twitter
    For Quick Alerts
    ALLOW NOTIFICATIONS  
    For Daily Alerts

    ऑस्कर की ओर बढ़ते मज़बूत क़दम

    By Staff
    |
    ऑस्कर की ओर बढ़ते मज़बूत क़दम

    उन्हें उत्सुकता है कि क्या पोलियो जैसे भयानक रोग से उनकी लड़ाई की कहानी ऑस्कर जीत पाती है या नहीं.

    मेरठ में रहने वाले 26 वर्षीय गुलज़ार 'द फ़ाइनल इंच' नाम की 38 मिनट की डॉक्युमेंट्री के नायक हैं जिसे अमरीकी निर्देशक इरीन टेलर ब्रोद्स्की ने निर्देशित किया है.

    इस डॉक्यूमेंट्री को लघु फ़िल्म की श्रेणी में ऑस्कर के लिए नामांकन मिला है.

    यह फ़िल्म पूरे भारत में पोलियो की बीमारी के अभिशाप का चित्रण करती है.

    उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ के एक कोने में एक मुस्लिम बस्ती है धवाइया नगर कालोनी. यही वह जगह है जहाँ गुलज़ार सैफ़ी रहते हैं.

    सैफ़ी जब छह साल के थे, तब वे पोलियो के शिकार हो गए थे क्योंकि उन्होंने पोलियो की दवा नहीं ली थी. उस वक्त उनके गाँव के ज़्यादातर लोग अनपढ़ थे और इस बारे में जागरुकता का भी अभाव था.

    पोलियो के शिकार

    वे कहते हैं, "जब मैं पैदा हुआ, मेरे परिवार में खुशियाँ मनाई गईं. ख़ुशी का अवसर भी था. मैं अपने माता पिता की छठी औलाद था. कहते हैं कि जिसके छह संतान होती हैं उनके पास सहारे के लिए छह बैसाखियाँ होती हैं."

    सैफ़ी कहते हैं कि ब्रोद्स्की से उनकी मुलाक़ात अल्लाह की रहमत से हुई

    सैफ़ी कहते हैं, "लेकिन यह ख़ुशी बहुत कम समय ही टिक पाई. पोलियो ने पूरे परिवार को नष्ट कर दिया."

    उन्होंने बताया, "जब मुझे पोलियो हुआ, सदमे से मेरे पिता अपना मानसिक संतुलन खो बैठे. वे कभी ठीक नहीं हो पाए और 2005 में चल बसे."

    पिता की बीमारी के साथ उन्हें उनके भाइयों और माँ ने पाला. दस वर्ष की उम्र तक वे एक छोटे बच्चे की तरह घुटनों के बल चलते थे.

    उनके भाई उन्हें अपनी साइकिल पर स्कूल ले जाते. कभी-कभी तो वे उन्हें अपनी पीठ पर लाद कर भी लेकर जाते थे.

    यह उनकी दृढ़ता का ही परिणाम था कि सैफ़ी ने अपनी स्कूली और कॉलेज की शिक्षा को पूरा किया. अब वे अर्थशास्त्र में एमए कर चुके हैं और अपने घर के पास एक छोटे से कमरे में शिक्षण केंद्र चलाते हैं.

    वे कहते हैं, "मेरे परिवार ने बचपन से ही मुझे बहुत सहारा दिया. उन्होंने मुझे कभी यह एहसास नहीं होने दिया कि मैं विकलांग हूँ. उन्होंने मुझे हमेशा सहारा और साहस दिया."

    अज़ान की ताक़त

    उन्होंने कहा, "मेरी माँ हमेशा कहती है कि अगर तुममें साहस है तो तुम कुछ भी कर सकते हो."

    "पोलियो मात्र एक बीमारी नहीं बल्कि आपदा है"

    दोपहर में जब हम सैफ़ी के शिक्षण केंद्र पर बैठे थे तो नज़दीकी मस्जिद से अज़ान की आवाज़ भी अंदर आ रही थी.

    सैफ़ी ने बताया कि 'द फ़ाइनल इंच' के नायक की भूमिका उन्हें संयोग से ही मिल गई.

    वे कहते हैं, "यह अल्लाह की ही रहमत है. इसी अज़ान की वजह से मैं निर्देशक इरीन टेलर ब्रोदस्की से मिला."

    ब्रोदस्की इसी अज़ान को रिकॉर्ड करने यहाँ आई थीं.

    उन्होंने कहा, "मैं उनके पास गया और उनसे पूछा कि वे यहाँ क्यों आई हैं. हमने कुछ मिनटों तक बातचीत की. हमें अनुवादक की ज़रूरत नहीं पड़ी. मुझे लगता है कि वह मुझसे काफ़ी प्रभावित हुईं. फिर वे अपनी कार से बाहर आईं और सड़क पर ही खड़े होकर हम 40 मिनट तक बात करते रहे."

    सैफ़ी कहते हैं, "उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं पोलियो पर आधारित उनकी फ़िल्म के लिए काम करूँगा. मैंने सोचा कि अल्लाह मुझे यह अवसर दे रहा है, मानवता की सेवा करने का सुनहरी मौक़ा."

    सैफ़ी कहते हैं कि इस फ़िल्म को ऑस्कर में नामांकन मिलने के बाद से उनकी ज़िंदग़ी पूरी तरह से बदल गई है.

    दुनिया में प्रसिद्ध

    वे कहते हैं, "मेरे पास सब तरफ़ से फ़ोन आ रहे हैं. लोग मेरा इंटरव्यू माँगते हैं. इतने लोग मिलने आते हं कि मैं बता नहीं सकता. लोग कहते हैं तो तुम तो छिपे रुस्तम हो. मैं पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया हूँ."

    लोगों को यह एहसास कराने की ज़रूरत है कि पोलियो का कोई धर्म नहीं होता. यह पूरी दुनिया के लिए ख़तरनाक है गुलज़ार सैफ़ी

    लोगों को यह एहसास कराने की ज़रूरत है कि पोलियो का कोई धर्म नहीं होता. यह पूरी दुनिया के लिए ख़तरनाक है

    इसके अलावा इस फ़िल्म के बाद से उन्हें और भी फ़ायदे हुए हैं. उनके छात्रों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. सैफ़ी के अनुसार, "मेरे पड़ोसी अपने बच्चों से कहते हैं कि वे मन लगाकर पढ़ें और मेरी तरह बनें."

    सैफ़ी परेशानियों के बावजूद हमेशा खुश रहते हैं. हालाँकि वे कहते हैं, "पोलियो एक बीमारी ही नहीं बल्कि एक आपदा है."

    सैफ़ी का गृह ज़िला उत्तर प्रदेश पोलियो के मामले में सबसे बदहाल है. जहाँ पूरी दुनिया में पोलियो से लड़ाई जारी है वहीं पिछले साल भारत में मौजूद कुल 549 मामलों में से सिर्फ़ उत्तर प्रदेश में ही 297 मामले पाए गए.

    उत्तर प्रदेश के मुस्लिम इलाक़ों में ऐसी अफ़वाहें फैलीं कि पोलियो की दवा से आगे चलकर बच्चे संतानोत्पत्ति में अक्षम हो जाते हैं इसलिए बड़ी संख्या में अशिक्षित लोगों ने अपने बच्चों को दवा नहीं दिलवाई.

    सैफ़ी कहते हैं कि लोगों को यह अहसास कराने की ज़रूरत है कि पोलियो का कोई धर्म नहीं होता. यह पूरी दुनिया के लिए ख़तरनाक है.

    वे कहते हैं, "अगर 'द फ़ाइनल इंच' ऑस्कर जीत जाती है तो इससे उन लोगों को बढ़ावा मिलेगा जो पोलियो को मिटाने के लिए काम कर रहे हैं. इसके साथ ही इसके बारे में जागरूकता भी बढ़ेगी."

    तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
    Enable
    x
    Notification Settings X
    Time Settings
    Done
    Clear Notification X
    Do you want to clear all the notifications from your inbox?
    Settings X
    X