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बाहुबली से पहले डिजिटल कलाकारी वाली वो फ़िल्में
भारत में फ़िल्मों में स्पेशल इफ़ेक्ट्स का इस्तेमाल डिजिटल युग से काफ़ी पहले से हो रहा है।
शुक्रवार को रिली़ज़ हुई 'बाहुबली- द कॉन्क्ल्यूज़न'. इस फ़िल्म में स्पेशल इफ़ेक्ट्स को एक नये मुकाम पर पहुंचाया है.
इस फ़िल्म में हैं प्रभास, राणा डग्गुबाती और तमन्ना भाटिया. फ़िल्म सीक्वल है 2015 की 'बाहुबली - द बिगिनिंग' की. फ़िल्म में इस्तेमाल हुई तकनीक ने सबको हैरान किया और अब रिलीज़ पार्ट 2 में भी कमाल की डिजिटल कलाकारी है.
जानते हैं कुछ उन फ़िल्मों के बारे में जो भारतीए सिनेमा में नई तक़नीक लेकर आईं या फिर उन्होंने नया प्रयोग किया.
हाल ही की कुछ फ़िल्में जैसे 2010 की रजनीकांत की 'इंथिरन', साल 2011 की शाहरुख की 'रा.वन' नई तकनीक और प्रयोग ले आईं, वहीं 2015 की बाहुबली - द बिगिनिंग बन गई एक सुपर हिट फ़िल्म जहाँ लोगों को विज़ुअल इफ़ेक्ट्स पसंद आए. आजकल की फ़िल्मों में तो कंप्यूटर तकनीक का इस्तेमाल होता है लेकिन इससे पहले भी कैमरे ,एडिटिंग के ज़रिए इफ़ेक्ट्स आए हैं और अनोखे प्रयोग हुए हैं.
1)दादा साहेब की फ़िल्में
क्यूरेटर, फ़िल्म इतिहासकार और लेखक अमृत गंगर कहते हैं, "दादा साहेब की फ़िल्मों में आपको स्पेशल इफ़ेक्ट्स देखने को मिलेंगे क्योंकि वो बहुत सी धार्मिक और पौराणिक फ़िल्में बनाते थे. चाहे वो 'श्री कृष्णा जन्म' हो या 'कालियमर्दन'. 100 साल पहले दादा साहेब ने पर्दे पर जादू किया जब कंप्यूटर नहीं थे. पहले जब धार्मिक फ़िल्में बनती तो धागे से चीज़ें उड़ाते , कमाल कैमरे से होता . सारा खेल था भ्रम का. पहले स्पेशल इफ़ेक्ट्स - आवाज़, लाइट और कैमरे के लेंस का सहारा लेती. "
'श्री कृष्णा जन्म' में कंस का एक पात्र है और एक दृश्य में कंस का माथा कट कर फ्रेम के बाहर निकल जाता है और वापस आता है. 'कालियमर्दन' में भारतीए सिनेमा में पहले अंडरवॉटर दृश्य है. उनकी बेटी बनी बाल कृष्ण जो पानी में जाके नाग राक्षस को हराके और बाहर आता है.
2)वो पहली फ़िल्म जो महात्मा गाँधी ने देखी
महात्मा गाँधी ने जो पहली फ़िल्म देखी वो थी 1943 की 'राम राज्य' जिसके निर्देशक थे विजय भट्ट और इसमें थीं नूतन की मां शोभना समर्थ और प्रेम अदीब जिन्होंने राम और सीता का किरदार निभाया. ये पहली भारतीय फ़िल्म थी जो अमरीका में भी दिखाई गई थी.इस फ़िल्म में स्पेशल इफ़ेक्ट्स इस्तेमाल हुए.
3) फ़ियरलेस नाडिया की फ़िल्में
फ़ियरलेस नाडिया की फ़िल्में देखिए, 'हंटर वाली' और 'डायमंड क्वीन'. यहाँ एडिटिंग के बलबूते एक अलग अनुभव आया.
4) उड़न खटोला
'उड़न खटोला' साल 1955 में बनी एक हिंदी फ़िल्म थी जिसके निर्माता संगीतकार नौशाद थे. फ़िल्म में दिलीप कुमार, निम्मी, जीवन और टुनटुन थे. 'उड़न खटोला' का गाना आपको याद होगा - मेरा सलाम लेजा, उड़न खटोले वाले राही. गाने में जो विमान गिरता है वो इफ़ेक्ट है .
5)जब फ़िल्म के किरदार हुए गायब
1964 की 'मिस्टर एक्स इन बॉम्बे' और 1987 की 'मिस्टर इंडिया 'में फ़िल्म के हीरे गायब हुए. 'मिस्टर इंडिया' एक साइंस-फ़िक्शन सुपरहीरो फ़िल्म थी जिसका निर्देशन शेखर कपूर ने किया. फ़िल्म में अनिल कपूर, श्रीदेवी और अमरीश पूरी थे. ये फ़िल्म साल 1987 में सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फ़िल्म बनी. ये सलीम ख़ान और जावेद अख़्तर की एक साथ लिखी हुई आख़िरी फ़िल्म थी.
6)डबल रोल फ़िल्में
चाहे वो दिलीप कुमार की 'राम और श्याम' हो, श्रीदेवी की 'चालबाज़' हो, हेमा मालिनी की 'सीता और गीता' या संजीव कुमार की 'नया दिन नई रात', इन फ़िल्मों में स्पेशल इफ़ेक्ट्स इस्तेमाल हुए.
7) सुपर हीरो फिल्में
चाहे वो जैकी श्रॉफ़ की 'शिवा का इंसाफ़' हो या हृतिक रोषन की 'कृष' हो, जहाँ भी सुपर हीरो आया साथ में इफ़ेक्ट्स लाया. 'शिवा का इंसाफ़' पहली हिन्दी फ़िल्मों में से थीं जो हिन्दी सिनेमा में थ्री डी में दिखाई गई.
8) थ्री डी फिल्में
'शिवा का इंसाफ़' के साथ हुई शुरुआत. 'छोटा चेतन' साल 1998 में बनी थी और यह 1984 की मल्यालम फ़िल्म 'माय डियर कुट्टीचथन' को डब कर बनाई गई थी और ये एक थ्री डी फ़िल्म थी. फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर हिट साबित हुई. फ़िल्म के कुछ अन्य दृश्य बाद में उर्मिला मातोंडकर, सतीश कौशिक और शक्ति कपूर के साथ फ़िल्माए गए.
ज़बरदस्ती के इफ़ेक्ट्स
अमृत गंगर कहते हैं , "स्पेशल इफ़ेक्ट्स आजकल कुछ ज़्यादा इस्तेमाल होते हैं. स्पेशल इफ़ेक्ट्स एक अहम हिस्सा है पर एक फ़िल्म को अकेले नहीं चला सकती. कहानी, निर्देशन सब अहम हैं. आजकल लोग इतना कुछ देख चुके हैं कि उनको हैरान करना आसान नहीं. इसलिए कहानी पर भी ध्यान देना होगा और हर जगह बिना वजह प्रयोग का मतलब नहीं. तभी बहुत पैसों की लागत से बनी फ़िल्में भी डूब जाती हैं. ये पी़ढ़ी 'टाईटैनिक' देख चुकी है और इंटरनेट के माध्यम से बहुत कुछ जानती है."
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