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Fanney Khan Movie Review: अनिल कपूर की ईमानदार एक्टिंग, यहां मात खा गई फिल्म
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'मैं मोहम्मद रफी नहीं बन सका, लेकिन तेरेको लता मंगेशकर जरूर बनाऊंगा'.. फिल्म की शुरूआत मे प्रशांत शर्मा (अनिल कपूर) उर्फ फन्ने खान ये लाइन अपनी न्यूबॉर्न बच्ची को बोलते हैं.. उनकी आंखों में वो सपनों की चमक साफ दिखाई देती है। इससे पहले फिल्म में मोहल्ले में प्रशांत यानी फन्ने खान 'शम्मी कपूर' के गाने 'बदन पे सितारे' पर जमकर झूमते हुए दिखाया जाता है। अतुल मांजरेकर की निर्देशन में डेब्यू ये फिल्म बड़े-बड़े सपनों को लेकर है।
साल गुजरते हैं और प्रशांक एक फैक्ट्री में जी-तोड़ मेहनत के साथ काम करता है। लेकिन ये आदमी अभी तक संगीत के साथ जीता-सांस लेता है और संगीत ही की पूजा करता है। म्यूजिक के प्रति अपने लगाव और अलगाव के साथ प्रशांत का अब एक ही सपना है.. वो है अपनी बेटी लता (पीहू संद) को संगीत की दुनिया की सेंसेशन बनाना। वहीं लता एक पॉप स्टार बेबी सिंह (ऐश्वर्या राय बच्चन) की बड़ी फैन हो जाती है और उसे ही आदर्श मानने लगती है। कई ऑडिशन और बॉडी शेमिंग के बाद लता हर जगह से रिजेक्ट ही होती जाती है। दूसरी तरफ प्रशांत भी काम से हाथ धो बैठता है। अपनी बेटी लता के सपने को बिखरते देख वो कैब ड्राइवर की नौकरी कर लेता है।
एक दिन उसे एक सुनहरा अवसर तब मिलता है जब बेबी सिंह उसकी कैब में पैसेंजर के तौर पर आती है। अपनी बेटी के सपने को पूरा करने के लिए वो बेबी सिंह को किडनैप कर लेता है। इसमें प्रशांत का साथ देता है उसका एक दोस्त जिसका नाम है अधीर (राजकुमार राव) जिसकी गर्लफ्रेंड उसे हमेशा बेवकूफ बनाती रहती है। क्या प्रशांत अपनी बेटी के सपने को पूरा कर पाएगा। फिल्म का बाकी प्लॉट बस इसी का जवाब ढूंढ़ने में लग जाता है।अनिल कपूर, ऐश्वर्या राय, राजकुमार राव और पीहू संद की फिल्म फन्ने खान में शानदार परफॉर्मेंस देखने को मिलेगी। वहीं अतुल मांजरेकर का ढ़ीला निर्देशन मजा खराब कर सकता है।
फन्ने खान में डेब्यू डायरेक्टर अतुल मांजरेकर ने बॉडी शेमिंग, पक्षपात और सेलेब्रिटीज की जिंदगी को लेकर धारणाओं जैसे टॉपिक पर बात की है लेकिन ये बात इन टॉपिक्स को केवल छू भर पाती है उन पर गहराई से बात नहीं करती। जिसके चलते फिल्म में कई सीन हास्यास्पद लगते हैं। फिल्म का लेखन थोड़ा और क्रिस्प और गहरा होता तो फन्ने खान ऊचाइयों पर पहुंच जाती। अतुल एक ऐसा क्लाइमैक्स रखते हैं जो एक रिएलिटी शो पर है। फिल्म यहीं पर मात खा जाती है क्योंकि लॉजिक ही नहीं दिखाई देता। हालांकि इसके बाद वाला सीन फिल्म को बचा लेता है।
अनिल कपूर फन्ने खान की जान हैं। एक आशावादी पिता के किरदार में वे ऑडिएंस को अपने साथ हंसाते हैं तो अपने साथ रुलाने में भी कामयाब होते हैं। वहीं दूसरी तरफ इस कैरेक्टर का हैदराबादी बोली का लहजा कई जगह फूहड नजर आता है। राजकुमार राव के साथ उनकी कैमिस्ट्री शानदार लगी है और इस कैमिस्ट्री को थोड़ा और समय मिलना चाहिए था। फिल्म में कैरेक्टर की कई लिमिटेशन के बावजूद राजकुमार राव ऑडिएंस का काफी कुछ देते हैं और जबरदस्त परफॉर्मेंस देकर जाते हैं।
इस फिल्म में ऐश्वर्या राय का किरदार काफी ग्लैमरस है लेकिन उन्हें अपनी एक्टिंग स्किल्स दिखाने का ज्यादा समय नहीं दिया गया है। वहीं राजकुमार राव के साथ उनकी कैमिस्ट्री काफी क्यूट लगी है। डेब्यू कर रहीं एक्ट्रेस पीहू संद ऑडिएंस को इंप्रेस करने में कामयाब हो जाती हैं। दिव्या दत्ता और गिरीश कुलकर्णी भी फिल्म को अच्छा सपोर्ट दिया है।
तिर्रू की सिनेमैटोग्राफी शानदार है। हालांकि फिल्म की टाइमिंग कहीं-कहीं थोड़ी तनी हुई हो सकती है। म्यूजिक की बात करें तो फू बाई फू अपने फंकी लिरिक्स की वजह से काफी इंजॉय करने वाला गाना है। वहीं हल्का-हल्का आपको गुनगुनाने पर मजबूर कर देगा। फिल्म का गाना तेरे जैसा तू है भी आपको याद रह जाएगा। फिल्म के बाकी गाने भी नैरेटिव के साथ अच्छी तरह घुल जाते हैं।
अनिल कपूर, ऐश्वर्या राय, राजकुमार राव और पीहू संद की फिल्म फन्ने खान में शानदार परफॉर्मेंस देखने को मिलेगी। वहीं अतुल मांजरेकर का ढ़ीला निर्देशन मजा खराब कर सकता है। फन्ने खान आपको अपनी हर एक बात से इंप्रेस करेगी लेकिन निर्देशन इस फिल्म की कमजोर कड़ी बन जाता है। फिल्म का एक गाना है जिसकी लाइनें कुछ इस तरह हैं.. 'सच में कभी हंस न सके, खुल के रो भी पाते नहीं, क्या रोके है हमको भला, जो हैं वो हो पाते नहीं'.. फिल्म कई कमियों के बाद भी फन्ने खान अपने कई स्ट्रॉन्ग प्वाइंट की वजह से किसी तरह ऑडिएंस का दिल जीतने में कामयाब हो जाती है।