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विनोद खन्ना की ज़िंदगी में सब कुछ 'अचानक' रहा
फ़िल्में छोड़ ओशो के पास जाने वाले विनोद खन्ना क्या असली एंग्री यंग मैन थे।
वो 70 के दशक के आख़िरी साल थे और 80 के दशक की शुरुआत.
'मुक़द्दर का सिकंदर', 'हेरा फेरी', 'अमर अकबर एंथनी', 'परवरिश'..विनोद खन्ना की एक के बाद एक हिट और मल्टीस्टारर फ़िल्में आ रही थीं.
फिर एक दिन अचानक विनोद खन्ना ने अपने परिवार के साथ मुंबई में प्रेस कॉन्फ़्रेंस बुलाई. उन दिनों किसी स्टार का इस तरह प्रेस कॉन्फ़्रेंस करना आम नहीं था.
विनोद खन्ना ने ये कहकर सबको हैरान कर दिया था कि वो फ़िल्मों को अलविदा कह रहे हैं. वह ओशो के शिष्य बन अमरीका चले गए.
फ़िल्में छोड़ने से कुछ समय पहले से वो फ़िल्म सेट पर भी भगवा कपड़े और माला पहनकर रहने लगे थे.
सिमी ग्रेवाल के टीवी शो पर ओशो के पास जाने पर उन्होंने बताया था, "मैं उस समय हर बात पर ग़ुस्सा हो जाता था. मैं सेचुरेशन प्वाइंट पर पहुँच चुका था. मैं चाहता था कि मैं 'मास्टर ऑफ़ माई ओन माइंड' बनूँ."
नहीं रहे बॉलीवुड के 'दयावान' विनोद खन्ना
विनोद खन्ना हमेशा याद रहेंगे: नरेंद्र मोदी
विलेन से टॉप स्टार
दरअसल, विनोद खन्ना की पूरी ज़िंदगी का सार निकालें तो उन्होंने हमेशा समय की धारा के उलट ही काम किया.
हिंदी फ़िल्मों में छोटे-मोटे और विलेन का रोल करने वाले विनोद खन्ना ने बाद में ख़ुद को टॉप सितारा साबित किया. और टॉप सितारा बनने के बाद एक झटके में सब छोड़ भी दिया.
1968 में विनोद खन्ना सबसे पहले फ़िल्म 'मन का मीत' में नज़र आए थे. पेशावर से मुंबई आकर बसे विनोद खन्ना पर सुनील दत्त की नज़र पड़ी. दिखने में अच्छे ख़ासे थे तो झट से उन्हें साइन कर लिया, लेकिन बतौर विलेन. हीरो थे सुनील दत्त के भाई सोमदत्त.
सोमदत्त को तो लोग भूल-भुला गए, लेकिन लंबी कद काठी वाले विनोद लोगों को याद रहे.
'मेरे ख़िलाफ़ भड़काने पर भी नहीं भड़के विनोद'
पहली फ़्लाप फ़िल्म देने वाले सुपरस्टार
एंग्री यंग मैन?
1970-71 में 'आन मिलो सजना', 'पूरब और पश्चिम', 'सच्चा झूठा' जैसी कई फ़िल्में आईं, जिनमें कभी वो साइड रोल तो कभी विलेन बनते.
लेकिन असली पहचान उन्हें दिलाई गुलज़ार की फ़िल्म 'मेरे अपने' ने जहाँ बेरोज़गारी और भटकाव से गुज़र रहे युवक के रोल में विनोद खन्ना ने मौजूदगी दर्ज कराई. कह सकते हैं कि वो गुलज़ार के एंग्री यंग मैन थे.
1973 में गुलज़ार की ही फ़िल्म 'अचानक' में विनोद खन्ना ने वही रोल निभाया था जिसके लिए अब अक्षय कुमार को 'रुस्तम' के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला है.
इसके बाद जो फ़िल्में उन्हें मिलती गईं, उसने उन्हें हैंडसम, डैशिंग, सेक्सी हीरो जैसी कैटिगरी में लाकर खड़ा कर दिया.
यहाँ तक कि जब वो ओशो के पास चले गए तो लोग उन्हें 'सेक्सी संन्यासी' कहते थे.
बिग बी से टक्कर
'ख़ून पसीना', 'परवरिश', 'हेरा फेरी', 'मुक़द्दर का सिंकदर' और 'अमर अकबर एंथनी' में वो बिग बी के साथ नज़र आए.
इत्तेफ़ाक की बात है कि शुरुआती दौर में 'रेशमा और शेरा' में दोनों ने एक साथ किया था. तब दोनों का ही इंडस्ट्री में नाम नहीं था.
विनोद खन्ना के फ़ैन्स अक्सर ये कहते हैं कि वन मैन इंडस्ट्री बन चुके अमिताभ के दौर में विनोद अगर फ़िल्में न छोड़ते तो वो अमिताभ बच्चन से आगे होते.
हालाँकि एक सिनेमा प्रेमी के नाते मैं इससे सहमत नहीं हूँ. एक्टिंग रेंज के मामले में अमिताभ बच्चन ने अलग-अलग रोल में लोहा मनवाया जबकि विनोद खन्ना की रेंज औसत रही.
हालांकि स्टाइल और लुक्स के मामले में कम ही लोग विनोद खन्ना को टक्कर दे पाए.
बैडमिंटन का मैच और शादी...
1987 में फ़िल्मों में वापसी के बाद उन्होंने कई औसत तो कुछ हिट फ़िल्में कीं.
फ़िल्मों की तरह उनकी निजी ज़िंदगी में भी कई उतार चढ़ाव आए. ओशो की शरण में जाने के बाद उनका पहली पत्नी गीतांजलि से तलाक़ हुआ, लेकिन 1990 में उन्होंने कविता से शादी की.
सिमी ग्रेवाल के टीवी शो में कविता खन्ना ने बताया था, "अपने दोस्तों के कहने पर मैं विनोद खन्ना के घर पार्टी पर गई थी. हालांकि मुझे बुलाया नहीं गया था.''
उन्होंने कहा, ''वहाँ से जान पहचान हुई. विनोद मुझे फ़ोन करने लगे. मैं काफ़ी दिन तक मना करती रही, लेकिन धीरे-धीरे हमारे बीच रिश्ता बनने लगा. पर विनोद ने साफ़ कर दिया था वो दोबारा किसी से शादी नहीं करेंगे."
"एक दिन वो बैंडमिंटन खेल रहे थे. उन्होंने शॉर्टस पहने हुए थे, पसीने से तर-बतर थे. वो अचानक आए और पूछा कि क्या तुम शादी करोगी?"
ठीक उसी तरह 'अचानक' जैसे एक दिन विनोद खन्ना फ़िल्में, 'दौलत', 'शोहरत' छोड़ आध्यात्म की ओर चले गए थे.
सब कुछ अचानक...
मुझे लगता है कि विनोद खन्ना की ज़िंदगी को अगर एक शब्द में बयां करना हो तो 'अचानक' शब्द ही सबसे सटीक होगा.
उनकी ज़िंदगी में सब अचानक हुआ- राजनीति में आने का फैसला भी कुछ ऐसा ही था. उनकी बीमारी की ख़बर भी अचानक ही सामने आई.
अकेले आते हैं...
अपनी इंटरव्यू में एक बार उन्होंने कहा था, "आप अकेले आते हैं, आप अकेले जाते हैं, मैंने ज़िंदगी में जो भी किया मैं उससे ख़ुश हूँ."
शायद उन्हें ज़िंदगी जीने का यही अंदाज़ पंसद था और इसी अंदाज़ ने उन्हें दूसरों से अलग भी बनाया.
शायद इसीलिए नेशनल फ़िल्म आर्काइव ऑफ़ इंडिया आज विनोद खन्ना की याद में उनकी सारी फ़िल्मों में से फ़िल्म अचानक का शो कर रहा है.
उनका करियर कभी वो ऊँचाई हासिल नहीं कर सका, लेकिन उन्होंने बाद में भी 'चाँदनी', 'लेकिन' और 'दबंग' जैसी फ़िल्मों के ज़रिए ख़ुद को कभी आउटडेटिड नहीं होने दिया.
वैसे उनकी एक फ़िल्म आनी बाकी है- 'एक थी रानी ऐसी भी' जिसमें वो हेमा मालिनी के साथ नज़र आएँगे- विजय राजे सिंधिया पर बनी फ़िल्म में.
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