। वहीं सचिन पिलगांवकर और सुप्रिया पिलगांवकर ने काफी अच्छा काम किया है।
हिचकी, सिद्धार्थ पी मल्होत्रा का डायरेक्टोरिय डेब्यू है और उन्होंने शानदार काम किया है। हालांकि कई बाद फिल्म काफी प्रेडिक्टेबल बन जाती है लेकिन इमोशनल मूमेंट्स के साथ सिद्धार्थ ने गेम अपने नाम कर लिया है।
वहीं कमियों की बात करें तो, फिल्म कुछ ज्यादा ही खिंची हुई मालूम होती है और कई बार दोहराव भी नजर आता है। वहीं ये तो दिखाया जाता है कि बच्चों के मैथ और साइंस रानी पढ़ाती हैं लेकिन बाकी सब्जेक्ट्स के बारे में कुछ खास बताया नहीं गया।
वहीं इस फिल्म की एक कमजोरी इस फिल्म का म्यूजिक है जो ऑडिएंस को इंप्रेस करने में फेल हो गया। फिल्म में दो-चार अच्छे गाने भी हो सकते थे।
अविनाश अरुण की सिनेमैटोग्राफी भी काफी बेहतरीन है वहीं श्वेता वेंकट की एडिटिंग भी अच्छी दिखती है।
ओवरऑल, हिचकी एक फील गुड फिल्म है, जिसमें रानी मुखर्जी की शानदार परफॉर्मेंस देखने को मिली है। वे आपको इस हिचकी को खुशी से गले लगाने के कई कारण दे जाएंगी। 'स्कूल के बाहर जब जिंगदी इम्तिहान देती है तो सब्जेक्ट के हिसाब से नहीं लेती।' ये हिचकी अपने इतनी सारे रंगों के साथ इम्तिहान को पास कर गई है।