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एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा REVIEW: कुछ हटकर लेकिन दमदार प्रेम कहानी
फिल्म की शुरुआत होती है एक नाटक से। जहां साहिल मिर्जा (राजकुमार राव) स्टेज पर खड़े होकर दर्शकों से कहते हैं, 'हमारा जो नाटक है ना, दिमाग से नहीं.. दिल से देखिएगा'। शैली चोपड़ा धर के निर्देशन में बनी 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' महसूस की जा सकती है। फिल्म दिखाती है कि कैसे आप किसी जेंडर की तरफ आकर्षित नहीं होते, बल्कि एक व्यक्ति की ओर आकर्षित होते हैं।
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा की शुरुआत शादी में हो रहे नाच गाने से होती है, जहां दर्शकों की मुलाकात होती है स्वीटी चौधरी (सोनम कपूर) से, जो कि मोगा (पंजाब) के सबसे अमीर आदमी की बेटी है। उसके पिता बलविंदर (अनिल कपूर), जिन्हें पंजाब का मुकेश अंबानी भी कहा जाता है, एक गार्मेंट की फैक्टरी के मालिक हैं। हालांकि उन्हें हमेशा से शेफ बनने की चाहत थी।
बलविंदर के घर में लिंग भेद साफ दिखाई देता है। जहां बलविंदर की मां बिजी का मानना है कि मर्द किचन में सिर्फ सिलेंडर बदलने के लिए कदम रख सकता है। और लड़कियों के लिए एक सही ब्याह करना ही सबसे सही बात है।
घर में स्वीटी सभी की लाडली है। चूंकि स्वीटी ग्रैजुएट हो गई है, घरवाले उसकी शादी के लिए फिक्रमंद हैं। लेकिन स्वीटी शादी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाती और आगे की पढ़ाई के लिए लंदन जाना चाहती है।
इसके बाद फिल्म की कहानी दिल्ली शिफ्ट हो जाती है। स्वीटी कहीं जा रही होती है और उसका भाई उसकी जासूसी कर रहा होता है.. ऐसे में स्वीटी एक थियेटर हॉल में छिपने के लिए घुस जाती है। जब प्ले राइटर साहिल मिर्जा (राजकुमार) पहली बार स्वीटी को देखता है। इन दोनों के बीच सच्चे प्यार को लेकर कुछ डॉयगॉग्स होते हैं, जहां स्वीटी कहती है- सच्चे प्यार के रास्ते में, कोई ना कोई सियापा होता ही होता है, अगर ना हो, तो लव स्टोरी में फील कैसे आएगी?
स्वीटी की बातों से प्रभावित होकर साहिल उसे दिल दे बैठता है और कैटेरर छत्रो (जूही चावला) के साथ मोगा आ जाता है। फिल्म की बाकी कहानी इन्हीं किरदारों के इर्द गिर्द घूमती है। हर किरदार किस तरह अपने अंदर के द्वंद से लड़कर प्यार के सच्चे रुप को किस तरह स्वीकार करता है, यही कहानी है।
शैली चोपड़ा और गजल धलीवाल एक अलग तरह का रोमांस लेकर आए हैं। एक ऐसे मुद्दे के साथ जिसके बारे में आज भी समाज शर्म- लिहाज के डर से छिप छिपाकर ही बातें करता है। सालों से जहां हमने फिल्मों में LGBT समुदाय का मजाक ही बनते देखा है, इस फिल्म में वह किसी ताजे हवा के झोंके की तरह लगती है और एक उम्मीद जगाती है।
यह तारीफ के काबिल है कि सोनम कपूर जैसी मेनस्ट्रीम एक्ट्रेस ने इस किरदार के लिए हामी भरी। भावनात्मक रुप से दमदार इस किरदार में सोनम कपूर ने शानदार अभिनय किया है। अनिल कपूर पूरी फिल्म में अपनी चमक बनाए रखते हैं और वहीं क्लाईमैक्स में रूला डालते हैं।
राजकुमार राव की बात करें तो शायद ऐसा कोई किरदार बना ही नहीं है, जो यह कलाकार ना निभा पाएं। साहिल मिर्जा के किरदार में राजकुमार ने कॉमेडी, इमोशन, आक्रोश सब कुछ दिखाया है। जूही चावला अपने किरदार में परफेक्ट हैं। वहीं, रजीना केसांड्रा, सीमा पाहवा और बिजेन्द्र काला कम समय में भी अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं।
फिल्म का संगीत कहानी के साथ साथ आगे बढ़ता है और प्रभावपूर्ण है। कुल मिलाकर एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा प्यार की खूबसूरती को परिवारिक कहानी में डालकर दिखाती है। हमारी ओर से फिल्म को 3.5 स्टार।