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    अब मस्त-मस्त भूमिकाएँ नहीं करेंगी रवीना

    By Neha Nautiyal
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    पीएम तिवारी

    बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए, कोलकाता से

    ‘मोहरा’ फ़िल्म में ‘तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त….’ गाने पर अपने डांस के लिए मशहूर रवीना टंडन अब ऐसी भूमिकाएं नहीं करना चाहतीं.

    वे अपनी इमेज़ बदलनी चाहती हैं. यही वजह है कि कोई चार साल बाद फ़िल्मों में वापसी कर रही रवीना ने अब गंभीर भूमिकाएं हाथ में ली हैं.

    राजा सेन की हिंदी और बांग्ला फि़ल्म ‘लैबोरेटरी’ की शूटिंग के दौरान कोलकाता में रवीना से हुई बातचीत के प्रमुख अंशः

    आप लंबे अरसे बाद फ़िल्मों में वापसी कर रही हैं. कैसा लग रहा है ?

    हाँ, मैंने चार साल पहले आखिरी बार ‘सैंडविच’ में काम किया था. उसके बाद घर-परिवार को संभालने में व्यस्त हो गई. अब मैंने लीक से हट कर दो भूमिकाएं हाथ में ली हैं.

    आपकी छवि तो मस्त-मस्त अभिनेत्री की रही है ?

    हाँ, लेकिन अब मैं इसे बदलना चाहती हूँ. अब मैं लटके-झटके और मस्त-मस्त जैसे डांस वाली भूमिकाएं नहीं करना चाहती. हर अभिनेता-अभिनेत्री के करियर में ऐसा एक दौर आता है और मैंने उसी दौर में वैसी भूमिकाएं की थीं.

    अब कैसी भूमिकाएं करना चाहती हैं ?

    अब मैं शुरूआती दौर से बाहर आ गई हूं. मुझे गंभीर, लीक से हटकर और संदेश देने वाली भूमिकाएं पसंद हैं. अपनी मस्त-मस्त इमेज़ को बदलने के लिए ही मैंने दमन, शूल और सत्ता जैसी फि़ल्में हाथ में ली थीं.

    फ़िलहाल किन फ़िल्मों में काम कर रही हैं ?

    एक तो राजा सेन की यह फिल्म ‘लैबोरेटरी’ है जो हिंदी और बांग्ला में एक साथ बन रही है. यह दुर्गापूजा तक रिलीज़ हो जाएगी. इसके अलावा एक महिला प्रधान फ़िल्म है जो राजस्थान की पृष्ठभूमि पर आधारित है. दोनों में मेरी भूमिका बेहद मजबूत है. ‘लैबोरेटरी’ रवींद्रनाथ ठाकुर की कहानी पर आधारित है.

    ‘ लैबोरेटरी ’ में आपकी भूमिका कैसी है ?

    यह एक सिख औरत की कहानी है जिसकी शादी एक बंगाली वैज्ञानिक से होती है. जल्दी ही उसकी मौत हो जाती है. उसके बाद वह अनपढ़ महिला पढ़-लिख कर अपने पति की लैबोरेटरी को दोबारा शुरू करती है. इसके साथ ही वह सांस्कृतिक मतभेदों के ख़िलाफ़ भी आवाज़ उठाती है. मैंने इस फ़िल्म में पंजाबी महिला की भूमिका निभाई है.

    और राजस्थान की पृष्ठभूमि पर बन रही दूसरी फ़िल्म में आपकी भूमिका कैसी है ?

    इसमें भी मेरी भूमिका काफ़ी प्रेरणादायक है. यह राजस्थान में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाली एक परंपरा के ख़िलाफ़ एक महिला के विद्रोह की कहानी है. राज्य के कुछ हिस्सों में वह परंपरा आज भी कायम है.

    आपने कोलकाता में लगातार तीन सप्ताह तक शूटिंग की है. इस दौरान परिवार को कितना मिस किया है ?

    बहुत मिस किया है. खासकर अपनी बेटी राशा को. बेटा रणबीरवर्द्धन तो मेरे साथ है. लेकिन बेटी मेरे पति के पास है. मुझे उसे अकेला छोड़ना बेहद ख़राब लग रहा है. वह भी मेरे लौटने का इंतज़ार कर रही है.

    तीन सप्ताह बाद यहां इंडियन प्रीमियर लीग के मैच के दौरान ईडेन गार्डेन में अपनी बेटी से मुलाक़ात के बाद मुझे महसूस हुआ कि बच्चों से अलग होकर काम करना असंभव है. अब आगे से मैं बच्चों के हिसाब से ही शूटिंग की तारीखें तय करूंगी.

    साहब, बीबी और गुलाम के बाद आप पहली बार कोलकाता में किसी फ़िल्म में काम कर रही हैं. यह वापसी कैसी लग रही है ?

    बौदीमनी नामक रियल्टी शो में जज बनने और साहब, बीबी और गुलाम में अभिनय करने के बाद मैं खुद को बंगाल का ही हिस्सा मानती हूं. यहां आईपीएल मैचों के दौरान मैंने कोलकाता नाइट राइडर्स के पक्ष में नारे लगाए.

    बॉलीवुड और बांग्ला फ़िल्म उद्योग यानी टॉलीवुड में क्या अंतर है ?

    बॉलीवुड का पूरा व्यवसायीकरण हो चुका है. लेकिन टॉलीवुड ने फ़िल्मों में अपनी परंपरा को बरकरार रखा है.

    इसके बाद क्या योजना है ?

    बॉलीवुड में निर्देशक राजीव वालिया की एक फ़िल्म मेरे पास है. बतौर निर्देशक यह राजीव की पहली फ़िल्म है.

    लेकिन उससे पहले लैबोरेटरी की शूटिंग खत्म होने के बाद मैं अपने पति और बच्चे के साथ कुछ समय गुजारना चाहती हूं.

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