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    200 हल्ला हो रिव्यू: दलित महिलाओं की दर्दनाक सच्ची कहानी, रिंकू राजगुरु और अमोल पालेकर का बढ़िया अभिनय

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    Rating:
    3.0/5

    कलाकार : अमोल पालेकर, बरुण सोबती, फ्लोरा सैनी, रिंकू राजगुरु, सलोनी बत्रा
    डायरेक्टर : सार्थक दासगुप्ता, अलोक बत्रा
    अवधि : 1 Hrs 55 Min
    कहां देखें : जी5

    ''जेल बाहर की दुनिया से अच्छी है, यहां कोई दलित नहीं कोई ब्रह्माण नहीं'' इस मजबूत संवाद के साथ निर्देशक सार्थक दासगुप्ता समाज को आईना दिखाने की कोशिश करते हैं। सामाजिक विषय पर बनी फिल्म '200 हल्ला हो' जी5 पर रिलीज हो चुकी है। फिल्म में अमोल पालेकर, रिंकू राजगुरु से लेकर बरुण सोबती समेत कई दमदार अभिनेता हैं।

    साल 2017 में नागपुर अक्कु यादव हत्याकांड काफी चर्चा में रहा था। रेपिस्ट, गैंगस्टर और खूनी अक्कु यादव को खुली अदालत में 200 दलित महिलाओं ने सरेआम मार डाला था। इन महिलाओं ने अक्कु यादव की हैवानियत को 10 साल तक झेला लेकिन प्रशासन व पुलिस की मदद नहीं मिली। 13 अगस्त 2004 को जब अक्कु यादव को पुलिस कोर्ट में पेश करने के लिए लाई तो करीब 200 महिलाओं ने उसकी जान ले ली। इसी घटना पर '200 हल्ला हो' बनाई गई है।

    200 halla ho

    '200 हल्ला हो' में अमोल पालेकर और रिंकु राजगुरु की दमदार अदाकारी के साथ गंभीर मुद्दा देखने को मिलता है। फिल्म समाज में पिछड़ों व दलितों की स्थिति को दर्शाती है और हमारे समाज की हकीकत को पेश करती है। सार्थक दासगुप्ता की इस फिल्म में कहीं कहीं उतार चढ़ाव आते हैं, कभी ये फिल्म संभलती तो कभी लड़खती नजर आती है।

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    फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष फिल्म के संवाद हैं जो बहुत बढ़िया लिखे गए हैं। लेखक ने फिल्म में समाज की सच्चाई, हीन भावना, पिछड़ों व दलित महिलाओं का शोषण, संविधान व कानूनी व्यवस्था के दर्दनाक सच को बयां करने के लिए बहुत बढ़िया डायलॉग लिखे गए हैं।

    कहानी

    कहानी

    कहानी की शुरुआत दर्दनाक मंजर से होती है, जहां खुली अदालत में मुंह पर कपड़ा लिपेटे, हाथों में छुरी व चाकू लिए महिलाओं ने 1 अपराधी की हत्या कर दी है। कोर्ट में इस खूनी मंजर को दिखाते हुए फिल्म बढ़ना शुरू होती है। फिल्म में दलित महिलाओं पर फोकस किया गया है। दलितों की बस्ती में होने वाले अन्याय की ये कहानी झकझोर देती है। साल 2017 में हर न्यूज पेपर और चैनल पर इस हत्याकांड ने काफी चर्चा बटौरी थी। फिल्म में हत्या व शोषण के अलावा दलित और ब्रह्माण प्रेम कहानी की झलक भी देखने को मिलती है।

    अभिनय

    अभिनय

    दलित और शोषितों का जीवन आज भी कितना दुभर है ये इस फिल्म से और साफ हो जाता है। ऊपर से दलित महिला होना तो किसी श्राप से कम नहीं। आज भी देश के कोने कोने से दलितों के शोषण की खबरें आनी आम हैं। लेकिन बड़े पर्दे पर कितना इन विषयों को दिखाया जाता है ये भी अपने आप में एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। दलित महिलाओं को लेकर सार्थक दासगुप्ता ने '200 हल्ला हो' फिल्म बनाई है, जिसमें उन्होंने धर्म व जाति को लेकर दर्शकों की सोच को मजबूत करने का काम किया है। हालांकि इस फिल्म को और ज्यादा सटीक बनाया जा सकता था। '200 हल्ला हो' से 12 साल के लंबे अंतराल के बाद अमोल पालेकर ने वापसी की है। स्क्रीन पर अमोल पालेकर को देखना सुकून देता है। फिल्म में उनकी एक्टिंग के अनुभव को साफ देखा व समझा जा सकता है। अमोल पालेकर इस फिल्म में रिटायर जज की भूमिका में हैं। जो अपने किरदार के साथ पूरा न्याय करते हैं। उनकी डायलॉग डिलिवरी से लेकर व्यक्तित्व शानदार नजर आया है।

    वहीं फिल्म '200 हल्ला हो' में सैराट फेम रिंकू राजगुरु ने शानदार काम किया है। दलित युवा आशा के किरदार में रिंकू राजगुरु ने इतना बेहतरीन अभिनय किया है कि एक मिनट भी उनसे नजरें नहीं हटती। वह इस किरदार में एकदम फिट बैठती हैं। वहीं वकील उमेश जोशी (बरुण सोबती) के किरदार के साथ पटकथा में न्याय नहीं किया गया है। जिस वजह से उनकी परफॉर्मेंस ढीली नजर आती है।

    निर्देशन व तकनीकि पक्ष

    निर्देशन व तकनीकि पक्ष

    सार्थक दासगुप्ता के साथ अलोक बत्रा ने सह-निर्देशन का काम किया है। दोनों ने कलाकारों के हुनर का इस्तेमाल करते हुए समाज की सच्चाई को बड़े पर्दे पर दिखाने की कोशिश की है। दलित महिलाओं पर बनी इस फिल्म को अगर निर्देशक थोड़ा जोर और लगा देते तो ये फिल्म सुपर से भी ऊपर साबित होती। एक-आध जगह पर फिल्म कमजोर पड़ने लगती है लेकिन फिल्म के लेखन और कलाकार इसे तुंरत बचा लेते हैं।

    निर्देशन में एक चूक ये भी हुई कि कुछ कलाकार दबे हुए प्रतीत हुए। जैसे विलेन और उमेश जोशी (वकील) का किरदार। ये दोनों ही रोल काफी अहम थे। विलेन का रोल हथौड़ा सिंह (पताल लोक का विलेन) जैसा फेमस किरदार बन सकता था। लेकिन कुछ कमियों के चलते ये संभव नहीं हो पाया।

    फ़िल्म के कई सीन आपको झकझोरने में कामयाब रहते हैं। महिलाओं द्वारा अपराधी पर अटैक करने वाले सीन को बढ़िया दर्शाया गया है तो वहीं दलित बस्ती से लेकर कोर्ट सीन भी शानदार दर्शाए गए हैं। सिनेमोटोग्राफी से लेकर एडिटिंग औसतन हैं। कुछ सीन दर्शकों को इमोशनल करते हैं। फ़िल्म के क्लाइमैक्स की शुरुआत अमोल पालेकर से होती है, जो इस फिल्म में जान फूंक देता है।

    पटकथा

    पटकथा

    इस फिल्म की सबसे अहम कड़ी फिल्म की पटकथा है। लेखकों ने कसी हुई स्क्रिप्ट लिखी। सबसे मजबूत पक्ष इसके संवाद है। हर दूसरा संवाद ऐसा है जो दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं, जैसे 'संविधान में लिखे शब्दों का याद होना नहीं उनका इस्तेमाल होना जरूरी है'.., 'दलित होना किसी की मॉरैलिटी का सबूत नहीं..' ऐसे ढेर सारे डायलॉग हैं जिसकी वजह से फिल्म औसत होने से बच जाती है। इस मजबूत विषय पर ऐसी कसी हुई पटकथा की सख्त जरूरत थी।

    पटकथा लेखन की कामयाबी आपको तब महसूस होती है जब आप अमोल पालेकर की स्पीच फिल्म में सुनेंगे। इस कहानी के जरिए लेखक ने दिखाया कि कैसे भारतीय न्यायपालिका और प्रशासन दलित महिलाओं को न्याय व सुरक्षा देने में चूक जाते हैं, क्यों महिलाओं को कानून हाथ में लेना पड़ा था।

    देखें या न देखें

    देखें या न देखें

    '200 हल्ला हो' फिल्म एक ऐसी फिल्म है जिसे आपको देखने के बाद एहसास होगा कि आज भी दलित व महिलाएं कितनी मुसीबत में हैं। जिनका जीवन समाज की कुरीतियों में घुट कर रह गया है। वह अपनी तरक्की तो छोड़ो सिर उठा कर चल नहीं सकतीं। उत्पीड़न से लेकर गंदी गालियों का इस्तेमाल इस तब्के के साथ धड़ल्ले से किया जाता है।

    अगर आप सच्ची कहानी को देखने में रुचि रखते हैं तो आप इस फिल्म को एन्जॉय करेंगे। अगर आप कोर्टरुम से संबंधित फिल्में देखना पसंद करते हैं तो भी इसे जरूर देखें। यदि आप मसाला और हल्का फुल्का मनोरंजन देखना चाहते हैं तो ये फिल्म आपके लिए नहीं है।

    English summary
    200 halla ho Movie Review & Rating starring amol palekar barun sobti and Rinku Rajguru based on real story of Dalit women who attacked a rapist in an open court
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