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'अनेक' फिल्म रिव्यू- पूर्वोत्तर भारत के संघर्ष पर कुछ मजबूत सवाल, कुछ जवाब लेकर आए हैं आयुष्मान खुराना
निर्देशक- अनुभव सिन्हा
कलाकार- आयुष्मान खुराना, एंड्रिया केविचुसा, मनोज पाहवा, कुमुद मिश्रा, जे डी चक्रवर्ती
"आप क्या चाहते हैं- शांति या शांति समझौता?" फिल्म में एक किरदार अपने उच्च अधिकारी से पूछता है। 'अनेक' उत्तर पूर्व राज्यों की बहुस्तरीय और जटिल राजनीति को दिखाती है.. वहां के लोगों को किस किस तरह का भेदभाव सहना पड़ता है, यह दिखाती है। यहां हिंसा को महज प्रतिकार के रूप में नहीं, बल्कि अधीनता और असहिष्णुता के अपरिहार्य लक्षण के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
फिल्म की कहानी जोशुआ उर्फ़ अमन के इर्द गिर्द घूमती है, जो एक अंडरकवर एजेंट है। उसे पूर्वोत्तर राज्यों में अलगाववादियों से होने वाले खतरे को खत्म करना है। इस किरदार के जरीए फिल्म उत्तर- पूर्व राज्यों की कई समस्याओं से दर्शकों को अवगत कराती है। ये सिर्फ एक मिशन की कहानी नहीं है, बल्कि इन राज्यों में सालों साल से फैली अशांति को लेकर उठाए गए सवालों की कड़ी है।

कहानी
अंडरकवर एजेंट जोशुआ (आयुष्मान खुराना) पूर्वोत्तर भारत में एक मिशन पर है। देश की सरकार पूर्वोत्तर के सबसे बड़े अलगाववादी समूह और उसके विद्रोही नेता, टाइगर सांगा के साथ शांति समझौता करना चाहती है। लेकिन इस दौरान दूसरे अन्य समूह एक्टिव हो जाते हैं। जोशुआ का मिशन इन्हीं समूहों को शांत कराना है। अपने मिशन के दौरान, जोशुआ अलगाववादी समूह जॉनसन के सदस्य की बेटी, आइडो से मित्रता करके उस समूह में घुसपैठ करने की कोशिश करता है। जोशुआ और अपने पिता के असलियत से अंजान आइडो मुक्केबाजी में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतने का सपना देखती है। भले ही उसे हर कदम पर नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ता है, लेकिन देश को गौरवान्वित करके एक भारतीय के रूप में स्वीकार किए जाने की उम्मीद में, आइडो राष्ट्रीय टीम में एक स्थान बनाने के लिए लड़ना जारी रखती है।
क्या जोशुआ पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा खत्म कर शांति समझौता करवा पाने में सफल हो पाएगा? क्या आइडो अपनी काबिलियत साबित कर देश के सामने एक उदाहरण पेश कर पाएगी? अनेक कई कठोर सवाल करती है।
भारत सरकार और अलगाववादी समूहों के नेताओं के बीच चल रही राजनीति से तंग आ कर जोशुआ पूछता है- "कहीं ऐसा तो नहीं कि शांति किसी को चाहिए ही नहीं? वर्ना इतने सालों से एक छोटी सी प्रॉब्लम सॉल्व कैसे नहीं हुई!" फिल्म देश की अखंडता और शांति बनाए रखने के राजनीतिक पैतरों पर सवाल उठाती है।

अभिनय
आर्टिकल 15 के बाद अनुभव सिन्हा के साथ आयुष्मान खुराना की यह दूसरी फिल्म है। यहां आयुष्मान अपनी दूसरी फिल्मों से अलग नजर आए हैं, शरीर से मजबूत और हाव भाव से सख्त। यहां एक्टर को एक्शन करते भी देखा गया.. और कहना गलत नहीं होगा कि आयुष्मान अपने किरदार में परफेक्ट लगे हैं। निर्देशक ने उनके किरदार को कई लेयर दिये हैं, जिसके साथ अभिनेता ने पूरी तरह से न्याय किया है। आइडो के किरदार में एंड्रिया केविचुसा ने अच्छा काम किया है। फिल्म में 70-80 प्रतिशत कास्ट उत्तर- पूर्व राज्यों से ही हैं। जो फिल्म को वास्तविकता के और करीब लाता है। हालांकि फिल्म का लेखन कई हिस्सों में काफी कमजोर है, जिस वजह से किसी भी किरदार से आपको जुड़ाव महसूस नहीं हो पाता। मनोज पाहवा और कुमुद मिश्रा जैसे कलाकार कुछ खास योगदान देते नहीं दिखे।

निर्देशन
मुल्क, आर्टिकल 15 और थप्पड़ के बाद निर्देशक अनुभव सिन्हा से उम्मीदें आसमान छू रही थीं। लेकिन 'अनेक' उनकी पिछली फिल्मों से कई मामलों में कमजोर दिखी है। कोई शक नहीं कि इस संवेदनशील और गंभीर विषय को छूने के लिए अनुभव सिन्हा की तारीफ होनी चाहिए। लेकिन वह सटीक तरीके से अपना संदेश पहुंचाने में कहीं चूक गए हैं। अनुभव सिन्हा की फिल्मों का सबसे मजबूत पक्ष होता है लेखन, अनेक यहीं कमज़ोर दिखी है। पटकथा कई बार खिचीं हुई लगती है, कई बार ट्रैक से उतरती है.. साथ ही कोई भाव पैदा करने में असफल रही है। फिल्म में कई सब-प्लॉट हैं, जिससे आप भावनात्मक तौर पर जुड़ना चाहते हैं, लेकिन लेखन में अभाव रहा है। अनुभव सिन्हा ने एक साथ पूर्वोत्तर की सभी समस्याओं को समेट लेने की कोशिश की है, जिस वजह से फिल्म किसी भी एक मुद्दा या किरदार से जुड़ने का मौका ही नहीं देती है।

तकनीकि पक्ष
फिल्म की शूटिंग असम और मेघालय में हुई है, जहां की खूबसूरती को सिनेमेटोग्राफर इवान मुलिगन ने बेहतरीन कैद किया है। साथ ही उत्तर- पूर्वी राज्यों के गांव और कस्बों में उठते टेंशन को भी उन्होंने पूरी संवेदनशीलता से दिखाया है। यश रामचंदानी एडिटिंग में थोड़ी और कसावट ला सकते थे। फिल्म के कुछ दृश्य दोहराते दिखते हैं, तो कुछ काफी लंबे फिल्माए गए हैं.. जिस वजह से ये फिल्म काफी लंबी लगती है।

संगीत
फिल्म का संगीत दिया है अनुराग सैकिया ने, जो कि औसत है और फिल्म के भारी भरकम विषय के बीच कहीं दब सा जाता है। अनुभव सिन्हा की पिछली फिल्मों की तरह यहां गाने ध्यान आकर्षित नहीं करते। वहीं, मंगेश धकड़े भी बैकग्राउंड स्कोर के साथ फिल्म में टेंशन क्रिएट करने में असफल रहे हैं।

देंखे या ना देंखे
'अनेक' कोई कहानी नहीं है, बल्कि हमारे देश की, हमारे समाज की सच्चाई है। हालांकि फिल्म कुछ भाग में कमजोर दिखती है, लेकिन यदि आप गंभीर सामाजिक- राजनीतिक मुद्दों पर बनी फिल्म देखना और समझना पसंद करते हैं तो 'अनेक' जरूर देखी जा सकती है। फिल्मीबीट की ओर से 'अनेक' को 3 स्टार।