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यादगार नहीं लम्हा
लम्हा दर्शकों को बोर करती हैं।
फिल्म में दो-चार ही संवाद ऐसे है जो लोगों को दिमाग पर चोट करते है लेकिन बाकी संवादों में आपको बॉलीवुड की कई फिल्मों का मिला-जुला रूप नजर आयेगा। फिल्म में संजय दत्त एक जगह कहते हैं कि कश्मीर दुनिया की सबसे खतरनाक जगह है। संजय के इस डायलॉग पर जहां नेताओं ने ऐतराज जताया , वहीं सेंसर कमिटी ने राहुल से इस डायलॉग के साउंड को डिलीट करने का फरमान दिया। राहुल जब इसके लिए राजी नहीं हुए तो फिल्म को ए सार्टिफिकेट के साथ पास किया गया।
फिल्म
को
ए
सार्टिफिकेट
दिया
गया
बिना मेकअप के हिरोइन का पर्दे पर दिखने का मतलब ये नहीं कि आप एक्टिंग कर रहे हैं, बल्कि सच्चे अभिनय के लिए आपको पर्दे पर अच्छा अभिनय करना होगा। फिल्म में बिपाशा बसु को नॉन ग्लैमरस अंदाज में पेश किया गया लेकिन बिपाशा के हिस्से में काम कम आया। लेकिन कुल मिलाकर संजय और बिपाशा ने औसत काम किया है।
फिल्म में अगर थोड़ी बहुत जान फूंकी है तो वो है अनुपम खेर ने जिन्होंने चलताऊ अभिनय नहीं किया है। बल्कि अपनी श्रेष्ठ पारियों में लम्हा हा का चरित्र भी शामिल कर लिया है। तो वहीं कुणाल कपूर, यशपाल शर्मा और महेश मांजरेकर ने फिल्म क्यों साइन की ये बात कुछ समझ में नहीं आयी । मिथुन का संगीत बिल्कुल प्रभावित नहीं करता है ।
हां
कश्मीर
की
वादियां
जरूर
दर्शकों
की
आंखों
को
सकून
पहुंचाती
है।
फिलहाल
फिल्म
का
निर्देशन
सही
होता
तो
फिल्म
सफलता
के
नए
पायदान
तय
करती
।
कुल
मिला
कर
कह
सकते
हैं
लम्हा
यादगार
नहीं
है।
लम्हा यादगार नहीं है