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    संगीत से कायम हो सकता है अमन: राहत फ़तेह अली

    By Staff
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    संगीत से कायम हो सकता है अमन: राहत फ़तेह अली

    पीएम तिवारी

    बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए विशेष

    वे दिल से एक कव्वाल हैं. लेकिन गायकी के अपने सूफ़ियाना अंदाज़ की वजह से उन्होंने हिंदी फ़िल्मोद्योग में अपने लिए एक ख़ास मुकाम बना लिया है, पहले उनका परिचय नुसरत फ़तेह अली ख़ान के भतीजे के तौर पर दिया जाता था. लेकिन हिंदी फ़िल्मों में अपनी गायकी की वजह से अब उनकी गिनती भी स्टार के तौर पर होने लगी है. इस शख्स का नाम है राहत फ़तेह अली ख़ान .

    कोलकाता के टालीगंज क्लब में एक कार्यक्रम के सिलसिले में आए राहत ने अपने अब तक के सफ़र और भावी योजनाओं के बारे में बात की. बातचीत के प्रमुख अंश.सलमान ख़ान अभिनीत दबंग की कामयाबी का श्रेय काफ़ी हद तक उसके 'तेरे मस्त मस्त दो नैना" जैसे गीतों को भी दिया जा रहा है. आपको कैसा महसूस होता है?

    मुझे काफ़ी अच्छा लगता है. अरबाज़ ख़ान मेरे मित्र हैं और यह गीत टीमवर्क का नतीजा है. मैंने पहले भी सलमान ख़ान के साथ काम किया है. मैंने उनके लिए वीर और मैं और मिसेज खन्ना में भी गाया है. उनके साथ काम करना अपने आप में एक अच्छा अनुभव है. मुझे उनके साथ काम करने में कभी कोई दिक्कत नहीं हुई.

    अनजाना-अनजानी का गीत 'आस-पास खुदा" तो काफी हिट रहा है?

    हां. विशाल और शेखर के लिए यह मेरा तीसरा गीत है. मैंने पहली बार ओम शांति ओम में उनके साथ काम किया था. उनके गीतों की धुन बेहद लाजवाब होती है. मुझे इसी गीत का संगीत बेहद पसंद आया था.

    बालीवुड में कव्वाली पर आधारित गीत काफी हिट रहे हैं.आप क्या सोचते हैं?

    मैंने तो ऐसे गीतों को बस अपनी आवाज़ दी थी. इनका असली श्रेय तो धुन बनाने वालों को जाता है. कव्वाली तो दरगाहों में गाई जाती है. इस विधा को पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाने का श्रेय मेरे चाचा नुसरत अली साहब को जाता है. लेकिन हिंदुस्तान हो या पाकिस्तान, जुबान और आवाज़ से हम एक-दूसरे के बहुत क़रीब हैं.

    इस साल तो आप हिंदी फिल्मों में काफी व्यस्त रहे हैं?

    हां, फ़िलहाल मैं हिंदी फ़िल्मों पर काफ़ी ध्यान दे रहा हूं. मुझे यहां का संगीत बेहद पसंद है और मैं यहां और गाने गाना चाहता हूं. मैं बचपन से ही हिंदी फ़िल्मों के गीत सुनता रहा हूं. हिंदी फ़िल्मोद्योग ने मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मन्ना दे, मुकेश साब, लता जी और आशा जी जैसे गीतकार और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और आरडी बर्मन जैसे संगीतकार दिए हैं.

    आपका पसंदीदा गीत कौन सा है?

    मुझे लगता है कि हर गीत मेरा पसंदीदा गीत है. अपनी आवाज़ किसे पसंद नहीं होती. लेकिन 'दिल तो बच्चा है जी (इश्किया)", 'तुम जो आए (वन्स अपोन ए टाइम इन मुंबई)" और 'नैना ठग लेंगे (ओमकारा)" मुझे काफ़ी पसंद हैं.

    बालीवुड का आपका अब तक का सफर कैसा रहा है?

    अपने सूफ़ियाना अंदाज़ की वजह से राहत फ़तेह अली ने बॉलीवुड में एक ख़ास मुकाम बना लिया है.

    वर्ष 1998 में नुसरत फ़तेह अली ख़ान के निधन के बाद मैंने कराची की एक रिकार्ड कंपनी के साथ मन की लगन (पाप) पर काम शुरू किया था. लेकिन विभिन्न वजहों से यह प्रोजेक्ट ठप हो गया. उसके काफ़ी बाद पूजा भट्ट पाकिस्तान आईं. वे तब एक फ़िल्म बनाने की सोच रही थी. उन्होंने मन की लगन गीत सुना और इसे अपनी फ़िल्म में लेने का फ़ैसला कर लिया.

    आप तो छोटे उस्ताद के दूसरे सीजन में जज की भमिका में भी हैं?

    हां,मेरे लिए यह एक सपने के हकीकत में बदलने की तरह है. मैं कई वर्षों से सोनू निगम से मिलना चाहता था. छोटे उस्ताद की शूटिंग के दौरान उनसे मुलाकात का मौक़ा मिला. वे लंबे समय से इस उद्योग मैं हैं. इस साल छोटे उस्ताद मेरा सबसे बढ़िया अनुभव है.

    भारत और पाकिस्तान के बीच बार-बार आवाजाही में कोई दिक्कत नहीं होती?

    ऐसा नहीं हैं. मैं हर रविवार को पाकिस्तान से मुंबई रवाना होता हूं. सोमवार को शूटिंग के बाद मैं मंगलवार को पाकिस्तान लौट जाता हूं. छोटे उस्ताद की शूटिंग के दौरान ही महेश भट्ट से भी मुलाकात हुई.

    नुसरत साहब की याद आती है ?

    उन्होंने मुझे गोद लिया था. इसलिए वे मेरे लिए पिता समान हैं. उन मेरी कई यादें जुड़ी हैं. लेकिन वर्ष 1985 में ब्राइटन कार्निवाल में उनके साथ अपना पहला शो मैं कभी नहीं भूल सकता.

    नुसरत फ़तेह अली ख़ान का उत्तराधिकारी होना कैसा लगता है?

    मैं आज जहां हूं, उनकी ही बदौलत हूं. अगर वे नहीं होते, तो मैं भी नहीं होता.

    भारत में कई टेलीविजन शो में पाकिस्तानी कलाकारों को बुलाया जाता है. लेकिन पाकिस्तान में ऐसा क्यों नहीं होता?

    पाकिस्तान में भी भारतीय कलाकारों की काफ़ी मांग है. लेकिन आतंकवाद की वजह से वहां भारतीय कलाकारों के शो आयोजित करना बेहद मुश्किल है. पाकिस्तान फ़िलहाल आतंकवाद का शिकार है और ऐसे में वहां पाकिस्तानी कलाकार भी ज्यादा शो नहीं कर पाते. ऐसे में भारतीय कलाकारों के लिए शो आयोजित करना बेहद कठिन काम है. लेकिन मुझे उम्मीद है कि हालात जल्द ही बदलेंगे.

    भारतीय फ़िल्मोद्योग के प्रति पाकिस्तान के आम लोगों का रवैया कैसा है?

    वहां लोग भारतीय कलाकारों के दीवाने हैं.मैंने अपने गीतों के जरिए हमेशा दोनों देशों के बीच अमन की पुरजोर वकालत की है. संगीत ही दोनों देश के बीच अमन कायम कर सकता है. मैं शुरू से ही दोनों देशों के बीच भाईचारा फैलाने की कोशिश करता रहा हूं.

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