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    'वर्ल्ड टूर का सिलसिला मैंने शुरु किया'

    By वंदना
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    अमिताभ बच्चन इन दिनों विश्व दौरे पर हैं
    अमिताभ बच्चन इन दिनों विश्व दौरे पर हैं. वे कहते हैं कि 70-80 के दशक में उन्होंने ही पहली बार फ़िल्मी सितारों के वर्ल्ड टूर की शुरुआत की थी.

    इसमें उनके बेटे अभिषेक और बहू ऐश्वर्या तो है हीं साथ में प्रीति जिंटा, माधुरी दीक्षित और अक्षय कुमार जैसे सितारे भी हैं.

    अभी टोरंटो, त्रिनिदाद, लॉस एंजेलेस और सैन फ़्रांसिस्को के शो हुए हैं. बाद में ये टूर लंदन का दौरा भी करेगा. टूर का नाम है 'अन्फ़ॉर्गेटेबल वर्ल्ड टूर' यानी न भूलने वाला दौरा. ये दौरा यादगार होगा या नहीं ये तो दर्शक ही तय करेंगे लेकिन अमिताभ ख़ुद इस दौरे का पूरा लुत्फ़ उठा रहे हैं.

    वे मानते हैं कि आजकल भले ही बॉलीवुड सितारों के लिए बड़े-बडे विश्व दौरे करना आम बात हो लेकिन 70-80 के दशक में उन्होंने ही पहली बार ये सिलसिला शुरु किया था कि संगीत निर्देशकों और गायकों के अलावा भारतीय फ़िल्मी सितारे वर्ल्ड टूर पर जाएँ.

    बीबीसी ने अमरीका फ़ोन लगाकर अमिताभ बच्चन से दौरे के बारे में बातचीत की:

    टोरंटो, त्रिनीदाद और कुछ अन्य शहरों में 'अन्फ़ॉर्गेटेबल वर्ल्ड टूर' परफ़ॉर्म कर चुका है..अभी तक किस तरह की प्रतिक्रिया मिली है.

    लोगों की प्रतिक्रिया देखकर हम लोग बहुत ख़ुश हैं. लोगों का ढेर सारा प्यार और शुभकामनाएँ मिली हैं. अभी हम लोग अमरीका में हैं. अमरीका के बाद लंदन भी आएँगे.

    काफ़ी लंबे समय के बाद आप वर्ल्ड टूर कर रहे हैं. कुछ दिन पहले आपने ब्लॉग में लिखा था कि 1990 के बाद से आपने बस कर लिया था कि अब और वर्ल्ड टूर नहीं. लेकिन आप फिर लौटे हैं. दोबारा लौटने की इच्छा शक्ति कहाँ से आई.

    कॉन्सर्ट टूर करना 70 और 80 के दशक में मैने ही शुरु किया था. एक तरह से पाइनियर किया था. उस समय ये एक नई चीज़ थी और बुहत उत्साह भी था. साथ-साथ उम्र भी थी और जवानी भी. अब तो 66 वर्ष के हो गए हैं. शरीर वैसे नहीं रहा जैसा पहले था. लेकिन इस बार परिवार के सभी सदस्य जा रहे थे तो मंशा था कि भई मैं भी साथ चलूँ. बस मैं साथ हो लिया.
    कॉन्सर्ट टूर करना 70 और 80 के दशक में मैने ही शुरु किया था. एक तरह से पाइनियर किया था. उस समय ये एक नई चीज़ थी और बुहत उत्साह भी था. साथ-साथ उम्र भी थी और जवानी भी.

    अब तो 66 वर्ष के हो गए हैं. शरीर वैसे नहीं रहा जैसा पहले था. लेकिन परिवार के सभी सदस्य जा रहे थे तो मंशा हुई कि भई मैं भी साथ चलूँ. बस मैं साथ हो लिया.

    आपका परिवार इस दौरे में शामिल है- अभिषेक और ऐश्वर्या भी हैं. ये विचार कि आप सब लोग एक साथ वर्ल्ड टूर पर जाएँ कब और कैसे आया.

    विचार तो कंपनी का था जो ये टूर आयोजित करवा रही है. परिवार के सब लोग फ़िल्म कलाकार हैं, जया भी हमारे साथ हैं. हमें लगा कि सब लोग एक साथ वर्ल्ड टूर पर निकलें तो अच्छा रहेगा. मेरी धारणा थी कि फ़िल्म उद्योग के बाक़ी कलाकार- चाहें वो अक्षय कुमार हों, रितेश देशमुख, माधुरी, प्रीति ज़िंटा या शिल्पा शेट्टी हों- इन सबको भी शामिल किया जाए तो एक बेहतरीन दौरा बनेगा.

    अस्सी के दशक में कल्याणजी आनंदजी के साथ टूर कर चुके हैं, लताजी के साथ भी किया. लाइव शो का अनुभव, भारत के बाहर लोगों के सामने परफ़ॉर्म करने का अनुभव कितना अलग होता है.

    विदेशों में शायद दर्शकों को ये मौका कम मिलता है कि वो फ़िल्म कलाकारों से मिल सकें या उनकी लाइव प्रस्तुति देख सकें. इसलिए उनमें उत्साह थोड़ा ज़्यादा होता है. हिंदी फ़िल्मों के दर्शक जगह-जगह फैले हुए हैं. मैं तो इसी बात से ख़ुश हो जाता हूँ कि मनोरंजन के रूप में हम उन्हें जो कुछ पेश करते हैं उसे वो जोशो-ख़रोश से स्वीकार कर लेते हैं. उनके जोश को देखकर हम लोग उत्साहित होते हैं.

    स्टेज पर सब कुछ लाइव चल रहा होता है. कहीं कुछ गड़बड़ की आशंका तो रहती ही है. शो से पहले ये बात आपको परेशान करती है?

    ये परेशानी तो हमेशा रहती है. फ़िल्म की शूटिंग के दौरान अगर गड़बड़ हो जाए तो दोबारा टेक ले सकते हैं. लेकिन यहाँ रीटेक की संभावना नहीं होती. यही वजह है कि हम लोग सतर्क रहते हैं और घबराए हुए भी. कई बार तकनीकी गड़बड़ी हो जाती है या हम ही लोग भूल जाते हैं कि क्या करना है. उम्मीद यही करते हैं कि लोग इन ग़लतियों को सही नज़रिए से देखेंगे.

    ग़लती कहीं भी हो सकती है, किसी से भी हो सकती है. मैने कई बार विदेशी शो भी देखे हैं, ब्रॉडवे पर लंदन में. वहाँ भी ग़लती हो जाती है. लेकिन हम लोग इंसान है और ग़लती को मान लेना चाहिए. पर हाँ आम तौर पर लाइव शो में होने वाली ग़लतियों को हम किसी तरह मैनेज ज़रूर कर लेते हैं और सतर्क रहते हैं कि जो भी करें सही करें.

    आपने जो पिछले टूर किए हैं उनके मुकाबले आज तकनीक काफ़ी बदली है. क्या इस बदली तकनीक से परफ़ॉरमेंस में कुछ मदद मिलती है.

    ये बात आप सही कह रही हैं. जो तकनीक उस ज़माने में थी अब वो बदल चुकी है. किस तरह लाइटिंग पर, साउंड इफ़ेक्ट पर, कपड़ों और शो की मार्केटिंग पर ध्यान दिया जाता है- इस सब में काफ़ी अंतर आया है और होना भी चाहिए. हमारा फ़र्ज़ है कि लोगों को बेहतरीन से बेहतरीन शो बनाकर दें. नई तकनीक के सहारे हमने कई प्रयोग किए हैं ताकि हर बार स्टेज पर लोगों को कुछ नया देखने को मिले.

    आप लंदन में भी आने वाले हैं. क्या इससे पहले आप यहाँ वर्ल्ड टूर के तहत आएँ हैं?

    लंदन में परफ़ॉर्म तो कई बार किया है पर सबसे ज़्यादा यादगार दौरा था वेंबली स्टेडियम में. दौरे का नाम था 'जुम्मा चुम्मा इन लंदन'. उसमें श्रीदेवी, सलमान, आमिर खान, नीलम, अनुपम खेर आए थे. सलमान और आमिर का पहला टूर था. वे कमोबेश नए कलाकार थे तब. मैने उन्हें आमंत्रित किया था. ज़बरदस्त शो था वो.

    आपने ब्लॉग में लिखा है कि मीडिया का एक वर्ग और फ़िल्म उद्योग से जुड़े कुछ लोग आपके टूर को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं.

    इस बारे में मुझे जो कहना था मैं लिख चुका हूँ.इस विषय पर मैं और चर्चा नहीं करना चाहूँगा.

    इससे पहले भी आप दुनिया के कई हिस्सों में कॉन्सर्ट कर चुके हैं. उन दौरों से जुड़ी बहुत सारी पुरानी यादें ज़रूर होंगी आपकी.

    ग़लती कहीं भी हो सकती है, किसी से भी हो सकती है. मैने कई बार विदेशी शो भी देखे हैं, ब्रॉडवे पर लंदन में. वहाँ भी ग़लती हो जाती है. लेकिन हम लोग इंसान है और ग़लती को मान लेना चाहिए
    वो यादें बाँटने लगूँगा तो चर्चा बहुत लंबी हो जाएगी. उस ज़माने में यदा कदा कोई गायक चला जाता था या कोई संगीत निर्देशक अपनी टीम लेकर चले जाते थे. केवल संगीत तक सीमित होते थे वो दौरे. लेकिन फ़िल्मी कलाकार स्टेज पर जाएँ और प्रस्तुति दें.. ये सिलसिला शायद मेरे साथ अस्सी के दशक में शुरु हुआ. धीरे-धीरे दर्शकों में भी उत्साह बढ़ता गया. ऐसे ज़ोर-शोर से हमारा स्वागत करते थे लोग कि कभी-कभी हमें ही सुनाई नहीं देता था कि हम क्या सुन रहे हैं या गा रहे हैं. तब सही मायनों में हमें पता चला कि लोग हमसे कितना प्यार करते हैं.

    अभिषेक का ये पहला विश्व दौरा है. आप पहली बार उनके साथ लाइव शो कर रहे हैं. ये अनुभव कैसा है?

    परिवार साथ हो तो अच्छा लगता है. हम लोग एक दूसरे को प्रोत्साहित करते रहते हैं. इसलिए नहीं कि वो मेरे परिवार के सदस्य हैं. टूर में हिस्सा लेने वाले सब लोग लोग एक ही होटल में रहते हैं, सुबह से शाम तक एक साथ बैठना, घूमना और फिर शाम में एक साथ परफ़ॉर्म करना, एक दूसरे की पीठ थपथपाना- सब कोई मानो एक ही परिवार हो जाते हैं.

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