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    जब इनाम जीतने पर लता से नाराज़ हुए उनके पिता

    By Bbc Hindi
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    लता मंगेशकर के जन्मदिन के मौक़े पर उनके बचपन की एक कहानी उन्हीं की ज़ुबानी.

    मुझे अपने बचपन की एक कहानी याद है, जिसे मैंने कई मर्तबा याद किया है. आपको भी बताती हूँ. हुआ यह था कि सन 1941 में मास्टर ग़ुलाम हैदर के संगीत-निर्देशन की एक फ़िल्म 'खजांची' प्रदर्शित हुई थी.

    इसके गीत वली साहब ने लिखे थे और स्वयं मास्टर जी ने शमशाद बेगम के साथ इस फ़िल्म में एक गीत 'सावन के नज़ारे हैं' गाया था. यह फ़िल्म अत्यन्त सफल साबित हुई और घर-घर इसके गीत गूँजे.

    lata

    'खजांची' के उस समय इतने रेकॉर्ड बिके कि वह आज भी एक मिसाल है. तो उस समय 'खजांची' वालों ने ही एक संगीत प्रतियोगिता आयोजित की थी. उस प्रतियोगिता में उस प्रत्याशी को पुरस्कार दिया जाना था, जो सबसे बेहतरीन ढंग से 'खजांची' फ़िल्म के गीतों को निर्णायकों के सामने गा सके.

    लता मंगेशकर के साथ 'एक मुलाक़ात'

    स्वर कोकिला लता मंगेशकर को आज भी है गुरु की तलाश

    लता
    Getty Images
    लता

    हौसला अफ़जाई

    उस दौरान मेरे पिताजी जीवित थे और वे किसी कारण से बम्बई गए हुए थे. यह प्रतियोगिता पूना में हो रही थी. मैंने जाकर इसमें अपना नाम दर्ज़ कराया और 114 लड़कियों की पहले से बनी प्रतियोगिता सूची का मैं भी हिस्सा बन गई.

    मुझे आज भी सोचकर हँसी आती है कि स्टेज पर हर लड़की को जब गाने के लिए बुलाया जाता था, तो उसे अपना परिचय देना होता था.

    मेरी बारी जब आई, तो मैंने बड़े ज़ोरदार ढंग से तेज आवाज़ में अपना नाम पुकारा 'लता दीनानाथ मंगेशकर!' (हंसती हैं) सभा में सारे लोगों ने मेरे आत्मविश्वास पर ताली बजाई.

    कुछ तो इसलिए भी बजाई होगी कि मेरे पिता का महाराष्ट्र में बहुत नाम था और उनकी बेटी किसी प्रतियोगिता का हिस्सा बन रही थी, तो लोग ख़ुश होकर शायद हौसला बढ़ा रहे थे.

    लता
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    लता

    पिता , पहले नाराज़ थे

    मैंने प्रतियोगिता की शर्त के लिहाज़ से दो गाने गाए- 'लौट गई पापन अंधियारी' और 'नैनों के बाण की रीत अनोखी'. यह दोनों ही गीत फ़िल्म में शमशाद बाई ने गाए हैं.

    मैं पहला पुरस्कार जीतकर घर लौटी और मुझे पुरस्कार के तहत एक 'दिलरुबा' (वाद्य यंत्र) भेंट किया गया था. बाद में जब मैं मास्टर ग़ुलाम हैदर से मिली, तो मुझे बचपन की यह घटना याद थी. मैंने उन्हें यह बात बताई थी और अपने जीवन का पहला पुरस्कार भी.

    हालाँकि आप यह सुनकर हँसेंगे कि मेरे पिताजी इस बात पर बेहद नाराज़ हुए थे कि मैं इस संगीत प्रतियोगिता में हिस्सा लेने गई थी. उन्हें इस बात से ख़ुशी हुई या नहीं कि मैंने पहला पुरस्कार जीता है, मैं बता नहीं सकती, पर यह ज़रूर हुआ था कि वे इस बात से आहत थे और थोड़े डर भी गए थे कि अगर मैं यह पुरस्कार जीत न पाती, तो उनका सिर शर्म से झुक जाता.

    लता
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    लता

    वे यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते थे कि उनकी बेटी किसी संगीत प्रतियोगिता में गाए और हारकर घर लौटे. मुझे भी कहीं बचपन से ही मन में यह दबा-छिपा अहसास बना रहा है कि मैं सिर्फ़ इसलिए कुछ अलग हूँ कि मैं पण्डित दीनानाथ मंगेशकर की बेटी हूँ. इसमें गुरूर नहीं है, बल्कि अपने गायक पिता के प्रति गर्व का भाव ही है.

    जब लता मंगेशकर बन गई थीं कोरस सिंगर

    ( लता मंगेशकर के जीवन पर यतींद्र मिश्र की राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किताब, 'लता: एक सुर गाथा से' )

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    BBC Hindi
    English summary
    Read an Interesting story about Lata Mangeshkar on her birthday.
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