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    अमरीका में दक्षिण एशियाई फ़िल्मों की धूम

    By सलिम रिज़वी
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    दक्षिण एशियाई अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव की शुरुआत नंदिता दास निर्देशित फ़िल्म 'फ़िराक़' से हुई.
    अमरीका में दक्षिण एशियाई फ़िल्मों की धूम है और न्यूयार्क में एक महोत्सव के दौरान भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका की फ़िल्में दिखाई जा रही हैं.

    न्यूयॉर्क में एक ऐसा ही दक्षिण एशियाई फ़िल्म महोत्सव चल रहा है. इसमें भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों की करीब 50 फ़िल्में दिखाई जा रहीं हैं.

    ये फ़िल्में दक्षिण एशियाई मूल के फ़िल्मकारों ने बनाई हैं और इनमें से बहुत से कलाकार और फ़िल्मकार दक्षिण एशिया से बाहर अमरीका और यूरोपीय देशों में रहते हैं.

    'फ़िराक़' से शुरुआत

    इस पांचवें दक्षिण एशियाई अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में भारतीय फ़िल्म उद्योग या बॉलीवुड की भी कई फ़िल्में शामिल हैं. नंदिता दास की पहली बार निर्देशित फ़िल्म 'फ़िराक़' से इस महोत्सव की शुरुआत हुई.

    यह एक ऐसी फ़िल्म है कि जिसमें आम लोगों के सारे भाव मौजूद हैं. और यह हर जगह के लोगों की विभिन्न भावनाओं को दर्शाती है क्योंकि दुनिया के किसी भी देश के लोग हों मानव भावनाएँ और इच्छाएँ एक जैसी होती हैं. हिंसा, त्याग, मानवता सभी प्रकार के भाव दिखाए गए हैं इस फ़िल्म में
    न्यूयॉर्क के इलाक़े में रहने वाले बहुत से दक्षिण एशियाई मूल के लोगों को इस फ़िल्म का इंतिज़ार था. और बुधवार को जब शाम का शो दिखाया जाना था तो हॉल के बाहर सैकड़ों की संख्या में लोग कई घंटे तक लाइन में खड़े थे. नंदिता दास ख़ुद भी इस शो को देखने पहुंची थीं.

    फ़िराक फ़िल्म, जो करीब डेढ़ घंटे लंबी है, उसमें गुजरात में वर्ष 2002 के दंगों के बाद की दास्तान सुनाई गई है. इस फ़िल्म में नसीरुद्दीन शाह, परेश रावल, दीप्ति नवल, संजय सूरी और टिस्का चोपड़ा ने काम किया है.

    फ़िल्म की निर्देशक नंदिता दास अपनी फ़िल्म के बारे में कहती हैं, "यह एक ऐसी फ़िल्म है कि जिसमें आम लोगों के सारे भाव मौजूद हैं और यह हर जगह के लोगों की विभिन्न भावनाओं को दर्शाती है क्योंकि दुनिया के किसी भी देश के लोग हों मानव भावनाएँ और इच्छाएँ एक जैसी होती हैं. हिंसा, त्याग, मानवता सभी प्रकार के भाव दिखाए गए हैं."

    पहली बार फ़िल्म निर्देशन में हाथ आज़नमाने वाली नंदिता दास कहती हैं कि फ़िल्म का निर्देशन करना उनको फ़िल्मों में ऐक्टिंग करने से बहुत कठिन लगता है.

    वह कहती हैं, "फ़िल्म को डायरेक्ट करना बच्चे को जन्म देने जैसा है. जब तक पूरी फ़िल्म बनकर तैयार न हो जाए पता नहीं होता कि फ़िल्म कैसी होगी. मुझे तो निर्देशन के सामने ऐक्टिंग करना बहुत आसान लगता है."

    ' रामचंद पाकिस्तानी' भी

    फ़िराक के आलावा भारत से मधुर भंडारकर की फ़िल्म 'फ़ैशन' कुनाल कपूर की 'द प्रेसिडेंट इज़ कमिंग', मज़हर कामरान की 'मोहनदास' और सुशील राजपाल की 'अंतर्द्वंद' शमिल हैं.

    एक हफ़्ते चलने वाले इस महोत्सव में पाकिस्तानी मूल के फ़िल्मकारों में महरीन जब्बार की ' रामचंद पाकिस्तानी', जाफ़र महमूद की 'शेड्ज़ ऑफ़ रे' और इरम बिलाल की ' मरवा' फ़िल्में भी शामिल हैं.

    महोत्सव के आयोजकों का कहना है कि दक्षिण एशियाई मूल के फ़िल्मकार इस महोत्सव के ज़रिए अपने काम को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाने और अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका मिलता है.

    हुनर दिखाने का मौका पाकिस्तानी मूल के फ़िल्मकारों में महरीन जब्बार की ' रामचंद पाकिस्तानी' दिखाई गई.

    महोत्सव के अध्यक्ष शिलेन अमीन कहते हैं, "हम चाहते हैं कि दक्षिण एशिया के फ़िल्म से जुड़े जो भी कलाकार, फ़िल्मकार, निर्देशक को अपने हुनर दिखाने का मौका मिले. इस साल के महोत्सव में विभिन्न विष्यों और मुद्दों पर आधारित फ़िल्में दिखाई जा रही हैं जिससे फ़िल्मप्रेमियों को भी बेहतरीन फ़िल्मों को एक ही जगह देखने का मौका मिलेगा और वह आनंद उठाएँगे."

    हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी इस वर्ष समारोह में दक्षिण एशिया के फ़िल्मकारों की या दुनिया भर में फैले दक्षिण एशियाई मूल के कलाकारों की फ़िल्में तो शामिल हैं ही इनके अलावा इस महोत्सव में दक्षिण एशिया के बारे में बनाई गई फ़िल्में भी शामिल की गई हैं.

    महोत्सव के अंत में एक ज्यूरी के ज़रिए चुनी गई और दर्शकों की पसंद की फ़िल्मों को पुरस्कृत भी किया जाएगा. इनमें तीन फ़िल्मों को दर्शकों के पसंद के मुताबिक पुरस्कृत किया जाएगा.

    इसके अलावा ज्यूरी की चुनी गई फ़िल्मों को नौ अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया जाएगा.

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