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    'ओम शांति ओम' चले मगर "सांवरिया" ज़्यादा चले

    By Staff
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    रणबीर और सोनम के साथ मेनस्ट्रीम सिनेमा और आर्ट फिल्मों का संगम कर “सांवरिया" के माध्यम से पर्दे पर लाने वाले बहादुर संजय लीला भंसाली , आज के चुनिंदा निर्देशकों में से एक है. यह स्वयं संजय भी मानते हैं. तो आइए “सांवरिया" के साथ उनकी बहादुरी के बारे में जानें.

    फिल्म “सांवरिया" रिलीज़ होने जा रही है किसी तरह की कोई घबराहट महसूस हो रही है ?
    बिल्कुल नहीं. घबराहट मुझे फिल्म बनाने से पहले होती है बाद में नहीं. इस वक़्त मैं काफी अच्छा महसूस कर रहा हूं. फिल्म बनने से पहले मैं सोचता रहता हूं फिल्म कैसी बनेंगी, लोगों को कैसी लगेगी, मेरी पिछली फिल्म से अच्छी बनेगी या नहीं. यह सब बातें मुझे नर्वस कर देती हैं. फिल्म बनने के बाद मिलने वाली संतुष्टी मेरे लिए सबसे बडी बात है. सफलता से कभी न मैं अति उत्साहित होता हूं और न असफलता से घबराता हूं.
    पहली बार नए कलाकारों के साथ काम करने का फैसला कहानी के आधार पर लिया था या कोई और वजह है ?
    मैंने अपनी सभी पिछली फिल्मों में बडे बडे कलाकारों के साथ काम किया है. पिछली फिल्म “ब्लैक" में महानायक अमिताभ बच्चन और रानी मुखर्जी तक पहुंचने के बाद मुझे लगा अब अगला क्या ? या तो मैं ऑफ बीट फिल्म बनाता या फिर मेन स्ट्रीम सिनेमा की तरफ दुबारा लौटूं. “ब्लैक" के बाद पाई हुई जगह को बरकरार रखने के लिए मैंने नए कलाकारों को चुना. इससे मैंने स्वयं को कुछ नई चुनौतियां दी. अब तक की अपनी चार फिल्मों से अलग हटकर फिल्म बनाने की चुनौती खुद को देते हुए मैंने “सांवरिया" की तरफ कदम बढाया. इन दोनों ने मेरे साथ असिस्टैंट डाइरेक्टर के तौर पर भी काम किया है. हालांकि यह दोनों जब मेरे पास आए थे तभी मैं समझ गया था कि यह मुझसे काम सीखने नहीं मेरी फिल्मों में काम करने आए हैं जो इन्होंने स्क्रीन टेस्ट के दौरान ही साबित कर दिया. मुझे लग रहा है नए लोगों के साथ काम करके मैं एक बार फिर जवान हो गया हूं.

    रणबीर और सोनम के टैलेंट को आपने पहले ही परख लिया था. जब उनके साथ काम शुरू किया तो क्या महसूस किया ?
    मेरे अनुसार उन्हें कोई एक्टिंग वेक्टिंग नहीं आती थी. सो मैं उन्हें अपनी पसंदीदा फिल्मों के हीरो की एक्टिंग करने को कहता था. एक्टिंग की ट्रेनिंग के बाद मैंने उन्हें डांस ट्रेनिंग, शब्दों के उच्चारण की ट्रेनिंग दी. उनमें टैलेंट है मगर उसका उपयोग करना मैंने सीखाया. उनमें सीखने की ललक थी इसलिए मैं जो भी कहता वे दूसरे पल करके दिखा देते. यही वजह है मुझे जीतना आता था मैंने उन्हें सीखाने की पूरी कोशिश की. डेढ साल तक यह सिलसिला चला उसके बाद शूटिंग शुरू की गई. इतने दिनों में वह काफी कुछ सीख चुके थे. कई बार उनकी कुछ गलतियों पर मुझे गुस्सा आ जाता. मेरे गुस्से का मीडिया ने काफी गलत प्रचार किया. आप समझ सकते हैं कि जिस पर हमनें डेढ साल बर्बाद किए हैं यदि शूटिंग के दौरान वह गलती करे तो गुस्सा नहीं आएगा. आज अगर मैं उन्हें बच्चा कहकार उनकी गलतियों को नज़र अंदाज़ करता तो आगे चलकर वे और गलतियां करते. उन्होंने मेरे साथ चार साल गुज़ारे. मैं नहीं चाहता था कि उनके शुरूआती चार साल बेकार चले जाएं.

    रणबीर और सोनम में आपको कितनी संभावनाएं नज़र आती हैं ?
    मुझे लगता है यदि उनमें संभावनाएं नहीं होती तो मैं उन्हें लेता ही नहीं. दोनों लंबी रेस के घोडे हैं क्योंकि दोनों खूबसूरत हैं, दोनों काफी फोकस्ड हैं. दोनों में टैलेंट है, दोनों काफी अनुशासित हैं और दोनों में सीखने की ललक है. आज के ज़माने में दिमाग तेज़ होना बहुत ज़रूरी है जिनमें वह उस्ताद हैं. वे दूसरे स्टार बच्चों से अलग हैं उनमें अपने मां बाप के नाम का घमंड नहीं है. वे अपने माता पिता का सिर नीचा नहीं गर्व से ऊंचा करना चाहते हैं. उनकी यह खासियत उन्हें विशेष बनाती है.

    नए कलाकार, नए संगीतकार और नए गायक को लेकर फिल्म बनाते वक़्त कोई रिस्क नहीं लगा ?
    क्या पूराने लोगों को लेकर फिल्म बनाते वक़्त रिस्क नहीं होता ? टैलेंट, टैलेंट ही होता है जो इंसान अपने साथ लाता है. हां अनुभव समय के साथ आता है. अगर मैं किसी प्रतिष्ठित कलाकार, संगीतकार या गायक को लेता तो वह मुझे अपना किमती समय नहीं देते. मगर इन सबनें मुझे अपना दो साल का पूरा वक़्त दिया. नए ही नहीं पूराने गायक कुणाल और श्रेया भी संगीत बनने के दौरान साथ में बैठे रहते थे. दो सालों की मेहनत ने “सांवरिया" के गीतों में जान डाल दी है. “सांवरिया" मेरा सपना है और सबने मेरे सपने को जीने में मेरी मदद की.

    क्या वजह है कि इस बार आपने इस्माइल दरबार की जगह मोंटी शर्मा को मौका दिया ?
    मोंटी के साथ इससे पहले मैंने “देवदास" और “ब्लैक" में भी काम किया है. नए कलाकार थे, नए गायक थे सो मैंने सोचा क्यों न नए संगीतकार को मौका दिया जाए. मैं चाहता था कुछ नया संगीत बनें वह भी पूरी ईमानदारी से. इस्माइल के साथ मेरा भाई - दोस्त का रिश्ता बन गया था. कई बार दोस्ती के कारण वह मेरा काम टाल जाता था जो मैं इस फिल्म में नहीं चाहता था. मैं समझता हूं जब इंसान का दिमाग काम से हटकर ग्लैमर की तरफ चला जाता है तो उसके काम में वह बात नहीं रह जाती जो उसे लोगों से अलग करे.

    आपको “सांवरिया" का कांवरिया कहा जाता है. एक तरफ नए कलाकारों की ज़िम्मेदारी है और दूसरी तरफ लोगों की भारी अपेक्षाएं हैं. यदि आपको वन मैन शो कहा जाए तो ?
    मुझे लगता है मुझे वन मैन शो कहना गलत होगा. यह सच है कि मैंने नए कलाकारों को मौका दिया मगर उन्होंने भी तो खुद को साबित किया. जहां तक सोनम और रणबीर की बात है उन्हें एक्टिंग सीखाना मेरा काम था स्टारडम तो वे लेकर पैदा हुए थे. मेरे अनुसार अच्छा एक्टर और अच्छा स्टार दोनों अलग बात है. मेरे ऊपर उन्हें अच्छा एक्टर बनाने का भार था. उमंग ने सारे सेट को काफी खूबसूरती से बनाया था. यह भारत की पहली फिल्म है जिसकी पूरी शूटिंग हमने स्टूडियो में सेट बनाकर पूरी की. इतने बडे सेट को खूबसूरती से बनाने का भार उमंग पर था. “खामोशी" और “हम दिल दे चुके सनम" के बाद इस फिल्म में और अच्छे संगीत को प्रस्तुत करने का भार मोंटी पर था. रणबीर और सोनम दोनों के पिता बेहतर हीरो रह चुके हैं. उन पर और बेहतर होने का भार था. हम सब पर भार था मगर उस भार को हम सबनें काफी पॉसिटीवलि लिया.

    कहा जाता है कि कमाल अमरोही के बाद आप दूसरे शख्स है जिन्हें पर्फेक्शनिस्ट कहा जा सकता है. आपका क्या ख्याल है ?
    मुझे नहीं मालूम. मैं समझता हूं हर इंसान में एक पर्फेक्शनिस्ट होता है. मैं अब भी “पाकिज़ा" देखता हूं तो बेहोश हो जाता हूं. एक एक शॉट में कमाल अमरोही जी का गुरुर, एरोगेंस तथा आत्मविश्वास झलकता है. यह सब चीज़ें तो मुझे लगता है मुझमें मेरी चार पांच फिल्मों के बाद ही आएगा. मुझमें सबसे बडा गुण बर्दाश्त करने का है. मैं मैं आपको तब तक झेल सकता हूं जब तक कि आपको कंविंस न करूं. अपनी फिल्मों के साथ मैं समझौता नहीं कर सकता क्योंकि यह फिल्में ज़िंदगी भर के लिए पर्दे पर आने वाली है. मैं नहीं चाहता कि आज से पचास साल बाद भी जब मैं अपनी फिल्में देखूं तो मुझे लगे कि मैंने इस फिल्म के साथ कहीं बेइमानी की है.

    कहते हैं कलात्मकता का अंत नहीं है, आप कहां पर जाकर संटुष्ट होते हैं ?
    मैं संटुष्ट होता ही नहीं. हर रात को घर पहुंचने के बाद मैं स्वयं को कोसता हूं कि मैंने यह सीन ठीक से नहीं लिया, इसको और अच्छे से किया जा सकता था. अगले दिन इसी सोच के साथ मैं सेट पर जाता हूं और दुगुना मेहनत करता हूं. यह क्रम बरसों से जारी है. जो चीज़ मेरे दिल को अच्छी लगती हैं मैं वही करता हूं. साथ ही दूसरे की क्षमता भी देखता हूं कि वह कब तक कर सकता है क्योंकि सब मेरी तरह तो नहीं हो सकते. हैं ना. मुझे याद है एक बार मोंटी काफी परेशान हो गया. उसने मुझसे कहा कि मैं जा रहा हूं. तब मैंने उसे समझाया कि आज तुझे मेरी बातें बुरी लग रही है मगर तू सोच जब दो साल बाद तेरा संगीत लोगों के सामनें आएगा अतब तू मुझे याद करेगा. खुशी है उसने मेरी बात को बहादुरी से लिया.

    आपके अनुसार “खामोशी" के संजय लीला भंसाली और “सांवरिया" के संजय लीला भंसाली में कितना फर्क है ?
    "खामोशी" के संजय लीला भंसाली को लोगों ने रिजेक्ट कर दिया था और “सांवरिया" के संजय लीला भंसाली पर लोगों का विश्वास बढ गया है. “खामोशी" में मेरे पास दर्शक नहीं थे मगर आज मेरी फिल्मों का दर्शक वर्ग है. “खामोशी" के वक़्त मैं काफी कमज़ोर था आज मैं बहुत मजबूत महसूस कर रहा हूं. आज मैं अधिक पॉलिश्ड हो गया हूं. “खामोशी" और “सांवरिया" के संजय लीला भंसाली में एक बात कॉमन है मैं तब भी मेहनत करता था और आज भी मेहनत करता हूं. आज भी उतना ही सिंपल और सेंसिटीव हूं.

    सलमान का कहना है कि आपकी फिल्में हमेशा ओवर बजट हो जाती है. पैसों की परेशानी आपको परेशान नहीं करती ?
    मैंने पहले भी कहा है मैं अपनी फिल्मों के साथ किसी तरह का समझौता नहीं कर सकता. मैं हर पल को जीने में यकीन करता हूं. मैं नहीं चाहता कि जब पचास साल बाद मैं अपनी फिल्म देखूं तो मुझे लगे कि पैसों के कारण मैंने अपने सपनों के साथ बेइमानी की है. सिर्फ पैसों के मामले में ही नहीं समय, जगह, सेट, संगीत और डांस किसी भी मामले में मुझे अपने फैसले पर पछताना पडे. मैं चाह्ता हूं मेरी फिल्म की हर चीज़ लोगों के लिए यादगार बने.

    क्या यह सच है कि “सांवरिया" के माध्यम से न सिर्फ आप मनोरंजन कर रहे हैं बल्कि कोई संदेश भी दे रहे हैं ?
    “सांवरिया" एक बहुत खूबसूरत प्रेम कहानी है. इसे मैंने अपनी अन्य फिल्मों से काफी हटकर बनाई है. यह पहली फिल्म है जिसकी अवधि दो घंटे छ: मिनट है वह भी आठ घंटो के साथ. “ब्लैक" के बाद लोगों ने मेरा उत्साह काफी बढाया. जिस साल “ब्लैक" रिलीज़ हुई थी उस साल “ब्लैक" के साथ साथ “इकबाल", “पेज 3" तथा “गैंगस्टर" चली जिनमें मेनस्ट्रीम सिनेमा की कोई बात नहीं थी. फिर भी लोगों ने उन फिल्मों को काफी सराहा. इससे यह बात समझ में आ गई कि अब लोग कुछ अलग देखना चाहते हैं. मुझे यकीन है कुछ अलग देखने की चाह रखने वाले दर्शकों के लिए “सांवरिया" बेहतरीन फिल्म साबित होगी.

    रणबीर और सोनम के साथ सलमान और रानी मुखर्जी को लेना क्या सही है ?
    सलमान और रानी कहानी की मांग थी. उनका सपोर्ट काफी ज़रूरी था. अगर वह रोल कोई प्रतिष्ठित कलाकार नहीं करता तो बात नहीं बनती. रानी और सलमान ने जो मेरे लिए किया है या रणबीर और सोनम के लिए किया है वह बहुत बडी बात है. यह बात मैं पूरी ज़िंदगी नहीं भूल सकता कि उन्होंने बच्चों को न सिर्फ सपोर्ट किया बल्कि सीखाया भी. उन्हें कभी टेंशन में आने नहीं दिया. जिस तरह उन्होंने सोनम और रणबीर को बडा होते हुए देखा, उसी तरह उन्हें प्यार भी दिया.

    सुना है यह कहानी इंग्लिश साहित्यकार दोस्तोवस्की की लघु कथा “व्हाइट नाइट्स" पर आधारित है ?
    जी हां. फिल्म “ब्लैक" के बाद मैंने दोस्तोवस्की की यह कहानी पढी थी. इसके बाद मैंने कई कहानियां पढी मगर उनमें वह बात न थी जिस पर फिल्म बनाई जा सके. इस कहानी में ढेर सारे जज़्बात के साथ साथ मूवमेंट और परिस्थितियां काफी दिलचस्प थी. इसके किरदार दिल को छूने वाले थे. इतना सब होने के बावजूद इसकी कहानी काफी सिंपल थी. इसका मुख्य किरदार किसी भी हिंदी फिल्म का हीरो हो सकता है. इस आधार पर हमनें यह फिल्म बनाई जिसमें हर फिल्म का कोई भी गाना जंचेगा. इसमें शुद्ध प्यार था जो हर भारतीय फिल्मों का आधार है. इसे भारतीयपन के साथ कमर्शियल तरीके से बनाने की चुनौती थी जिसे मैंने पूरी की.

    इस फिल्म के संगीत पर आपने दो साल लगाकर 17 - 18 गाने बनाए थे. दस गानें फिल्म में इस्तेमाल करने के बाद बाकि के गानों का क्या किया ?
    उन गानों की एक सी डी बनाकर मैंने अपने पास रखी है हर रोज़ रात को मैं वह सी डी सुनता हूं और सोचता हूं कि यह गाने तो अच्छे हैं फिर इन्हें मैंने फिल्म में क्यों नहीं लिए. मेरा बस चलता तो मैं हर सीन में एक गाना रखता मगर मैं ऐसा नहीं कर सकता. हो सकता है जो गाने अभी नहीं सिलेक्ट हुए वह मेरी अगली फिल्म में सिलेक्ट हो जाए. जैसे “थोडा बदमाश" गीत मैंने “देवदास" के वक़्त बनाया था और उसका इस्तेमाल इस फिल्म में किया. वैसे यह ज़रूरी नहीं कि अह्र गीत को फिल्म में इस्तेमाल किया जाए. मैं उन गानों को अहमियत देता हूं जो देखने के साथ साथ फिल्माए जाने के दौरान भी दिलचस्प लगे. इस तरह के गीत सिर्फ नासिर हुसैन साहब ने बनाए जिसे देखते वक़्त जितना इंजॉय किया जाता है उतना ही इंजॉय उन्होंने उसे बनाते वक़्त भी किया.

    आपकी फिल्म “सांवरिया" में आर. के. का बैनर नज़र आता है. क्या वजह है ?
    उनके नाम का मेरी फिल्म में इस्तेमाल होना मुझे आशिर्वाद है. क्या किसी ने यह सोचा था कि काफी लोगों को लॉच करने वाले राज कपूर के चौथे पीढी को मैं लॉच करूंगा. याह मेरे लिए गर्व की बात है कि जिनका मैं फैन रहा हूं उनका पर पोता मेरी फिल्म से अपने करियर की शुरूआत कर रहा है. यही वजह है फिल्म में रणबीर का नाम मैंने रणबीर राज रखा है. मुझसे कभी राज कपूर के परिवार ने कहा नहीं कि आप यह करें या वो करें, यह तो मेरी तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि है.

    “सांवरिया" की टक्कर “ओम शांति ओम" के साथ है. क्या कहेंगे ?
    मैं टक्कर वक्कर नहीं मानता. शाहरूख और फरहा अलग तरह के फिल्मकार हैं और मैं अलग तरह का फिल्मकार हूं. उनके अपने दर्शक हैं और मेरे अपने दर्शक है. शाहरूख और फरहा मेरे दोस्त है. सो दोस्तों के साथ मेरी कोई टक्कर नहीं है. हां यह ज़रूर चाहूंगा कि उनकी फिल्म चले मगर मेरी ज़्यादा चले.

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