twitter
    For Quick Alerts
    ALLOW NOTIFICATIONS  
    For Daily Alerts

    'मैं नहीं करता सच का सामना'

    By Staff
    |
    'मैं नहीं करता सच का सामना'

    रामकिशोर पारचा

    वरिष्ठ फ़िल्म समीक्षक, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए

    यूरोपीय देशों और अमरीका में मोमेंट ऑफ़ ट्रुथ के नाम से मशहूर रियलिटी शो पर आधारित कार्यक्रम सच का सामना में एंकर की भूमिका निभाने के कारण अभिनेता राजीव खंडेलवाल चर्चा में हैं.

    राजीव खंडेलवाल को इतनी लोकप्रियता और चर्चा पहले कभी नहीं मिली जितनी विवादों में आए स्टार प्लस के सच का सामना नाम के शो से मिल गई.

    लेकिन वे मानते हैं कि तमाम बातों के बावजूद वे इतने बड़े अभिनेता और स्टार नहीं बने हैं जो ऐसे विवादों के बाद स्पष्टीकरण भी दें और चुपके-चुपके इसका आनंद भी ले.

    शो में आने वाले आम और ख़ास लोगों से जब वे सवाल पूछते हैं तो आपत्तिजनक होने के बावजूद वे अपनी आम आदमी वाली सादगी और संवेदनशीलता नहीं छोड़ते. प्रस्तुत है राजीव खंडेलवाल के साथ बातचीत के प्रमुख अंश.

    शो के प्रस्ताव के समय आप जानते थे कि यह एक विवादस्पद शो बन जाएगा. क्या आपको नहीं लगता कि भारतीय समाज अभी यूरोप की तर्ज पर संबंधों के मामले में इतना बोल्ड नहीं हुआ की वो टीवी पर आकर इसे स्वीकार करे?

    नहीं. मैंने कभी नहीं सोचा था की इस शो को लेकर इतना हंगामा होगा. मैं केवल एक ऐसा शो करने जा रहा था, जो पहली बार हमें अपने जीवन में जिए गए कभी ना भूलने वाले और छिपे हुए समय को सबके सामने अपने नज़रिये से देखने का मौक़ा देगा.

    अगर कुछ लोगों को छोड़ दिया जाए तो इस कार्यक्रम में कोई बड़ी हस्ती शामिल नहीं है जिनके बारे में कहा जाए कि उनमें समाज के सामने अपने जीवन के विवादित सच को स्वीकार करने की हिम्मत है. अनिल कपूर से लेकर जैकी श्रॉफ़ और महेश भट्ट से लेकर मधुर भंडारकर तक ने इस कार्यक्रम में आने से मना कर दिया था. क्या यह ज़रूरी है कि अब हम मनोरंजन के नाम पर सेक्स और छिपे संबंधों की दुनिया को सामने लाने का काम भी करें और शर्मिंदा होकर पैसा कमाने का भी?

    लोगों को बुलाना मेरा काम नहीं है. यह शो आदमी को अपना सच स्वीकार करने का मौक़ा देता है और सच का सामना करना हर आदमी के वश की बात नहीं है.

    मशहूर हस्तियों के बारे में तो मीडिया के ज़रिए भी लोगों को पता चल जाता है लेकिन आम आदमी के बारे में जानने की किसी को कोई ज़रूरत महसूस नहीं होती.

    लोग इसमें अपनी मर्ज़ी से शामिल होते हैं और वे तनाव और दबाव से मुक्ति चाहते हैं. हर आदमी की ज़िंदगी में हमेशा कुछ ऐसे रहस्य होते हैं जो वह किसी से कहना चाहता है. यह अलग बात है कि उसका ज़रिया टीवी और यह शो बन गया है.

    शहरी दर्शकों को छोड़ दें तो भारत में टीवी तमाम बातों के बावजूद अब भी मनोरंजन का ही माध्यम है. स्टार वर्ल्ड पर इसके प्रसारण ने कई घर तो तोड़े, लेकिन पश्चिम और यूरोप में सेक्स को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता. तो क्या अब हम किसी के संबंधों की त्रासदी की हद तक मनोरंजन बनाने की सीमा के सारे बाँध तोड़ गए हैं और वो भी एक मशीन के भरोसे. जबकि इसे क़ानून में कोई मान्यता नहीं मिलती?

    नहीं. हमने अपनी सीमाएँ तय की हैं. इसके एक्सपर्ट हर्ब इर्विन पिछले 20 सालों से इस पर काम कर रहे हैं. यह एक मनोवैज्ञानिक जाँच के ज़रिए होता है. पोलीग्राफ़ मशीन के परिणाम आज तक ग़लत नहीं हुए. 23 देशों ने इसे सफल शो माना है.

    यह सही है कि कुछ देशों में तकनीकी कारणों से इसे बंद भी किया गया लेकिन जहाँ तक त्रासदी को मनोरंजन बनाने की बात है तो ऐसा नहीं है. टीवी और फिल्में हमारे जीवन का आईना हैं और वे अब यथार्थ के काफ़ी क़रीब हैं.

    आप इस सीट पर होते तो क्या सच बोलने की हिम्मत दिखाते?

    इस मामले में मैं काफ़ी सोच-विचार वाला आदमी हूँ. व्यक्तिगत तौर पर मैं कहूँगा कि शायद नहीं.

    एकता कपूर के धारावाहिक कहीं तो होगा से लेकर हिंदी फ़िल्म आमिर और अब सच का सामना तक के सफ़र के बारे में क्या कहेंगे?

    मैं जयपुर से दिल्ली अभिनय की तलाश में गया था और दूरदर्शन के कुछ शो किए भी. लेकिन मैं आराम से बैठने वाला इंसान नहीं हूँ और उस समय तो मैं बहुत जल्दी सब कुछ कर लेना चाहता था.

    जब एकता का शो मिला तो उस समय तक मैं अपनी क़रीब सौ लघु फिल्में बना चुका था. मैं सोचता था कि दिल्ली में रंगमंच के ज़रिए शानदार अभिनय के प्रतीक और बिम्ब सीख जाऊंगा लेकिन उसका मौक़ा मैंने ख़ुद ही को नहीं दिया.

    मेरी मंज़िल मुंबई थी और इसे दिल्ली में बैठकर नहीं पाया जा सकता था सो मुंबई चला गया. कुछ चीज़ें पीछें रह गई और कहीं तो होगा के सुजल के बाद केतन मेहता का टाइम बम और डील या नो डील जैसे शो मेरी पहचान बन गए.

    जो पहचान आमिर से मिली वो बहुत कम लोगों को मिलती है?

    वो मुझे आसानी से नहीं मिली थी. ठीक सुजल की भूमिका की तरह. उस समय सुजल के लिए पांच सौ लोग आए थे और आमिर के समय मेरे सामने कई चुनौतियाँ थीं. लेकिन उन लोगों ने मेरा टाइम बम देखा था. मैं ख़ुश हूँ कि लोगों ने बिना किसी पूर्वाग्रह के आमिर देखी और मुझे स्वीकार किया.

    आमिर में आपने एक मुस्लिम युवक की भूमिका निभाई और उसके तुंरत बाद अब पीटर गया काम से में एक ईसाई युवक की भूमिका निभाने जा रहे हैं. यह संयोग है या आप कुछ सोचकर ऐसा कर रहे हैं. आपने इसके लिए अपने लुक भी बदला है.

    नहीं. आमिर एक ऐसे युवक का चित्र था जो बेहतर जीवन के सपने देखते हुए एक अनचाहे चक्रव्यूह में फँस जाता है. वो तनाव और दबाव वाला पात्र था जबकि पीटर गोवा में टूरिस्टों को मोटरसाइकिल पर घुमाने वाले मस्त किस्म का चरित्र है.

    उसके साथ प्रेम भी जुडा है. ब्रिटिश निर्देशक जॉन ओवेन की इस फ़िल्म में थ्रिल भी है और रोमांच भी. ईसाई या मुस्लिम पात्रों जैसी इनमे कोई बात नहीं है. ये महज एक संयोग हैं.

    आपको फ़िल्में मिलना महज एक संयोग है या आप जानते थे कि टाइम बम और लेफ़्ट राइट लेफ़्ट जैसे शो के बाद आपकी मंज़िल नज़दीक है?

    मैं जानता था कि मेरी मंज़िल नज़दीक है. बस मैं ख़ुद को दोहराना नहीं चाहता था.

    फिर सच के सामना में आपने एंकर की भूमिका को क्यों दोहराई?

    खुद को दोहराने की कई वजह होती है. पहली बात मैं टीवी पर अभिनय करने नहीं आ रहा था. दूसरी बात- जब मैंने इस शो की मौलिक सीडी देखी तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए कि क्या ऐसा भी कोई शो हो सकता है. मैं जानता था की भारत में इस पर विवाद हो सकता है लेकिन हम इसके आधारों और ज़रूरतों पर ग़ौर करेंगे तो इसे बनाना चुनौती भरा है.

    जैसे आपके लिए अभिनय में आना चुनौती भरा था?

    मेरे घर वाले चाहते थे कि मैं अपने परिवार के लोगों की तरह सेना में जाऊं या इंजीनियर बनूँ. इसलिए जब इस क्षेत्र में आ गया तो मैं ख़ुद सेना की पृष्ठभूमि पर एक टीवी शो बनाना चाहता था. लेकिन वो हसरत रह गई और अब समय नहीं. संयोग से उस समय एकता भी एक शो बना रही थी और मैंने भी बायोडेटा भेज दिया.

    फिर उनके साथ विवाद क्यों हो गया. वे तो आपकी मददगार कही जा सकती हैं?

    मैं आज जो कुछ भी हूँ वो उनके शो के नायक सुजल के कारण ही हूँ. लेकिन जब उसे बीच में बिना किसी वजह बदला जाने लगा तो मैंने विरोध किया. मैं दबाव में काम नहीं कर सकता था. मैं बाहर आ गया लेकिन मैंने कभी दोबारा उनके साथ काम करने से मना नहीं किया. मैं आज भी संबंधों को बनाए रखने में भरोसा करता हूँ.

    लेकिन आमना शरीफ़ के साथ अपने संबंधों के बारे में बात कम करते हैं?

    कुछ हो तो बात करूँ. वे मेरी दोस्त हैं और हमने दो पाकिस्तानी शो में साथ काम किया है. कुछ साल पहले जब मुंबई में उन्होंने घर लिया तो मैंने उसे सजाने में उनकी मदद भर की. लोग जब हमारे रोमांस की बात करते हैं तो हम इसका ख़ूब आनंद लेते हैं.

    सफलता का कैसे आनंद ले रहे हैं?

    कुछ लोग कहते हैं. मैं बड़ा एक्टर बन गया हूँ. उनकी भावनाओं की मैं कद्र करता हूँ लेकिन सच कहूँ तो मैं इतना बड़ा नहीं. यह मेरी शुरुआत भर है. जो लोग मेरे चरित्रों को देखकर ऐसा सोचते हैं उन्हें नहीं पता कि मैं वास्तविक ज़िंदगी में ऐसा नहीं हूँ. मैं उनके जैसा ही एक आम आदमी हूँ.

    कोई ऐसा अनुभव है जो आप कभी नहीं भूले?

    हम चोर बाज़ार में आमिर की शूटिंग कर रहे थे. मुझे एक मेनहोल के ऊपर से भागना था. मेरे निर्देशक ने कहा कि करके दिखाओ कैसे करोगे. मैंने करके दिखा दिया और कहा की अब फ़ाइनल टेक करें. वे बोले शोट तो ओके हो गया.

    लोगों का कहना है कि आपकी सूरत राजेश खन्ना से मिलती है और उनकी संवाद अदायगी के साथ शारीरिक भाषा भी उनसे मेल खाती है?

    कुछ और बड़े अभिनेताओं से भी जोड़ दें तो मैं उन्हें शुक्रिया कहने उनके घर तक चला जाऊँगा. मैं उनके सामने कुछ नहीं.

    आगे किन फिल्मों में हमारे सामने होंगे?

    अभी तो पीटर गया काम से की शूटिंग हुई है और उसके बाद सौरभ सारंग की रिटर्न गिफ़्ट आने वाली है.

    तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
    Enable
    x
    Notification Settings X
    Time Settings
    Done
    Clear Notification X
    Do you want to clear all the notifications from your inbox?
    Settings X
    X