twitter
    For Quick Alerts
    ALLOW NOTIFICATIONS  
    For Daily Alerts

    मुंबई हमले पर फिल्में बनाने की होड़

    By Staff
    |
    मुंबई हमले पर फिल्में बनाने की होड़

    मुंबई पर हुए चरंमपंथी हमले पर बॉलीवुड में फ़िल्में बनाने की शुरुआत हो गई है. कुछ दिनों पहले ही कई फ़िल्म निर्माताओं ने अपनी फिल्मों के शीर्षक रजिस्टर करवाने के लिए अर्ज़ी भी दे डाली है.

    'शूटआउट एट ताज', 'शूटआउट एट ओबरॉय', 'शूट आउट एट सीएसटी', 'ऑपरेशन ब्लैक टार्नैडो', 'ऑपरेशन साइक्लोन', 'अल्टीमेट हीरो', 'द रिएल हीरो', 'वो साठ घंटे' और 'ताज टू ओबरॉय' जैसे कई शीर्षक इन दिनों इंडियन मोशन पिक्चर्स एंड प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन यानी इम्पा के दफ्तर में रजिस्ट्रेशन के लिए दिए गए हैं.

    रजिस्ट्रेशन की होड़

    इम्पा की सीनियर उपाध्यक्ष सुषमा शिरोमणि कहती हैं, "जी हां, पिछले कुछ दिनों में हमारे पास इस विषय पर आधारित फिल्मों के लिए दो दर्जन से ज्यादा शीर्षक रजिस्टर करवाने के लिए अर्जी दी गई हैं."

    मुंबई पर हमले की घटना ने काफ़ी लोगों के दिलों को छुआ है और कोई भी फ़िल्म अगर दर्दनाक क़िस्से को बयान करती है तो इसमें कोई बुराई नहीं है सुषमा शिरोमणि

    मुंबई पर हमले की घटना ने काफ़ी लोगों के दिलों को छुआ है और कोई भी फ़िल्म अगर दर्दनाक क़िस्से को बयान करती है तो इसमें कोई बुराई नहीं है

    मशहूर निर्देशक बी सुभाष ने भी इस विषय पर फ़िल्म बनाने के लिए 'बर्ड्स प्वाइंट ऑफ व्यू ऑफ द ताज टैरर' नाम का शीर्षक रजिस्टर करवाया है.

    उनका कहना है, "मुंबई पर हमले की घटना ने काफ़ी लोगों के दिलों को छुआ है और कोई भी फ़िल्म अगर दर्दनाक क़िस्से को बयान करती है तो इसमें कोई बुराई नहीं है."

    सिनेमा से जुड़े हुए कई विश्लेषकों का भी मानना है कि जिस अंदाज में दस चरंमपंथियों ने शहर में प्रवेश कर प्रमुख होटलों को अपना निशाना बनाया, कई लोगों को बंधक बनाया और जान माल का इतनी भारी बड़ी तादाद में नुकसान किया वो फ़िल्मों के लिए एक बढिया मसाला है और उन साठ घंटों को वो अलग-अलग तरीक़े से पर्दे पर दिखाना चाहते हैं.

    फ़िल्म समीक्षक अजय ब्रम्हात्मज कहते हैं, "देखिए ये विषय ऐसा है जिसमें वास्तविक ड्रामा भी है, ऐक्शन भी है, हम सबने इस पूरी घटना को रियलिटी शो की तरह टीवी पर देखा तो संभव है कि कुछ निर्माता इस पर फ़िल्म बनाने की सोचें."

    गंभीरता का प्रश्न है

    उनका कहना है कि टाइटल रजिस्टर करवाने की तो भेड़चाल होती है लेकिन देखने वाली बात ये होगी कि कितने लोग हैं जो वास्तव में गंभीरता से इस पर फ़िल्म बनाएंगे.

    देखिए ये विषय ऐसा है जिसमें वास्तविक ड्रामा भी है, एक्शन भी है, हम सबने इस पूरी घटना को रियलिटी शो की तरह टीवी पर देखा तो संभव है कि कुछ निर्माता इस पर फ़िल्म बनाने की सोचें फ़िल्म समीक्षक अजय ब्रम्हात्मज

    देखिए ये विषय ऐसा है जिसमें वास्तविक ड्रामा भी है, एक्शन भी है, हम सबने इस पूरी घटना को रियलिटी शो की तरह टीवी पर देखा तो संभव है कि कुछ निर्माता इस पर फ़िल्म बनाने की सोचें

    वर्ष 2005 में लंदन में हुए बम धमाकों पर आधारित फ़िल्म 'शूट आन साइट' बनाने वाले निर्देशक जगमोहन मूंदड़ा भी इस तर्क से सहमत दिखते हैं, वो कहते हैं, " ये फ़िल्म निर्माताओं के लिए एक मसाला ज़रूर है, लेकिन देखने वाली बात ये है कि कितनी संवेदनशीलता के साथ कोई इस विषय पर फ़िल्म बना सकता है."

    उनके अनुसार ये ऐसा विषय है जिसे आप हल्के में नहीं ले सकते.

    हॉलीवुड में भी इस तरीक़े की फ़िल्में बनी हैं जैसे 'डाइ हार्ड सीरिज'. मेरे ख्याल से अगर कोई उस घटना के बाद लोगों की जिंदगियों पर पड़ रहे असर को जोड़ते हुए गंभीरता से फ़िल्म बनाए तो वो अच्छी बात है.

    पिछले कुछ सालों में 'आतंकवाद' पर कई फ़िल्में बनी हैं. इसी साल रिलीज हुई कुछ फ़िल्में जैसे मुंबई मेरी जान, ए वैडनेस्डे और शूट आन साइट जैसे फिल्मों को लोगों ने काफी पसंद किया.

    ऐसे में देखने वाली बात ये होगी कि जो निर्माता निर्देशक हाल ही में हुई आतंकी हमले को आधार बनाकर फिल्मों का ताना बाना बुनने की कोशिश कर रहे हैं वो दर्शकों को किस हद तक प्रभावित कर पाते हैं.

    तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
    Enable
    x
    Notification Settings X
    Time Settings
    Done
    Clear Notification X
    Do you want to clear all the notifications from your inbox?
    Settings X
    X