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    'बधाई दो' फिल्म रिव्यू- हंसी और इमोशन के साथ समलैंगिक रिश्तों के प्रति नजरिया बदलते हैं राजकुमार और भूमि

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    Rating:
    2.5/5

    निर्देशक- हर्षवर्धन कुलकर्णी

    कलाकार- राजकुमार राव, भूमि पेडनेकर, चुम दरंग, गुलशन देवैया, शीबा चड्डा, सीमा पाहवा

    "बहू अगली बार मिलो तो बच्चा गोद में होना चाहिए", शार्दुल की ताईजी पूरे हक के साथ सुमन से बोलती हैं। 'बधाई दो' मध्यमवर्गीय परिवार के हर स्वभाव को पकड़ते हुए सामाजिक मुद्दे तक पहुंचती है। ये ऐसे रिश्ते की बात करती है, जिसके बारे में लोग ज्यादा बात नहीं करते। फिल्म 'लैवेंडर मैरिज' के विषय पर बनी है। यानि एक गे और लेस्बियन की की शादी जो समाजिक दवाब से बचने के लिए या समाज में फिट होने के लिए समझौते के तौर शादी कर लेते हैं। निर्देशक हर्षवर्धन कुलकुर्णी इसी व्यवस्था को कॉमेडी और ड्रामा के साथ मिलाकर काफी प्रैक्टिकल अप्रोच के साथ पेश करने की कोशिश करते हैं।

    badhaai-do-film-review-rajkummar-rao-and-bhumi-pednekar

    LGBTQ समुदाय पर कई हिंदी फिल्में बन चुकी हैं। 'बधाई दो' ट्रीटमेंट में काफी अलग रही है, लेकिन फिल्म की पटकथा कहीं कहीं ढ़ीली पड़ जाती है। फिल्म गे और लेस्बियन रिश्तों को सामान्य दिखाने का प्रयास करती है। यहां निर्देशक ना जबरदस्ती का ज्ञान देते हैं, ना आदर्श परिस्थितियां दिखाते हैं। इसे रिएलिटी से ज्यादा से ज्यादा जोड़कर रखने की कोशिश की गई है।

    कहानी

    कहानी

    31 साल की सुमी उर्फ सुमन सिंह (भूमि पेडनेकर) और 32 साल का शार्दुल ठाकुर (राजकुमार राव) लेस्बियन और गे हैं, लेकिन अपने परिवार वालों की रोजाना बकझक से बचने के लिए शादी कर लेते हैं। दोनों रूममेट्स की तरह रहते हैं.. और खुद के समलैंगिक होने की बात पूरे परिवार, दोस्तों और पड़ोसियों से छिपाकर रखने की कोशिश करते हैं। लेकिन ये कोशिश उनके लिए आसान नहीं होती है। इस परिस्थिति में वह खुद को एक जगह से दूसरे जगह पर भागते हुए पाते हैं। कभी परिवार वाले बच्चे की मांग करते हैं, तो कभी पड़ोसी अपनी नाक घुसाते हैं। इस बीच दोनों अपने अलग अलग रिलेशनशिप भी बनाते हैं। भागमभाग भरी जिंदगी में उन्हें अपने वास्तविक पार्टनर्स के साथ एक सहजता और आराम मिलता है। लेकिन कब तक! जब परिवार और समाज के सामने उनके राज खुलते हैं तो क्या होता है.. यही है फिल्म की कहानी।

    'बधाई दो' एक समलैंगिक व्यक्ति के अंदर पनप रहे अकेलेपन को बहुत संवेदनशीलता के साथ दिखाती है। खासकर जब वह ना अपने परिवार के साथ खुले तौर पर यह संवाद कर पाता है, ना दोस्तों के साथ। लेकिन वह जानता है कि ये लड़ाई उसकी है और उसे अपनी जिंदगी बेहतर बनाने के लिए कुछ चुनाव करने ही होंगे।

    निर्देशन

    निर्देशन

    हर्षवर्धन कुलकर्णी ने पूरी कोशिश की है कि फिल्म में गे और लेस्बियन समुदाय को स्टीरियोटाइप ना किया जाए। उन्होंने मुख्य किरदारों को, उनके रोमांटिक संबंधों को पूरी तरह से सामान्य रखा है। चाहे परिवार और नौकरी को देखते हुए शार्दुल के मन की झिझक हो.. या सुमन का खुलापन हो.. इन किरदारों में एक रिएलिटी दिखती है। हालांकि फिल्म को थोड़ा और कसा जा सकता था। फर्स्ट हॉफ में फिल्म कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ती है। सेकेंड हॉफ में यह गति पकड़ती है और मुद्दे को मजबूती के साथ उठाती है। कहानी में मध्यवर्गीत परिवार के सदस्यों को, उनकी उम्मीदों, उनकी समझ को भी दिखाया गया है।

    अभिनय

    अभिनय

    राजकुमार राव और भूमि पेडनेकर ने अपनी हर फिल्मों के साथ दिखाया है कि वो दमदार कलाकार हैं। पुलिस अफसर शार्दुल के किरदार में राजकुमार और पीटी टीचर सुमन बनीं भूमि 'बधाई दो' में भी मजबूत दिखे हैं। किरदार के हर उतार- चढाव को उन्होंने अपने हाव भाव के साथ ईमानदारी से दिखाया है। चुम दरंग ने भूमि के गर्लफ्रैंड की भूमिका में अच्छा काम किया है। उत्तर-पूर्व के एक कलाकार को समानांतर लीड के रूप में लेने के लिए निर्माताओं की यहां सराहना की जानी चाहिए। हिंदी फिल्मों में यह काफी कम ही दिखा है। गुलशन देवैया एक छोटे से रोल में हैं, लेकिन ध्यान आकर्षित करते हैं। वहीं, सीमा पाहवा, शीबा चड्डा, लवलीन मिश्रा ने अपने सहज अभिनय से फिल्म को मजबूत बनाया है।

    तकनीकी पक्ष

    तकनीकी पक्ष

    फिल्म जहां कमजोर पड़ती है वह है पटकथा, जिसे और कसा जा सकता था। खासकर फर्स्ट हॉट बेहद धीमी जाती है और कहीं कहीं दोहराव सा भी लगता है। पटकथा लिखा है सुमन अधिकारी, अक्षत घिलडायल और हर्षवर्धन कुलकर्णी ने। फिल्म के कुछ संवाद काम करते हैं, जबकि कुछ दृश्यों में कॉमेडी काम नहीं करती है। एडिटिंग के मामले में भी फिल्म पर थोड़ा और काम किया जा सकता था। लगभग ढ़ाई घंटे लंबी इस फिल्म पर आराम से 20 मिनट तक की कैंची चलाई जा सकती है, शायद उससे क्लाईमैक्स का प्रभाव भी कुछ अलग होगा। स्वपनिल सोनवने ने उत्तराखंड की खूबसूरती और सादगी को कैमरे में बेहतरीन कैद किया है।

    संगीत

    संगीत

    फिल्म के सबसे मजबूत पक्षों में है संगीत। खासकर वरुण ग्रोवर के लिरिक्स फिल्म को एक मायने देते हैं। विषय के ट्रैक पर चढ़ती- उतरती फिल्म को वरुण ग्रोवर के शब्दों ने गजब संभाला है.. खासकर 'हम थे सीधे साधे' और 'हम रंग हैं' गाने दिल छूते हैं। फिल्म का संगीत दिया है अमित त्रिवेदी ने।

    देंखे या ना देंखे

    देंखे या ना देंखे

    राजकुमार राव और भूमि पेडनेकर इस फिल्म के साथ बड़े पर्दे पर पहली बार साथ आए हैं और इनकी जोड़ी बढ़िया लगती है। लंबे लॉकडाउन के बाद थियेटर जाकर एक हल्फी फुल्की फिल्म का मजा लेना चाहते हैं तो 'बधाई दो' एक बार देखी जा सकती है। फिल्मीबीट की ओर से 'बधाई दो' को 2.5 स्टार।

    English summary
    Badhaai Do Film Review- Director Harshavardhan Kulkarni deals with the concept of Lavender marriage in a most practical approach. Rajkummar Rao and Bhumi Pednekar impresses. Read full review here.
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