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डार्लिंग्स फिल्म रिव्यू: आलिया भट्ट और शेफाली शाह की इस फिल्म की स्टार है एक छोटी सी कहानी और क्लाईमैक्स
फिल्म - डार्लिंग्स
प्लेटफॉर्म - नेटफ्लिक्स
डायरेक्टर - जसमीत के रीन
लेखक - परवेज़ शेख़, जसमीत के रीन
प्रोड्यूसर - आलिया भट्ट, शाहरूख खान
अवधि - 2 घंटा 15 मिनट
जानवर समझी मेरे कू? कुछ भी मिला के देगी खाने में, खा लेगा मैं? पी के जानवर बन जाते हो इसलिए इंसान बनाने की कोशिश की मैं! इसी जद्दोजहद के साथ शुरू होती है बदरू और हमज़ा की कहानी। हमज़ा जिसकी दारू उसके अंदर के जानवर को बाहर निकालती है और वो बदरू जो इस बात को केवल एक परेशानी मानती है। घरेलू हिंसा को भी प्यार से जीतने की कोशिश में बदरू अपनी शादी के तीन साल निकाल चुकी है।
डार्लिंग्स कहानी है बदरू (आलिया भट्ट) की और उसके दो रिश्तों की - पहला उसका पति हमज़ा (विजय वर्मा) और दूसरा उसकी मां शम्सू (शेफाली शाह)। जहां फिल्म के पहले हाफ में बदरू और हमज़ा मिलकर बदरू की ज़िंदगी चलाते हैं तो वहीं दूसरे हाफ में बदरू और शम्सू मिलकर बदरू की ज़िंदगी चलाते हैं। लेकिन क्या बदरू कभी अपनी ज़िंदगी खुद चलाने की हिम्मत और हौंसला ला पाएगी? ये जानने के लिए आपको एक बार डार्लिंग्स देखनी पड़ेगी।

कहानी
आपने वो मेंढक और बिच्छू की कहानी तो सुनी ही होगी? नहीं सुनी होगी तो डार्लिंग्स में आप ये कहानी दो बार सुनेंगे। एक बार शुरू में और दूसरी बार क्लाईमैक्स में। लेकिन कहानी में डार्लिंग्स में मेंढक कौन बनेगा और बिच्छू कौन ये जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ेगी आपको समझ आएगा। क्या अंत तक आते आते कहानी में दो मेंढक रह जाएंगे या फिर दो बिच्छू, ये भी आपको क्लाईमैक्स अच्छे से दिखाएगा और इसके लिए डार्लिंग्स की टीम को बधाईयां।

अभिनय
शेफाली शाह और आलिया भट्ट शम्सू और बदरू के किरदार में गिरगिट की तरह रंग बदल कर बैठ जाती है। उन्हें पहली नज़र में देखते ही आपको इनके किरदारों का अनुमान लग जाएगा। शेफाली शाह की तेज़ तर्रार आंखें लेकिन खाली आंखें और आलिया भट्ट का लाचार सा डील डौल होने के बावजूद मज़बूत आंखें आपको आने वाली कहानी के लिए उत्साहित करेंगी और आप जानना चाहेंगे कि इन दोनों की कहानियां क्या एक ही हैं? या फिर एक दूसरे से कितनी अलग। विजय वर्मा एक बेवड़े आशिक़ी से लैस पति के किरदार में पूरा न्याय करते हैं लेकिन ये कहानी उनकी नहीं हैं और इसकी कमी आपको कई जगह स्क्रीनप्ले में खलेगी।

सपोर्टिंग किरदार
फिल्म में सपोर्टिंग किरदार में हैं रोशन मैथ्यू लेकिन उनके हिस्से पटकथा को मज़बूत बनाने जैसा कुछ नहीं आया है। वो केवल इस कहानी में एक Prop की तरह इस्तेमाल होते हैं। जैसे कि फिल्म के बाकी सपोर्टिंग किरदार - किरण करमाकर और राजेश शर्मा। ऐसा नहीं है कि इन किरदारों के लिए फिल्म में जगह नहीं थी लेकिन इन पर इतना ध्यान नहीं दिया गया है और ये आपको फिल्म देखते हुए नज़र आएगा।

तकनीकी पक्ष
डायरेक्टर के तौर पर ये जसमीत के रीन का डेब्यू है और वो काफी हद तक एक अच्छी फिल्म देने में सफल होती है। हालांकि, डार्लिंग्स की अपनी खामियां हैं और ये खामियां कहानी में भले ही नहीं हैं लेकिन परदे पर ज़रूर दिखती हैं। फिल्म का पहला हाफ एक इंटेंस ड्रामा बनकर आपको हर सेकंड हर फ्रेम के साथ बांधे रखने की कोशिश करता है वहीं इंटरवल के बाद फिल्म तेज़ी से छूटती हुई दिखाई देती है। अगर कोशिश करने के नंबर हों तो आप यहां जसलीन के निर्देशन को पूरे नंबर दे सकते हैं जो सेकंड हाफ की अधपकी सी डार्क कॉमेडी को भी दिलचस्प बनाए रखने की कोशिश करती हैं।

अच्छे संवाद से बैलेंस होती है फिल्म
डार्लिंग्स की कमियां काफी हद तक इसके अच्छे संवाद से बैलेंस होती दिखती है। ये मरद लोग दारू पीके जल्लाद क्यों बन जाता है? ये सवाल जब एक शम्सू जैसी मज़बूत महिला पूछती है तो एक पुलिस वाला उससे बिना किसी दया और तरस के एक सीधा सा दो टूक जवाब देता है - क्योंकि औरत बनने देती है। यहीं से डार्लिंग्स की कहानी की दशा और दिशा दोनों बदलने का संकेत मिलता है और फिल्म ऐसा करती भी है।

ज़रूरी मुद्दों को छूती है फिल्म
मैं कमीना हूं, लेकिन मेरा प्यार कमीना नहीं है। सोचो प्यार नहीं करता तो मारता क्यों? तुम प्यार नहीं करती तो सहन क्यों करती? फिल्म में जब हमज़ा अपनी डार्लिंग्स बदरू को ये बोलता है तो वो एक लड़ाई लड़ती है दिल और दर्द की। दर्द जो हमज़ा हर रात उसे जानवर बनकर देता है और दिल जिसमें फिर भी हमज़ा के लिए मोहब्बत है। लेकिन अगर गलत आदमी से मोहब्बत हो जाए तो भी क्या उसे सहेज कर रखना चाहिए, बिना इस मुद्दे को छुए भी डार्लिंग्स इस बारे में सतही तौर पर बात कर जाती है।

घरेलू हिंसा का सबसे करीबी आईना
डार्लिंग्स, घरेलू हिंसा को समाज कैसे देखता है ये दिखाने की कोशिश करती है लेकिन फिल्म को हल्का करने के चक्कर में इसका असर कहीं ना कहीं दबा रह जाता है। जैसे पड़ोसियों का मार पीट की आवाज़ सुनकर अपने घर का म्यूज़िक बढ़ा देना लेकिन मियां - बीवी के बीच दख़ल ना देना। घरेलू हिंसा सहते हुए भी पत्नियों का पुलिस में शिकायत ना दर्ज करना, पुलिस तलाक की सलाह दे तो माता पिता का मानना कि तलाक का ठप्पा औरत के लिए कितना मुश्किल हो जाता है। लेकिन सबसे अहम घरेलू हिंसा से लड़ने के लिए दो बिल्कुल अलग समाधान देना। जहां बदरू, घरेलू हिंसा जूझते हुए भी पति को मौका देना चाहती है और दारू को हिंसा का दोषी मानती है तब तक जब तक ये दारू के बिना नहीं होता। वहीं बदरू की मां जो शुरू से उसे दो ही ऑप्शन दिखाती है - या तो पति को मार दे या उसे छोड़ दे।

म्यूज़िक देता है अच्छा साथ
गुलज़ार साहब को कलम का जादूगर क्यों कहा जाता है, ये बताने की कभी कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ी। डार्लिंग्स के टाईटल ट्रैक प्लीज में भी उनका जादू साफ दिखता है। वहीं फिल्म के दो गानों का म्यूज़िक विशाल भारद्वाज ने दिया है और इन दो गानों पर उनकी छाप साफ दिखती है। वहीं फिल्म पर भी इन गानों का साफ असर पड़ता है और ये फिल्म जहां भी ज़्यादा गंभीर होने लग जाती है बस ये गाने ही फिल्म का मूड हल्का करने के लिए काफी हैं।

होनी चाहिए Trigger Warning
डार्लिंग्स भले ही घरेलू हिंसा जैसे संवेदनशील मुद्दे को डार्क कॉमेडी कह कर प्रमोट की गई है लेकिन जब बात घरेलू हिंसा की होती है तो वो केवल डार्क रह जाती है और कॉमेडी ज़बरदस्ती ठूंसी हुई लगती है। डार्लिंग्स के कुछ सीन कई औरतों को अपनी ज़िंदगी का आईना दिखा सकती है और इसके लिए फिल्म को एक Trigger Warning के साथ आना चाहिए। हम भी आपको यही सलाह देंगे कि अगर आपकी ज़िंदगी के कुछ हिस्से आपको अभी भी परेशान करते हैं तो डार्लिंग्स मनोरंजन से ज़्यादा आपको परेशान कर सकती है।

फिल्म का स्टार है क्लाईमैक्स
खामियों के बावजूद, डार्लिंग्स एक बार तेज़ी से ऊपर उठती है अपने क्लाईमैक्स के साथ। जो शायद आपके मन में फिल्म की शुरूआत से ही होगा लेकिन फिर भी वही क्लाईमैक्स परदे पर देखना आपको सुकून देता है। और यही इस कहानी को स्टार बना देता है। आमतौर पर predictable climax अक्सर ही दर्शकों का मूड खराब करते हैं लेकिन डार्लिंग्स के साथ ऐसा नहीं होता है। इसलिए डार्लिंग्स सेकंड हाफ में बोझिल होने के बावजूद आपको अपने क्लाईमैक्स के साथ तरोताज़ा कर देती है। हमारी तरफ से तो ये फिल्म मनोरंजन के मीटर पर पास होती है। डार्लिंग्स नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है।
NOTE
मानसिक या शारीरिक रूप से परेशान महिलाएं इस नंबर पर मदद ले सकती हैं केंद्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड, पुलिस हेल्पलाइन - 1091/1291, 011 - 23317004 शक्ति शालिनी - 10920 शक्ति शालिनी महिला मदद केंद्र - 011-24373736/24373737 सार्थक - 011 - 26852846/26524061 AIWC - 10921, 011 - 23389680 JAGORI - 011- 26692700 Joint Women's Programme (बेंगलुरू, कोलकाता, चेन्नई में भी ब्रांच) - 011- 24619821 साक्षी (घरेलू हिंसा के खिलाफ मदद) 0124-2562336/5018873 सहेली (एक महिला संस्था) 011 - 24616485 (केवल शनिवार) निर्मल निकेतन - 011 - 27859158 नारी रक्षा समिति - 011 - 23972949 RAHI - बाल यौन शोषण के घाव से जूझती महिलाओं के लिए 011 - 26238466, 26227647