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'किसी छवि में न बंधने वाला अभिनेता बनूँ'
लेकिन रणबीर कपूर के लिए यह तसल्ली की बात है कि इसके बावजूद वे करीना कपूर के साथ-साथ आज भी कपूर खानदान की नई पीढ़ी के सबसे लोकप्रिय प्रतिनिधि हैं.
यह अलग बात है कि उनके पिता ऋषि कपूर की छवि फिल्मों में एक सामान्य लवर बॉय की रही और बबली किस्म की अभिनेत्री कही जाने वाली अभिनेत्री नीतू सिंह के इस लाडले बेटे की छवि भी ना चाहते हुए लवर बॉय की ही बनी.
पर अपनी दूसरी फिल्म बचना ऐ हसीनों से उन्होंने साबित कर दिया कि वे सिर्फ फिल्मों में लवर बॉय बनने नहीं आए. रणबीर कपूर के खाते में कुल जमा दो फिल्मों के बावजूद उनके पास राजकुमार संतोषी से लेकर प्रकाश झा जैसे निर्देशकों की फिल्में हैं और हर छोटा बड़ा निर्देशक उनके साथ काम करना चाहता है.
पेश है बीबीसी से उनकी बातचीत के मुख्य अंश
आप कपूर खानदान के नए प्रतिनिधि हैं, आपकी पहली फिल्म नहीं चली. उस समय भी आपने ऐसा ही सोचा था क्या?
नहीं. मैं जानता था कि तब भी यह उतना आसान नहीं था. कपूर खानदान भारतीय फिल्म इतिहास की सबसे बड़ी हस्ती माना जाता है. ऐसे में लोग परिवार की मदद लेते हैं. मैं चाहता था कि उनसे अलग अपना रास्ता चुनूँ. मैं जनता था कि संजय लीला भंसाली के साथ ब्लैक में सहायकी करते हुए और साँवरिया में बतौर हीरो जो कुछ मैंने सीखा उसका परिणाम एक दिन मिल जाएगा.
आपको उम्मीद थी कि उसके बाद भी आपको इंडस्ट्री स्वीकार कर लेगी?
पता नहीं, पर अपनी दूसरी फिल्म में मैंने अपनी पहली फिल्म से बनी लवर बॉय की छवि से अलग काम किया और अब मेरी आने वाली फिल्मों में मेरी हर भूमिका एक दूसरे से अलग है. मैं छवियों से अलग अभिनेता बनने का सपना देखता हूँ. जैसे मेरे पड़दादा, दादा जी और पिता जी ने किया. उन्होंने भारतीय सिनेमा में जो काम किया मुझे उस पर गर्व और घमंड दोनों होता है. मैं खुशकिस्मत हूँ कि में उस परिवार हूँ हिस्सा हूँ.
यदि कपूर खानदान में पृथ्वी राज कपूर और राज कपूर को छोड़ दिया जाए तो शम्मी कपूर, शशि कपूर,रंधीर कपूर या आपके पिता के खाते में उतनी उपलब्धियां नहीं हैं ?
ऐसी बात नहीं. मेरे पिता कभी सुपर स्टार के तमगे वाले अभिनेता नहीं रहे. लेकिन उनकी पहली फिल्म बॉबी से ही वे युवाओं की धड़कन माने जाने लगे थे. कपूर परिवार के बाकी लोगों ने अभिनय और फिल्म तकनीक निर्माण के क्षेत्र में जो योगदान दिया उसे कभी भूलाया नहीं जा सकेगा.
इसलिए मैंने जब खुद इस छेत्र में आने आपकी फैसला किया तो सबसे पहले मैंने न्यूयार्क के ली स्टार्सबर्ग थियेटर एंड फिल्म संसथान से प्रशिक्षण लिया ताकि मैं हर छेत्र में अपने परिवार की परम्परा को जारी रख सकूँ.
पहले की बात और थी लेकिन बदलते सिनेमा और परवेश में अब यह ज़्यादा चुनौती भरा है शायद?
ज़िंदगी और करियर की चुनौतियाँ कभी कम नहीं होती बस उनका सवरूप बदल जाता है. प्रतिस्पर्धा कभी ख़तम नहीं होती. बल्कि अब यह थोड़ा आसान है. इसकी वजह है कि अब पहले के मुकाबले अधिक फिल्में बनती हैं. लेकिन यदि आप बेहतर काम करते हैं तो बने रहते हैं. ऐसा नहीं होता तो लोग आपको जल्दी ही बाहर बहार रास्ता दिखा देते हैं.
ख़बर है कि आपकी फिल्म अजब प्रेम की गजब कहानी की हीरोइन कैटरीना को भी बाहर का रास्ता दिखाकर उन्ही जगह मुग्धा गोडसे को लाया गया है?
यह निर्देशक का फैसला होता है. मैं इस बारे में किसी तरह का बयान देकर विवाद में नहीं फंसना चाहता.
लेकिन पहले सोनम कपूर और बाद में दीपिका पादुकोण को लेकर आपके प्रेम के विवादों की खबरे आती रहती हैं ?
सोनम के दादा जी और पिता जी मेरे दादा जी और पिताजी के दोस्त रहे हैं. मैं और सोनम भी दोस्त हैं. जब मैंने संजय लीला भंसाली जी के यहाँ काम शुरू किया सोनम उसके छः महीने बाद वहां आई थी. जब दो सितारे साथ काम करते हैं तो उनके बारे में बाते होती हैं. ऐसा ही दीपिका के बारे में भी है.
पर आपके परिवार में नायक रहे आपके पिता और दूसरे लोगों ने अपनी हीरोइनों के साथ शादियाँ की?
इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं भी वैसा ही करुँ. यह प्रेम और संबंधों की बात है. अभी तो मुझे अपने करियर में लम्बा रास्ता तय करना है.
अपने दादा जी और पिता जी के करियर की कौन सी फिल्में आपको पसंद हैं?
सभी- मेरे दादा जी भारतीय सिनेमा के पुरातत्व सरीखे फिल्मकार हैं.
आपका मन नहीं करता कि आप भी आरके बैनर की किसी फिल्म में काम करें?
क्यों नहीं. खुद मेरे पिता ने आ अब लौट चलें जैसी फिल्म बनाई. जब भी कोई बढ़िया पटकथा मिलेगी तो ज़रूर ऐसा होगा.
आपके पिता आपको लेकर क्या सोचते हैं?
जैसा हर पिता सोचता है. जब मेरी पहली फिल्म सांवरिया रिलीज़ हुई तो मेरी मम्मी बहुत खुश थीं. लेकिन अपने पिता की प्रतिक्रिया का मैं अब भी इंतज़ार कर रहा हूँ.
अब आप अपनी किन फिल्मों का इंतज़ार कर रहे हैं?
राजकुमार संतोषी की फिल्म अजब प्रेम की गजब कहानी, प्रकाश झा की राजनीति और अयान मुखर्जी की वेक उप सिड आने वाली हैं.