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    देशभक्ति की यात्रा है 'रोड टू संगम'

    By Staff
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    देशभक्ति की यात्रा है 'रोड टू संगम'

    दुर्गेश उपाध्याय

    बीबीसी संवाददाता, मुंबई

    अब तक कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में अपना जादू बिखेर चुकी फ़िल्म ‘रोड टू संगम’ अब भारत में प्रदर्शन के लिए तैयार है.

    परेश रावल और ओमपुरी के अभिनय से सजी इस फ़िल्म में गांधी जी के सिद्धांतो और मूल्यों को दिखाने की कोशिश की गई है.

    ऐसे में जब कि कमर्शियल फिल्में लोगों के जेहन में छाई हुई हैं, ‘रोड टू संगम’ फ़िल्म का आना एक महज इत्तफाक़ ही कहा जा सकता है.

    काफ़ी लंबे समय के बाद एक ऐसी फिल्म दर्शकों तक पहुंच रही है जिसका एक ऐतिहासिक संदर्भ है.

    ‘रोड टू संगम’ की कहानी एक मुस्लिम मैकेनिक हशमत उल्लाह के इर्द-गिर्द घूमती है जिसके पास उस ट्रक का इंजन रिपेयर करने के लिए आता है जिसमें कभी महात्मा गांधी की अस्थियों को इलाहाबाद के संगम पर विसर्जित करने के ले जाया गया था.

    स्थिति तब गंभीर हो जाती है जब शहर में एक बम धमाका हो जाता है और पुलिस मुस्लिम युवकों की धरपकड़ शुरु करती है.

    इसके खिलाफ़ कुछ मुस्लिम नेता खड़े होते हैं और वो उस इंजन की मरम्मत का विरोध करते हैं.

    अब हशमत उल्लाह के सामने सबसे बड़ी मुश्किल है कि क्या वो उस इंजन की मरम्मत करे जिससे किसी हिंदू की अस्थियों को लाया गया था या अपनी क़ौम का साथ देते हुए उस इंजन की मरम्मत करने से इनकार कर दे.

    सम्मान

    फिल्म में हशमत उल्लाह की भूमिका निभाने वाले अभिनेता परेश रावल कहते हैं,“जब मेरे पास डाइरेक्टर अमित राय इस कहानी को लेकर आए थे तब पहली बार इसे सुनकर ही मुझे ये काफ़ी पसंद आई थी. मैने उन्हें उस कहानी को बताने के लिए केवल 10 मिनट का समय दिया था लेकिन जब उन्होंने इसे बताना शुरु किया तो हम दो घंटे तक इसके बारे में बात करते रहे.”

    परेश कहते हैं कि कहानी में कई ऐसे मोड़ हैं जो उनके दिल को छू गए.

    पहली बार किसी फ़िल्म का निर्देशन कर रहे अमित राय ने बीबीसी को बताया, “मैंने एक न्यूज़ चैनल पर स्टोरी देखी जो एक ऐसे इंसान के बारे में थी जिसके पास उस ट्रक का इंजन आया था जिसे गांधी जी की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए इस्तेमाल किया गया था और इत्तफाक़ से वो व्यक्ति मुसलमान था. वहीं से इस फ़िल्म का विचार मेरे दिमाग में आया था.”

    भारत में रिलीज़ होने से पहले रोड टू संगम को कई अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सवों में दिखाया जा चुका है और इसने कई पुरस्कार भी जीते हैं.

    अमित राय कहते हैं कि भारत में इसे मामी (मुंबई इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल) ऑडिएंस च्वाइस एवार्ड मिला, फिर ये दक्षिण अफ्रीका में दिखाई गई थी जहां इसे दो पुरस्कार मिले थे जिसमें एक सर्वश्रेष्ठ नवोदित निर्देशक का पुरस्कार मिला था.

    लॉस एंजेलिस में इसे बेस्ट फ़ॉरेन फिल्म और बेस्ट म्यूजिकल स्कोर का पुरस्कार मिला.

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