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    प्यार करो तो साधना की तरह निभाओ: सैफ़

    By Staff
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    प्यार करो तो साधना की तरह निभाओ: सैफ़

    करियर के शुरुआती दौर में बहुत से लोगों ने सैफ़ अली खान को गंभीरता से नहीं लिया. उनकी फ़िल्में भी कुछ ख़ास नहीं चल पाईं लेकिन दिल चाहता है और कल हो न हो जैसी फ़िल्मों में लोगों ने उनकी प्रतिभा की झलक देखी.

    फिर 2004 में आई हम तुम में राष्ट्रीय पुरस्कार जीतकर सैफ़ ने ख़ुद को साबित कर दिखाया.

    उसके बाद कभी ओमकारा का लंगड़ा त्यागी तो कभी रेस का रणवीर सिंह बनकर सैफ़ ने अभिनय का लोहा मनावाया. अब फ़िल्म 'लव आजकल' से वे निर्माता बन गए हैं.

    बीबीसी संवाददाता वंदना ने सैफ़ अली खान से बातचीत की.

    बतौर अभिनेता लोग कहते हैं कि सैफ़ मझे हुए बेहतरीन एक्टर हैं. फ़िल्म लव आजकल के साथ अब आप निर्माता भी बन गए हैं. कैसा अनुभव रहा?

    काफ़ी अलग सा एहसास हो रहा है. एक अलग किस्म की ज़िम्मेदारी होती है लेकिन मैं बहुत ख़ुश हूँ. हमारी टीम भी बहुत अच्छी थी. मेरे पार्टनर ने भी काफ़ी काम संभाले रखा. मैने तो ज़्यादातर बतौर अभिनेता ही काम किया. लेकिन लोगों ने प्रोडक्शन में मेरी बहुत मदद की. कुल मिलाकर एक मज़ेदार अनुभव रहा.

    बतौर अभिनेता तो ऐसा होता है कि आपने एक्टिंग की, शॉट दिए और काम ख़त्म लेकिन बतौर प्रोड्यूसर तो शुर से आख़िर तक सब ज़िम्मेदारी आपकी ही है.दबाव महसूस हुआ?

    दवाब तो था लेकिन बहुत मज़ा भी आया. ज़िम्मेदारी उठाने के लिए ही तो मैंने ये काम किया है. मैं चाहता था कि मैं जीवन में और ज़िम्मेदारी उठाऊँ.

    सैफ़ अली खान लव आजकल में क्या किरदार निभा रहे हैं?

    मेरे दो किरदार हैं. एक है जय जिसे प्यार में भरोसा नहीं है. उसे लगता है कि हमें ज़िंदगी में बहुत प्रैक्टिकल होना चाहिए. लेकिन फिर उसे प्यार हो जाता है और उसे समझ में आता है कि माजरा क्या है.

    दूसरा किरदार है जिसमें मैं युवा ऋषि कपूर का रोल कर रहा हूँ जो सरदार है, वीर सिंह. उसे प्यार में विश्वास है और प्यार के लिए वो कुछ भी कर सकता है. ये किरदार 60 के दशक का है. हम फ़िल्म में तुलना करते हैं कि प्यार तब कैसे होता था और अब कैसे होता है. जैसे कि क्रिकेट..उस ज़माने में टेस्ट क्रिकेट होता था और आज ट्वेन्टी-20 है. उसी हिसाब से आजकल प्यार भी फास्ट और इंस्टेंट हो रहा है.

    काफ़ी फब रह हैं उस लुक में...

    जी हाँ बहुत लोगों ने इस लुक पर काम किया है और मुझे लगता है कि अच्छा लग रहा है.

    दो अलग-अलग टाइम फ्रेम की लव स्टोरी है इस फिल्म में. क्या समय के साथ प्यार करने का अंदाज़ बदला है?

    प्यार करने का अंदाज़ तो बदल सकता है लेकिन प्यार करने का एहसास तो नहीं बदल सकता. जब ऊंगली जल जाए तो आज भी वैसे ही दर्द होगा जैसे पहले होता होगा, प्यार भी वैसा ही है.

    दीपिका पादुकोण के साथ आपकी पहली फ़िल्म है.कैसा रहा उनके साथ काम करना?

    जब इम्तियाज़ अली ने फ़िल्म लिखी थी तो उनके दिमाग़ मे दीपिका का नाम आया. बतौर निर्माता हमारा फ़र्ज़ बनता है कि जो निर्देशक की सोच हो उसे पर्दे पर उतारा जाए.

    जब कोई अभिनेता फ़िल्म साइन करता है तो लोग अकसर पूछते हैं कि क्या सोचकर फिल्म साइन की. लेकिन एक प्रोड्यूसर के नाते आप कैसे प्रोजेक्ट्स को चुनेंगे?

    ये बहुत सरल है. मैं सोचता हूँ कि क्या मेरे सामने जो कहानी है, वो बननी चाहिए कि नहीं बननी चाहिए. मैं सोचता हूँ कि अगर कोई और अभिनेता फ़िल्म में काम कर रहा हो तो क्या मैं इस फ़िल्म को देखना पसंद करुँगा. अगर जवाब है हाँ तो मैं इस फ़िल्म का निर्माण करूँगा.

    फ़िल्म का नाम है लव आजकल.किसी भी रिश्ते को सफल बनाने के लिए आपके हिसाब से क्या बातें ज़रूरी हैं?

    हर रिश्ते को निभाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है, निष्ठा की ज़रूरत होती है. प्यार में आसानी से हार नहीं माननी चाहिए. और हाँ शादी बहुत सोच-समझकर करनी चाहिए, जल्दबाज़ी में नहीं. अगर किसी के साथ आप ज़िंदगी जोड़ रहे हैं तो रिश्ते को निभाइए, प्यार से रहें. कोशिश करते रहें कि उस रिश्ते को एक साधना की तरह आगे बढ़ाइए.

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