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फिल्म की कहानी शुरु होती है निर्देशक आदित्य से जो कि अपनी फिल्म की शूटिंग एक भूतिया घर में करने का फैसला करता है। उसी दौरान उसकी मुलाकात होती है राजू (शरमन जोशी) से। जो कि एक स्ट्रगलिंग लेखक है और वो उसे इस घर से जुड़ी कुछ घटनाएं बताता है जिन्हें सुनकर आदित्य उसी घर में अपनी शूटिंग करने का फैसला करता है। इस घर में राज बहादुर गेंदामल (अनुपम खेर), जो कि इस घर का मालिक था की आत्मा रहती है। मुंबई शहर में एक नयी और बड़ी बिल्डिंग बनाने के प्रोसेस के दौरान शहर की कई सारी पुरानी बिल्डिंग को तोड़ दिया जाता है। और इन बिल्डिंगों को भूतों को गेंदामल अपने घर में पनाह देता है।
सभी भूत इस घर में आराम और सुकून से रहते हैं लेकिन एक दिन बिल्डर फैसला करता है कि वो इस बिल्डिंग को भी गिराकर एक मॉल बनाना चाहता है। इसके बाद ही भूतों द्वारा शुरु होती है भूतियापंती।
फिल्म का निर्देशन सतीश कौशिक जी के फैंस को निराश करता है। फिल्म में कॉमेडी और मनरोजंन देखने को नहीं मिलता जो कि सतीश जी की फिल्मों में मौजूद होता था। हालांकि फिल्म के कुछ सीन्स जरुर दर्शकों को मुस्कुराने को मजबूर कर देंगे लेकिन ये सिर्फ शरमन जोशी, अनुपम खेर, माही गिल जैसे बेहतरीन और मंजे हुए कलाकारों की वजह से है। फिल्म के गाने भी कुछ खास प्रभाव नहीं डालते हैं। कई जगह तो बेवजह ही गानों को डाला गया है।
माही गिल और परंब्रता चैटर्जी ने बेहतरीन काम किया है। शरमन जोशी ठीक ठाक हैं लेकिन अपने फुल कैरेक्टर में नहीं नज़र आए। असरानी और जैकी श्रॉफ अपने अपने किरदारों में बिल्कुल फिट नज़र आए। अनुपम खेर ने इस बार भी अपने फैंस को निराश किया। हालांकि सौरभ शुक्ला जरुर दर्शकों को हंसाने की अंत तक कोशिश करते रहे और कई जगह कामयाब भी हुए। विजय वर्मा और मीरा चोपड़ा दोनों के छोटे किरदार थे लेकिन दोनों ने अपनी तरफ से बेहतरीन कोशिश की।