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    'भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया' फिल्म रिव्यू- देशभक्ति, ड्रामा, एक्शन और अजय देवगन का सुपर ओवरडोज़

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    Rating:
    1.5/5

    निर्देशक- अभिषेक दुधैया

    कलाकार- अजय देवगन, सोनाक्षी सिन्हा, संजय दत्त, नोरा फतेही, शरद केलकर, एमी वर्क, प्रणिता सुभाष

    पटकथा- अभिषेक दुधैया, रमन कुमार, रितेश शाह, पूजा भावोरिया

    प्लेटफॉर्म- डिज्नी प्लस हॉटस्टार

    "तू हमारी औकात का अंदाजा क्या लगाएगा, हम उस महान छत्रपति शिवाजी महाराज की औलाद हैं, जिन्होंने मुगलों को घुटने पर ला दिया था और अपने खून के हिंदुस्तान का इतिहास लिखा.." स्क्वॉर्डन लीडर विजय कार्णिक (अजय देवगन) फोन पर एक पाकिस्तानी अफसर को ललकारते हुए कहते हैं। फिल्म के पहले दृश्य से लेकर आखिरी दृश्य तक, निर्देशक यह जताने से नहीं चूकते कि फिल्म के हीरो अजय देवगन हैं, जो सभी प्रकार से गोले, बारूद, बमों का सामना निडरता के साथ कर सकते हैं।

    Bhuj The Pride Of India film review

    1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, पाकिस्तान ने ऑपरेशन चंगेज़ ख़ान लॉन्च किया था। 14 दिनों में पाक ने 35 बार भुज एयरफील्ड पर 92 बमों और 22 रॉकेटों से हमला किया था और भुज एयरबेस को पूरी तरह से तबाह कर दिया था। स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक उस समय भुज एयरपोर्ट के इंचार्ज थे। उन्होंने स्थानीय महिलाओं को युद्धस्तर पर हवाई पट्टी की मरम्मत में मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया और मुश्किलों से जूझते हुए एयरस्ट्रिप को वापस तैयार किया, ताकि भारतीय सेना को लेकर आ रही विमान को सुरक्षित लैंड कराया जा सके। विजय कार्णिक ने पाकिस्तान के खिलाफ भारत के इस युद्ध अहम भूमिका निभाई थी। इसी घटना को पर्दे पर उतारा है अभिषेक दुधैया ने।

    कहानी

    कहानी

    फिल्म की शुरुआत होती है 8 दिसंबर 1971 से, जब पाकिस्तान वायु सेना के जेट विमानों ने भुज में भारतीय वायु सेना की हवाई पट्टी पर लगातार बम बरसाए। भारी तबाही के बीच भुज एयरपोर्ट के इंचार्ज विजय कार्णिक (अजय देवगन) स्थिति से जूझने की कोशिश करते हुए दुश्मनों का सामना करते हैं। कहानी एक हफ्ते पीछे जाती है और बताया जाता है कि पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को पश्चिमी पाकिस्तान (पाक) के दमन से निकलने में भारत ने सहायता दी थी। जिसे लेकर 1971 दिसंबर में भारत- पाकिस्तान युद्ध छिड़ा। पूर्वी पाकिस्तान में भारत की स्थिति कमजोर करने के लिए पाकिस्तान ने भारत के पश्चिमी क्षत्रों पर हमला किया। वो भुज को अपने कब्जे में करना चाहते थे। रणनीति के तहत विभिन्न भारतीय हवाई अड्डों पर बमबारी की गई। भुज एयरबेस भारतीय वायु सेना के प्रमुख क्षेत्र में से एक था जहां पाकिस्तान ने भारी तबाही मचाई।

    भारतीय वायुसेना को सीमा सुरक्षा बल से हवाई पट्टी को बहाल करने की उम्मीद थी, लेकिन वो नहीं हो सकता क्योंकि उसी समय पाकिस्तान ने लौंगेवाला में भी युद्ध छेड़ दिया था। इस दौरान भुज के माधापुर की 300 ग्रामीणों-ज्यादातर महिलाएं- ने 72 घंटों के भीतर क्षतिग्रस्त एयरबेस की मरम्मत करके देश की रक्षा के लिए कदम बढ़ाने का फैसला किया।फिल्म इसी घटना के इर्द-गिर्द घूमती है कि कैसे विजय कार्णिक ने उस युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    अभिनय

    अभिनय

    विजय कार्णिक के किरदार में अजय देवगन काफी दमदार साबित हो सकते थे, लेकिन कुछ दृश्यों को छोड़ दिया जाए तो वो इस बार चूक गए हैं। निर्देशक यहां अजय देवगन के हाव भाव का बिल्कुल भी सही इस्तेमाल नहीं कर पाए। और यही हाल लगभग सभी कलाकारों के साथ है। सोनाक्षी सिन्हा, संजय दत्त, एमी वर्क के किरदारों का ढ़ांचा ही इतना कमजोर है कि कलाकारों के पास ज्यादा स्कोप ही नहीं दिखा। शरद केलकर अपने छोटे से किरदार में अच्छे लगे हैं। वहीं, बतौर भारतीय जासूस नोरा फतेही ने अपनी एक्शन सीक्वेंस के साथ इंसाफ किया है।

    निर्देशन

    निर्देशन

    अभिषेक दुधैया ने ना सिर्फ फिल्म का निर्देशन किया है, बल्कि पटकथा लेखन भी किया है। ये दोनों ही फिल्म के सबसे कमजोर पक्ष हैं। पहले दृश्य से लेकर आखिरी दृश्य तक फिल्म में कोई लय नहीं दिखता है। कहानी मिनटों में कभी यहां, कभी वहां भागती है। वहीं, सभी किरदार का ढ़ांचा भी बेहद कमजोर है। किसी के बीच कोई समन्वय नहीं दिखता। दृश्यों में दोहराव, संवादों में दोहराव, जबरदस्ती के ढूंसे हुए गानों से लेकर देशभक्ति के नाम पर नारेबाजी ऊबाती है। युद्ध पर आधारित ये फिल्म शुरुआत से ही बांधने में असफल दिखती है। रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर किसी सच्ची घटना के साथ इतनी छेड़छाड़ देखना निराशाजनक है।

    तकनीकी पक्ष

    तकनीकी पक्ष

    फिल्म के संवाद लिखे हैं मनोज मुंतशिर ने, जिसमें बिल्कुल भी नयापन नहीं दिखता। कहना गलत नहीं होगा कि संवाद से ज्यादा फिल्म में नारेबाजी सुनाई देती है। एक दृश्य में सोनाक्षी सिन्हा के बारे में बताते हुए अजय देवगन कहते हैं- "कमीज के टूटे बटन से लेकर टूटी हुई हिम्मत तक, औरत कुछ भी जोड़ सकती है"..

    असीम बजाज की सिनेमेटोग्राफी बेहद औसत है। वहीं धर्मेंद्र शर्मा ने एडिटिंग के मामले में फिल्म को काफी ढ़ीली छोड़ दी है। कई संवाद दोहराते हैं, कई दृश्य दोहराते हैं। आश्चर्य है कि फाइनल कट में एडिटर ने इसे पास कैसे किया! फिल्म में भरपूर वीएफएक्स का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन वो भी औसत है और कोई रोमांच नहीं जगाता।

    संगीत

    संगीत

    फिल्म में तीन गाने शामिल किये गए हैं और तीनों ही कहानी से कोई तालमेल नहीं रखते हैं। अजय देवगन और प्रणिता सुभाष के बीच फिल्माया रोमांटिक ट्रैक जबरदस्ती ढूंसा गया लगता है। फिल्म का संगीत दिया है तनिष्क बागची, गौरव दासगुप्ता और आर्को ने।

    देंखे या ना देंखे

    देंखे या ना देंखे

    देशभक्ति और युद्ध से जुड़ी बॉलीवुड में कई फिल्में बन चुकी हैं और यदि उनमें सबसे कमजोर फिल्मों की लिस्ट बनाई जाए, तो 'भुज द प्राइड ऑफ इंडिया' जरूर शामिल होगी। अजय देवगन, संजय दत्त, सोनाक्षी सिन्हा, शरद केलकर जैसे कलाकार भी अभिनय पक्ष में बेहद कमजोर दिखे। निर्देशन, अभिनय, एक्शन, पटकथा, सिनेमेटोग्राफी, हर लिहाज से फिल्म बेहद कमजोर फिल्म साबित होती है। कुल मिलाकर, यह महत्वपूर्ण घटना एक बेहतर फिल्म की हकदार थी। फिल्मीबीट की ओर से 'भुज' को 1.5 स्टार।

    English summary
    Bhuj The Pride Of India Film Review- Directed by Abhishek Dudhaiya this period war film set during India- Pakistan War 1971.
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